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2014 में एंटी इन्कमबेंसी, 2019 में मोदी की सुनामी पड़ी भारी

09:09 AM Mar 31, 2024 IST

10 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस लगातार दो लोकसभा चुनाव में पिछड़ी

दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 30 मार्च
केंद्र व हरियाणा में लगातार दस वर्षों तक सत्ता में रही कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनावों में एंटी इन्कमबेंसी की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। बेशक, इन चुनावों में पूर्व सीएम और विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपना ‘किला’ बचाने में कामयाब रहे, लेकिन कांग्रेस हाशिये पर पहुंच गई। वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में मोदी की सुनामी के सामने हुड्डा का गढ़ भी ढह गया। अब एक बार फिर चुनावी महाभारत के लिए बिसात बिछ चुकी है।
केंद्र व हरियाणा की भाजपा सरकार एक बार फिर हरियाणा में 2019 के प्रदर्शन को दोहराने की जुगत में है। बेशक, दस वर्षों के कार्यकाल के बाद भाजपा के प्रति भी एंटी इन्कमबेंसी हो सकती है लेकिन भाजपा की माइक्रो मैनेजमेंट इस मामले में कांग्रेस पर भारी पड़ती है। भाजपा प्रदेश में लोकसभा की सभी दस सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। वहीं कांग्रेस अभी तक एक भी सीट पर चेहरा नहीं दे पाई है। इतना ही नहीं, भाजपा ने 6 संसदीय सीटों पर नये चेहरों को मौका दिया है।
2014 के लोकसभा चुनावों को अगर देखें तो स्पष्ट होगा कि कांग्रेस को हाशिये पर पहुंचाने में भाजपा के अलावा इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का बड़ा रोल रहा। 2014 के चुनावों में इनेलो ने न केवल दो संसदीय सीटों – हिसार व सिरसा पर जीत हासिल की बल्कि कई सीटों पर कांग्रेस की हार का मुख्य कारण भी इनेलो ही बना। इनेलो प्रत्याशियों ने कुछ सीटों पर कांग्रेस से भी अधिक मत हासिल किए थे। कारण साफ हैं – उन चुनावों में कांग्रेस के प्रति लोगों में गुस्सा था।
हालांकि अब हालात बदले हुए हैं। चौटाला परिवार और पार्टी में हुए बिखराव के बाद इनेलो का वोट बैंक बिखरा है। चौटाला पुत्र डॉ़ अजय सिंह चौटाला ने इनेलो से अलग होकर जननायक जनता पार्टी (जजपा) का गठन कर लिया। इसी वजह से 2019 के लोकसभा चुनावों में इनेलो से अधिक मत प्रतिशत जजपा ने हासिल किए। 2019 के विधानसभा चुनावों में इनेलो एक सीट पर सिमट गई और जजपा 10 सीट हासिल करके करीब साढ़े 4 वर्षों तक सत्ता में भागीदार रही।
2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने उस समय कुलदीप बिश्नोई के नेतृत्व वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा। भाजपा ने आठ सीटों पर चुनाव लड़ा। हिसार व सिरसा हजकां के कोटे में गई। कुलदीप बिश्नोई ने हिसार से चुनाव लड़ा और वे इनेलो के दुष्यंत चौटाला के सामने शिकस्त खा बैठे। दुष्यंत चौटाला 4 लाख 94 हजार 478 वोट लेकर संसद पहुंचे। वहीं बिश्नोई को 4 लाख 62 हजार 631 मत मिले। कांग्रेस उम्मीदवार व पूर्व वित्त मंत्री प्रो़ संपत सिंह को महज 1 लाख 2 हजार 509 वोट मिले। संपत सिंह की जमानत भी नहीं बची। हजकां ने गठबंधन में सिरसा से पूर्व सांसद डॉ़ सुशील इंदौरा को चुनाव लड़वाया, लेकिन इंदौरा को बुरी हार का सामना करना पड़ा। इनेलो सीट पर चरणजीत सिंह रोड़ी ने 3 लाख 47 हजार 203 वोट लेकर जीत हासिल की। कांग्रेस के डॉ़ अशोक तंवर 4 लाख 62 हजार 631 वोट लेकर दूसरे नंबर पर रहे। रोचक पहलू यह है कि कुलदीप बिश्नोई और अशोक तंवर अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं वहीं सुशील इंदौरा कांग्रेस में हैं।

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जब श्रुति पहुंची तीसरे नंबर पर

भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर भूतपूर्व सीएम स्व़ चौ़ बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी 2014 के चुनावों में तीसरे पायदान पर रहीं। इनेलो के बहादुर सिंह ने उन्हें पछाड़ दिया। बहादुर सिंह को 2 लाख 75 हजार 148 वोट मिले। वहीं भाजपा के धर्मबीर सिंह ने भाजपा टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा और 4 लाख 4 हजार 542 वोट हासिल किए। यानी इस सीट पर कांग्रेस को हाशिये पर पहुंचाने में इनेलो का सबसे बड़ा रोल रहा।

