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‘फाइव आइज़’ के कंधे पर भारत विरोधी खेल

06:37 AM Oct 18, 2024 IST
पुष्परंजन

‘कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से।’ कनाडा-भारत के शिखर नेताओं के सम्बन्ध पर कोई एक लाइन की टिप्पणी मांगे, तो बशीर बद्र का यह शे’र काफी है। आप पूछियेगा, मोदी आख़िरी बार कनाडा के प्राइम मिनिस्टर जस्टिन ट्रूडो से कब गले मिले थे? 23 फ़रवरी, 2018 को पीएम मोदी ने आख़िरी बार जस्टिन ट्रूडो को ‘हग’ किया था। ट्रूडो आठ दिन की यात्रा पर भारत आये थे। राष्ट्रपति भवन में जस्टिन ट्रूडो, और उनके परिवार का भव्य स्वागत पीएम मोदी की उपस्थिति में किया गया। अब ‘हग’ करना तो दूर, दोनों नेता हाथ मिलाने से कतराते हैं।
लेकिन, ट्रूडो को ख़लिश इस बात की थी, कि बेंजामिन नेतन्याहू, बराक ओबामा, शेख हसीना और अबू धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान का विमानस्थल पर स्वागत करने वाले मोदी ने उन्हें हवाई अड्डे पर रिसीव क्यों नहीं किया? जस्टिन ट्रूडो से दरअसल पीएम मोदी खुन्नस खाये हुए थे। जस्टिन ट्रूडो अपनी यात्रा में एक ऐसे शख्स को ले आये थे, जिसकी जानकारी मिलते ही पीएम मोदी की भृकुटियां चढ़ गईं। वह शख्स था, कनाडा का तथाकथित पत्रकार मनवीर सिंह सैनी, जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2015 की कनाडा यात्रा का विरोध किया था। सैनी ने वैसा बैनर पकड़ रखा था, जिस पर लिखा था, ‘मोदी एक आतंकवादी है’, ‘मोदी आपका कनाडा में स्वागत नहीं है’, और ‘भारत खालिस्तान से बाहर है’। तस्वीरें तब वायरल हुई थीं।
4 नवम्बर, 2015 से जस्टिन ट्रूडो सत्ता में हैं। उससे तीन माह पहले, 1 अगस्त, 2015 को पीएम मोदी जब कनाडा गए थे, तब यह बैनर कांड हुआ था, उस समय स्टीफन हार्पर सत्ता में थे। मोदी ने इसे इग्नोर किया, और कनाडा से सम्बन्ध प्रगाढ़ करने की दिशा में कई समझौते किये। दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सौहार्द्रपूर्ण बनें, इसे ध्यान में रखकर गुजराती मूल के नादिर पटेल को जस्टिन ट्रूडो के सत्ता में आने के कोई 10 महीने पहले दिल्ली, हाई कमिश्नर बनाकर भेजा गया था। लेकिन नादिर पटेल के संभाले बात संभल नहीं रही थी।
2018 में यात्रा समापन की पूर्व संध्या पर नई दिल्ली स्थित कनाडाई उच्चायोग में एक पार्टी का आयोजन था, जिसमें सिख अलगाववादी जसपाल अटवाल को, ट्रूडो के साथ आये एक सांसद ने पार्टी में आमंत्रित किया था। जसपाल अटवाल को 1986 में कनाडा की यात्रा के दौरान एक भारतीय कैबिनेट मंत्री की हत्या की कोशिश करने का दोषी ठहराया गया था। अटवाल को जेल में डाल दिया गया। रिहा होने के बाद अटवाल व्यवसायी बन गए। बाद में अटवाल जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी के समर्थक बन गए, और वाशिंग मशीन में धुल गए।
बहरहाल, कनाडा के उच्चायुक्त पद पर नादिर पटेल साढ़े तीन साल के लगभग रह पाए, उनकी जगह कैमरोन मैके को 16 मार्च, 2022 को तैनात किया गया। लेकिन कैमरोन मैके वही कर रहे हैं, जो उनका कमांड करने को बोल रहा है। ट्रूडो एक बार फिर 9 और 10 सितंबर, 2023 को दिल्ली आये। दिल्ली में आयोजित जी-20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने कई विश्व नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं, लेकिन ट्रूडो को नज़रअंदाज़ कर दिया। इससे नाराज़ कनाडा ने अगले माह व्यापार मिशन के एक कार्यक्रम को कैंसिल कर दिया। इस नूराकुश्ती का एक दिलचस्प पहलू यह है, कि भारत ने कनाडा को निर्यात में लगातार वृद्धि की है। 2016-17 में 2.0 बिलियन डॉलर से यह बढ़कर 2023-24 में 3.8 बिलियन डॉलर हो गया है।
