रेडियो प्रेम की प्रेरक अभिव्यक्ति
आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
नीरज शर्मा की कृति ‘माइक का दीवाना’ का आवरण पहली नज़र में ही हर उस पाठक को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम है, जो आवाज़ की दुनिया में थोड़ी-सी भी रुचि रखता है। माइक के माध्यम से आवाज़ की यह दुनिया मंच पर भी हो सकती है और रेडियो-टीवी पर भी। इन क्षेत्रों से जुड़ा होने के कारण समीक्ष्य कृति के आवरण ने मुझे समीक्षक ही नहीं बल्कि बतौर रेडियो-कलाकार भी पहली ही नज़र में आकर्षित किया है।
निश्चित रूप से यह कृति लेखक की माइक के प्रति दीवानगी की वह कहानी है जो रेडियो से प्रसारित आवाज़ के प्रति लेखक के आकर्षण से शुरू होकर, बतौर कलाकार आकाशवाणी के ‘युववाणी’ अनुभाग के माध्यम से रेडियो से जुड़ने और फिर रेडियो-नाटक के क्षेत्र में अपने अभिनय द्वारा प्रतिभा-प्रदर्शन के दौर से गुज़रते हुए अंत में लेखक की इस चिंता पर आकर ठहरती है कि रेडियो-नाट्य विधा आज लुप्त होने के कगार पर है।
विधा की दृष्टि से किसी क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करके उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने वाले विशेषज्ञ के रूप में किसी व्यक्ति के जीवन-चरित को उसकी जीवनी अथवा संस्मरणों के रूप में पढ़ना-सुनना व्यक्ति, पाठक अथवा श्रोता को उसके जैसा बनने के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ क्षेत्र-विशेष से संबंधित जिज्ञासा से जुड़े बहुत से प्रश्नों के उत्तर भी इस प्रामाणिकता के साथ देता है कि पाठक अथवा श्रोता लेखक की किसी बात पर विश्वास किए बिना रह ही नहीं सकता है। ऐसा ही प्रस्तुत कृति में भी हुआ है। सामग्री का प्रस्तुतीकरण भी ऐसे अंदाज़ में हुआ है कि इसमें किसी रेडियो-प्रसारण और सच कहूं तो नाटक के कथानक की तरह से सामग्री को पूरी रोचकता के साथ प्रस्तुत किया गया है।
लेखक ने रेडियो के प्रति अपनी बाल-सुलभ जिज्ञासा, इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए बाल-सुलभ प्रयास, फिर युवा-अवस्था में अन्य कलाकारों की तरह से अपने स्कूल समय में रेडियो नाटकों से जुड़ना और फिर अपने एक मित्र के माध्यम से रेडियो के युववाणी के लिए आवेदन भिजवाना, रेडियो से जुड़ना, फिर पहले मानदेय का चेक मिलने और मां के भावुक होने आदि घटनाओं का विवरण बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने अपने नाट्य-गुरु सत्येन्द्र शरत् जी और अपने समय के नाट्य कलाकारों व निर्देशकों के साथ काम करने के अनुभव और अतीत की यादों को भी बहुत ही रोचक तरीके से साझा किया है।
पुस्तक : माइक का दीवाना लेखक : नीरज शर्मा प्रकाशक : दा राइट आर्डर, कर्नाटक पृष्ठ : 254 मूल्य : रु. 350.