संकट में पशुपालक
पंजाब, हिमाचल प्रदेश व राजस्थान में दुधारू पशुओं के लंपी स्किन का शिकार होने के बाद बीमारी के हरियाणा के यमुनानगर, सिरसा आदि कई जिलों में भी दस्तक देने से चिंताएं बढ़ गई हैं। इस संक्रामक रोग ने पशुपालकों को गंभीर संकट में डाल दिया है। पशुओं की बीमारी व लगातार होती मौतों से दूध का उपयोग करने वाले लोग भी चिंतित हैं कि कहीं इस बीमारी का प्रभाव दूध पीने वाले लोगों पर न हो जाये। बताया जा रहा है कि इस बीमारी का सर्वाधिक प्रभाव जर्सी नस्ल की गाय पर पड़ रहा है। संक्रमण के तेज होने से हजारों पशु इसकी चपेट में हैं। एक तो पशुपालकों को आर्थिक नुकसान हो ही रहा है, वहीं दूध का कारोबार करने वाले लोगों के लिये भी मुश्किल खड़ी हो गई है। दरअसल, दूध को लेकर उपभोक्ताओं के मन में शंका पैदा हो रही है। कई लोगों ने दूध का उपयोग बंद करके पाउडर वाले दूध का प्रयोग करना आरंभ कर दिया है। वहीं संकट यह भी है कि इस बीमारी की चपेट में आने वाली गायों का दूध भी कम होने लगा है। दरअसल, सरकारें देर से जागी हैं और प्रभावी टीके की व्यवस्था समय रहते नहीं हो पायी है। कहने को पंजाब सरकार ने पशु मेलों आदि सार्वजनिक आयोजनों पर रोक लगाई है, लेकिन इतने मात्र से बीमारी का प्रसार रुकने की कम ही संभावना है। यह संकट गौशाला प्रबंधकों के सामने भी है जहां बड़ी संख्या में गायें रखी जाती हैं। ऐसी स्थिति में पशुओं के लिये पर्याप्त चिकित्सा की व्यवस्था कर पाना एक चुनौती होगा। दरअसल, जब देश में इंसानों के अस्पताल ही बदहाली की स्थिति में हैं तो पशुओं के लिये पर्याप्त इलाज की संभावना तो क्षीण ही है। एक तो पशु अस्पताल पहले ही गिने-चुने हैं, वहीं चिकित्सकों व स्टाफ की कमी बराबर बनी रहती है। निस्संदेह, इस बीमारी की कारगर वैक्सीन उपलब्ध कराने की दिशा में गंभीर पहल हो क्योंकि अभी तो वैकल्पिक वैक्सीन से ही काम चलाया जा रहा है।
बहरहाल,एक बात तो तय है कि इस गंभीर बीमारी का निदान फौरी उपचार से नहीं हो सकता। समय रहते दवाओं की व्यवस्था हो तथा स्वस्थ पशुओं को यथाशीघ्र वैक्सीन उपलब्ध करायी जाए। इस महामारी से युद्ध स्तर पर जूझने की जरूरत है। साथ ही चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता में तेजी लाने के साथ ही पशुपालकों को जागरूक करने की भी जरूरत है ताकि इस संक्रामक रोग की चपेट में आने से अन्य स्वस्थ पशुओं को बचाया जा सके। साथ ही पशु चिकित्सालयों में चिकित्सकों, कर्मचारियों व दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाये। हालांकि, राज्य सरकार के अधिकारी कह रहे हैं कि यह रोग पशुओं तक सीमित है और इंसानों में नहीं फैलता, अत: इसको लेकर आतंकित होने की जरूरत नहीं है। सावधानी के तौर पर दूध को उबालकर ही पीने की सलाह दी जा रही है। वहीं हरियाणा सरकार के अधिकारी बीमारी से बचाव के लिये दवा कंपनियों द्वारा बाजार में इंजेक्शन उपलब्ध होने की बात कर रहे हैं। साथ ही पशुपालकों को सलाह दी जा रही है कि इस बीमारी से ग्रस्त पशुओं को वैक्सीन न दी जाये, उससे रोग बढ़ने की आशंका बनी रहती है। इसके अलावा केंद्र सरकार की ओर से रोग से प्रभावित राज्यों के पशुओं के दूसरे राज्यों में जाने पर चौकसी बरतने के निर्देश दिये गये हैं। अधिकारियों से पशुओं की अन्य राज्यों में आवाजाही पर सख्ती बरतने को कहा गया है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जब हाल के दिनों में जंगली जानवरों से वायरस इंसान के शरीर में दस्तक देने का खतरा लगातार बढ़ रहा है, इससे बचाव के लिये हम कितने तैयार हैं? कोरोना वायरस से उपजी तबाही को पूरी दुनिया भुगत चुकी है। इस दिशा में शोध अनुसंधान का दायरा बढ़ाने की जरूरत है ताकि मानवता को नये संक्रामक रोगों से निरापद रखा जा सके। साथ ही पशु चिकित्सालयों को विस्तार देने के साथ उपचार के लिये व्यापक प्रबंधन करने की जरूरत है।