पानी में रहने वाला मत्स्य भक्षी सांप
के.पी. सिंह
मत्स्य भक्षी सांप एक अद्भुत सांप है। इसे अंग्रेजी में फिशिंग स्नेक अर्थात् मछलियों का शिकार करने वाला सांप कहते हैं। यह पूरी तरह पानी का जीव है और अपना संपूर्ण जीवन पानी में व्यतीत करता है। मत्स्य भक्षी सांप चीन से लेकर न्यू गिनी और उत्तरी आस्ट्रेलिया तक के भागों में पाया जाता है। यह धीमी एवं तेज बहने वाली नदियों व तालाबों के मुहानों में रहता है। मत्स्य भक्षी सर्प की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह नदियों और तालाबों के ताजे पानी के साथ ही सागर के खारे पानी में भी बहुत सरलता से रह सकता है।
मत्स्य भक्षी सांप पानी के पौधों के निकट रहना अधिक पसंद करता है। यह अपनी पूंछ की सहायता से अपने शरीर का कुछ भाग किसी जलीय पौधे की शाखा अथवा तने से लंगर की तरह लपेट लेता है और अपने शरीर को सीधा करके कठोर बना लेता है। इस समय इसे देखने से ऐसा लगता है, मानो पानी में लकड़ी की कोई छड़ी पड़ी हो या पौधे की कोई शाखा पड़ी हो। मत्स्य भक्षी सांप इस प्रकार का व्यवहार अपनी सुरक्षा के लिए करता है। इसलिए इसे काष्ठ फलक सर्प कहा जाता है। मत्स्य भक्षी सांप को यदि पानी के बाहर निकाल लिया जाए तो भी यह अपना शरीर कठोर बनाए रखता है और सीधी, चपटी छड़ी की तरह दिखाई देता है।
यह नर सांप मादा से अधिक लंबा होता है, किंतु लंबाई 70 से 80 सेंटीमीटर तक होती है। मत्स्य भक्षी सांप की त्वचा का रंग लाली लिए हुए कत्थई होता है एवं इस पर गहरे रंग के सफेद किनारे वाले पट्टे होते हैं। कभी-कभी हल्के रंग के भी मत्स्य भक्षी सांप मिल जाते हैं। तैरते समय यह अपना थूथन पानी के बाहर रखता है। मत्स्य भक्षी सांप प्रायः पानी के भीतर गोता लगाता है। इस समय इसके नथुनों के वाल्ब बंद होे जाते हैं, अतः पानी फेफड़ों में नहीं पहुंचता, किंतु यह अधिक समय तक पानी के भीतर नहीं रह सकता। इसीलिए इसे थोड़ी-थोड़ी देर में पानी की सतह पर सांस लेने के लिए आना पड़ता है। मत्स्य भक्षी सांप के थूथन पर आगे की ओर दो संस्पर्शिकाएं होती हैं। ये दूर से देखने पर पत्तियों जैसी लगती हैं। इसीलिए कुछ लोग इसे संस्पर्शिका सर्प भी कहते हैं। इस प्रकार की संस्पर्शिकाएं विश्व के किसी भी सांप में देखने को नहीं मिलतीं। मत्स्य भक्षी सांप केवल मछलियां ही नहीं खाता। यह मछलियों के साथ ही अन्य बहुत से, पानी के जीव-जंतुओं का भी शिकार करता है। मत्स्यभक्षी सांप जलीय पौधों के मध्य पौधे की एक शाखा की तरह शांत पड़ा रहता है और जैसे ही उसका शिकार बिल्कुल निकट आ जाता है, वैसे ही झपटकर उसे दबोच लेता है और निगल जाता है।
मत्स्य भक्षी सांप विषैला होता है, किंतु इसका विष केवल जीव-जंतुओं पर ही प्रभाव डालता है। मानव पर इसके विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मत्स्य भक्षी सांप में आंतरिक समागम एवं आंतरिक निषेचन पाया जाता है। समागम के बाद नर मादा से अलग हो जाता है। इनमें नर को एक समागम काल में अनेक मादाओं के साथ समागम करते हुए देखा गया है। प्रायः सांप अंडे देते हैं, किंतु मत्स्य भक्षी मादा सांप के अंडे निषेचित होने के बाद भी इसके शरीर के भीतर ही परिपक्व होते हैं और शरीर के भीतर ही फूटते हैं। यही कारण है कि मत्स्य भक्षी सांप की मादा अंडे न देकर जीवित बच्चों को जन्म देती है। यह एक बार में 7 से लेकर 13 तक बच्चों को जन्म दे सकती है। मत्स्य भक्षी मादा सांप अपने बच्चों की कोई सुरक्षा या देखभाल नहीं करती। इसके बच्चे जन्म के कुछ समय बाद से ही छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़ों का शिकार करने लगते हैं और कुछ बड़े होते ही मछलियां पकड़ना आरंभ कर देते हैं तथा जमीन के सांपों की तुलना में शीघ्र ही वयस्क अर्थात् प्रजनन के योग्य हो जाते हैं।
मत्स्य भक्षी सांप के शत्रु बहुत कम हैं। यह अपने कॉमाफ्लास और विष द्वारा अधिकांश शत्रुओं से बचा रहता है। मत्स्य भक्षी सांप की कोई आर्थिक उपयोगिता नहीं है, अतः मानव भी इसका शिकार नहीं करता। इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर