अनुभवों की गहराई का विश्लेषण
सैली बलजीत
मनोज कुमार पाण्डेय एक प्रतिष्ठित कथाकार हैं, जिनकी कहानियों का आधार इलाहाबाद के गांवों की पृष्ठभूमि पर है। उनका नवीनतम कहानी संग्रह ‘प्रतिरूप’ बारह कहानियों का संकलन है, जो ग्रामीण और कस्बाई परिवेश को गहराई से प्रस्तुत करता है। पाण्डेय की कहानियों में छोटी-छोटी घटनाओं को भव्यता के साथ प्रस्तुत करने की अद्भुत कला है।
संग्रह की ‘खेल’ कहानी बचपन की गांव की छवियों को जीवंत करती है, जो पाठकों की स्मृतियों को एक अलौकिक स्वरूप प्रदान करती है। ‘जेबकतरे का बयान’ और ‘तितलियां’ संवेदनशील अपराधियों की नैतिकता और भावनात्मक जटिलताओं को दर्शाती हैं, जहां जेबकतरे के झपटे हुए बटुओं में छुपी तस्वीरें उनके आंतरिक संघर्षों को उजागर करती हैं।
‘झपकी’ कहानी एक फंतासी है, जिसमें लेखक ने जीवन के कुछ विशिष्ट क्षणों को संजोया है और झपटमार व्यवस्था पर कठोर प्रहार किया है। ‘पैर’ और ‘पुरहण की खुशबू’ कहानियां प्रेम को अद्वितीय तरीके से प्रस्तुत करती हैं।
लेखक की कहानियों में अनुभवों की गहराई और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण देखने को मिलता है। ‘क्या पता बच ही जाऊं मैं’ कहानी व्यवस्था की क्रूरता को भव्यता से उजागर करती है। ‘सपनों वाला घर’, ‘मेरा झोला’, और ‘उमस भरी जुलाई में इलाहाबादी डाकिया’ उनकी कथा संरचना की दक्षता का प्रतीक हैं।
उनकी अंतिम लंबी कहानी ‘प्रतिरूप’ राजनीतिक दांव-पेचों को सजीव रूप में प्रस्तुत करती है और समकालीन समय की सामाजिक, राजनीतिक, और पेशागत चुनौतियों को उकेरती है। मनोज कुमार की कहानियां समाज की भयावहताओं को विभिन्न दृष्टिकोणों से रूपायित करती हैं, जो उनके गहरे संवेदनात्मक और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं।
पुस्तक : प्रतिरूप लेखक : मनोज कुमार पाण्डेय प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 158 मूल्य : रु. 250.