कनाडा में इस बार आम चुनाव जस्टिन ट्रूडो जीत पाएंगे? इस सवाल के हवाले से कई सर्वे एजेंसियां शक ज़ाहिर कर रही हैं। कनाडा में प्रवासी सिख वोटर्स के बीच जस्टिन ट्रूडो अपनी लोकप्रियता बनाये रखना चाहते हैं। ‘एंटी मोदी हाइप’ के पीछे यह सबसे बड़ा कारण है। किसान आंदोलन के समर्थन में दिसंबर, 2020 को जो बयान जस्टिन ट्रूडो ने दिया, वह भी इसी रणनीति का हिस्सा था, जो मोदी से निजी अदावत को भी आगे बढ़ा रहा था। 2021 की जनगणना के अनुसार, कनाडा में 771,790 सिख रहते हैं। आप कह सकते हैं कि पंजाब के बाहर कनाडा में सबसे बड़ी सिख आबादी है। चुनाव अमेरिका में भी है, जिसके लिए 70,697 सिख वोटर मायने रखते हैं। कनाडा के बाद ब्रिटेन दूसरा देश है, जहां सिखों की आबादी पांच लाख, 35 हज़ार है। तीसरे नंबर पर ऑस्ट्रेलिया है जहां दो लाख, 10 हज़ार 400 सिख बसे हुए हैं। न्यूज़ीलैंड में 41 हज़ार सिख आबादी है। ये ‘फाइव आइज़’ वाले वो देश हैं, जहां बसी सिख आबादी को मुख्यधारा की राजनीति इग्नोर नहीं कर सकती।
दोनों लीडरशिप के बीच तनाव 2023 से ज्यादा तेज़ हुआ है। उसका मुख्य कारण आम चुनाव कहें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। 18 जून, 2023 को 45 वर्षीय अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की वैंकूवर के उपनगर शहर सरे में गुरुद्वारे से निकलते समय हत्या कर दी गई थी। उसकी हत्या से दो साल पहले 2020 में, हरदीप सिंह निज्जर को भारत सरकार द्वारा ‘आतंकवादी’ घोषित कर दिया गया था। निज्जर की हत्या मामले में ‘फाइव आइज़’ वाले देश भारत के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा खोल चुके हैं। उसमें घी का काम गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या वाली तथाकथित साज़िश कर रही है, जिसके लपेटे में गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल तक आ गए हैं। जिस तरह से सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़ आई हुई है, उसने कई सवालों को जन्म दिया है।
19 सितंबर, 2024 को, ओटावा ने एक भारतीय राजनयिक को निष्कासित कर दिया, और भारत ने भी एक कनाडाई राजनयिक को निष्कासित करके जवाबी कार्रवाई की। निष्कासन उसी समय हुआ जब ओटावा ने घोषणा की कि वह निज्जर की हत्या से भारतीय सरकारी एजेंटों को जोड़ने वाले ‘विश्वसनीय आरोपों की सक्रिय रूप से जांच कर रहा है’। कनाडा और भारत ने इस सप्ताह एक-दूसरे के खिलाफ बदले की कार्रवाई करते हुए 12 राजनयिकों को निष्कासित कर दिया, जिनमें दोनों देशों के शीर्ष राजदूत भी शामिल थे। 81 साल से ‘फाइव आइज़’ ब्रिटेन-अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड के बीच ख़ुफ़िया सहयोग कर रहा है, लेकिन क्या इनकी सूचनाओं से चुनावी लक्ष्य भी निर्धारित होता है? ट्रूडो ने न सिर्फ मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, चीनी राष्ट्रपति शी भी इस बार निशाने पर हैं।
तीन साल पहले का एक वाकया है, 2021 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एक पेपर प्रस्तुत किया गया था, कई उदाहरणों के साथ जिसका निष्कर्ष था, ‘फाइव आइज़ न सिर्फ़ जासूसी गठबंधन है, बल्कि इसके नेता एक-दूसरे के राजनीतिक हितों का ध्यान रखते हैं।’ समझदार के लिए इतना इशारा काफ़ी है!

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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