पीड़ा और युद्ध के रोमांच के बीच
सहीराम
हे मेरे देश के मणिपुर राज्य अभी ठहरो! अभी हम आपके दुख से दुखी नहीं हो सकते। वैसे तो जब पिछले पांच महीनों से ही दुखी नहीं हुए तो अब क्या होंगे। हां, ठीक है आप एकदम लहू-लुहान हैं, मान लिया, दर्द से कराह रहे हैं, पीड़ा से तड़प रहे हैं। पर अभी हम आपके आंसू नहीं पोंछ सकते, आपके घावों पर मलहम नहीं लगा सकते हैं। जब पिछले पांच महीनों से आप यह पीड़ा सह रहे हो, तो और सह लो। अच्छा आपको कब तक यह दर्द, यह पीड़ा सहनी पड़गी? कह नहीं सकते जी। वैसे भी जब वहां के बाशिंदों का बंटवारा ही स्थायी किस्म का हो रहा है तो दर्द और पीड़ा भी अस्थायी क्यों हों। खैर, अभी यह दर्द और पीड़ा की बात मत करो। देखो इस्राइल और फलस्तीन का युद्ध छिड़ गया है, तो हमें थोड़ा व्यस्त हो लेने दो। मरते-पिटते हुए फलस्तीनियों को देखकर थोड़ा युद्ध का रोमांच देखने दो। देखो, हम रूस और यूक्रेन युद्ध का उस तरह से मजा नहीं ले पाए थे। क्या बात है यार, तुम तो अपने आपको रूस और यूक्रेन के बराबर समझने लगे। मणिपुर वैसे भी पूर्वोत्तर का एक छोटा-सा राज्य है। जब पूर्वोत्तर को ही नहीं जानते तो मणिपुर को ही कौन जानेगा।
खैर जी, अभी तो इस नए युद्ध को देखने दो। मरते-पिटते फलस्तीनियों को देखने दो। देखो हमारे खबरिया चैनलों वाले भी वहां पहुंच गए हैं। हां, मणिपुर नहीं पहुंचे थे, ठीक है। तो क्या इस्राइल भी न जाएं। इस्राइल हमारा मित्र है। हां, ठीक है आप भी अपने ही थे। लेकिन इस्राइल की बात और है। वह बेशक छोटा-सा देश है, पर ताकतवर है। दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका उसके साथ खड़ा है। हमारे प्रधानमंत्री और वहां के प्रधानमंत्री में दांत-काटी यारी है। लेकिन उस युद्ध को हमारे प्रधानमंत्री भी नहीं रुकवा सकते। रुकवाएं भी क्यों? वैसे भी मित्र भारी पड़ रहा है। तो जरा इस नए मित्र को जीतते हुए देखने दो। देखने दो कि फलस्तीनियों को वह किस तरह से सबक सिखाता है। ठीक है पहले फलस्तीनियों से हमारी दोस्ती थी। पर अब यह नया भारत है। अब यहां किसी का तुष्टीकरण नहीं चलता। फलस्तीनियों का साथ तो हम तुष्टीकरण के लिए ही देते थे न। लेकिन इस्राइल के साथ हम दिल से खड़े हैं। अच्छा आपके साथ क्यों नहीं खड़े हुए? अब अपना यह रोना छोड़ो भी यार। देखो यह युद्ध शुरू हुआ तो खूब फेक न्यूज चल रही हैं। सोशल मीडिया में फर्जीवाड़े का जबर्दस्त उधम मचा हुआ है। हां-हां, फर्जी वीडियो और फेक न्यूज तो तुम्हें लेकर भी खूब चली थी। लेकिन इनका पक्ष ही दूसरा है। नहीं?