सोनीपत में भी इनेलो ने बिगाड़ा खेल

2014 में सोनीपत सीट पर भाजपा ने कांग्रेस से आए रमेश चंद्र कौशिक पर दांव लगाया। कौशिक 3 लाख 47 हजार 203 वोट लेकर पहली बार संसद पहुंचे। कांग्रेस ने गोहाना विधायक जगबीर सिंह मलिक पर दांव लगाया था, लेकिन उन्हें 2 लाख 69 हजार 389 ही वोट हासिल हुए। वहीं इनेलो के पदम सिंह दहिया ने 2 लाख 64 हजार 404 वोट हासिल किए। यानी इस संसदीय सीट पर भी इनेलो ने कांग्रेस का खेला बिगाड़ा।

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गुरुग्राम में जाकिर ने बदला रुख

गुरुग्राम से कांग्रेस टिकट पर सांसद बनते रहे राव इंद्रजीत सिंह ने 2014 में भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ा। वे 6 लाख 44 हजार 780 वोट लेकर जीते। इनेलो प्रत्याशी जाकिर हुसैन ने कांग्रेस की जमानत जब्त करवा दी। कांग्रेस ने पूर्व विधायक धर्मपाल यादव पर दांव खेला था। उन्हें महज 1 लाख 33 हजार 713 वोट हासिल हुए। वहीं जाकिर हुसैन ने 3 लाख 70 हजार 58 वोट लिए। जाकिर के रण में आते ही गणित बदल गया।

सैलजा ने छोड़ दिया था मैदान : पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा ने 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। वे राज्यसभा चली गईं। ऐसे में अंबाला से कांग्रेस ने राजकुमार वाल्मीकि को चुनाव लड़वाया। इनेलो व बसपा ने मिलकर वाल्मीकि के समीकरण बिगाड़ दिए। भाजपा के रतनलाल कटारिया 6 लाख 12 हजार 121 मत लेने में कामयाब रहे। वाल्मीकि को 2 लाख 72 हजार 47 वोट मिले। वहीं इनेलो को 129571 और बसपा को 102627 वोट मिले।
धर्मनगरी में भी फेल हुआ था गणित : लगातार दो बार कुरुक्षेत्र से सांसद रहे नवीन जिंदल का गणित भी 2014 में इनेलो ने ही बिगाड़ा था। भाजपा के राजकुमार सैनी 418112 मत लेकर चुनाव जीते। वहीं जिंदल को 2 लाख 87 हजार 722 वोट मिले। इनेलो प्रत्याशी बलबीर सिंह सैनी ने 2 लाख 88 हजार 376 वोट हासिल किए। बसपा के चतर सिंह ने भी 68 हजार 926 वोट लेकर समीकरण बदले। कुरुक्षेत्र में इस बार नवीन जिंदल भाजपा टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं।
करनाल में संधू और मराठा बने रोड़ा : करनाल से दो बार सांसद रहे डॉ़. अरविंद शर्मा को हैट्रिक लगाने से रोकने में इनेलो व बसपा ने भी अहम भूमिका निभाई। भाजपा ने अश्विनी चोपड़ा पर दांव खेला। वे 594817 वोट लेकर संसद पहुंचे। अरविंद शर्मा को 2 लाख 34 हजार 630 वोट हासिल हुए। इनेलो के जसविंद्र सिंह संधू ने 1 लाख 87 हजार 902 वोट हासिल किए। इसी तरह से बसपा टिकट पर लड़े मराठा वीरेंद्र सिंह को 1 लाख 2 हजार 628 मत हासिल हुए।
जब भड़ाना की जब्त हुई जमानत : फरीदाबाद में अवतार सिंह भड़ाना को कांग्रेस का बड़ा नेता माना जाता रहा। 2014 में भाजपा के कृष्ण पाल गुर्जर ने पहली ही बार उनकी जमानत जब्त करवा दी। गुर्जर को 6 लाख 52 हजार 516 वोट मिले। वहीं भड़ाना को महज 1 लाख 85 हजार 643 वोट हासिल हुए। इनेलो के आरके आनंद ने 1 लाख 32 हजार 472 तथा आम आदमी पार्टी के पुरुषोतम ने 67437 मत हासिल किए। बसपा को भी 66 हजार वोट मिले।
खरकड़ा ने बिगाड़ा था धनखड़ का गेम : 2014 में भी रोहतक संसदीय सीट पर सभी की नजऱें लगी थीं। कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा के मुकाबले भाजपा ने ओमप्रकाश धनखड़ को चुनाव लड़वाया। दीपेंद्र को मिले 4 लाख 90 हजार 63 मतों के मुकाबले धनखड़ को 3 लाख 19 हजार 436 वोट मिले। वहीं इनेलो के शमेशर सिंह खरकड़ा ने 1 लाख 51 हजार 120 वोट हासिल किए। यानी खरकड़ा ने धनखड़ का गेम बिगाड़ दिया। इसके बाद खरकड़ा भाजपा में ही शामिल हो गए।

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