For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

झीलों के शहर में  जन्नत के बेइंतहा नज़ारे

07:36 AM Feb 16, 2024 IST
झीलों के शहर में  जन्नत के बेइंतहा नज़ारे
Advertisement

अमिताभ स.
उदयपुर देश के रोमांटिक शहरों में से एक है। एक तो उदयपुर की झीलें और दूसरा सड़कों पर यातायात और भीड़-भाड़ न के बराबर वहां गर्मियों में भी तपिश महसूस नहीं होने देतीं। मेवाड़ के सिसोदिया राजपूतों ने 1567 में चित्तौड़गढ़ के अस्त होने के बाद उदयपुर आ कर परियों-सा खूबसूरत शहर बसाया था। इतिहास बताता है कि राणा उदय सिंह ने 16वीं सदी में उदयपुर की खोज की थी और बीचोंबीच गैर-कुदरती पिछौला झील का विस्तार भी किया। आज उदयपुर में महल, हवेली, मन्दिर, बाग और म्यूजियम की भरमार है।

Advertisement

झीलें, और पोल भी

उदयपुर में चार झीलें हैं- पिछौला लेक, फतेह सागर, उदय सागर और रंग सागर। चारों झीलें एक नहर से आपस में जुड़ी हैं। सामने एक ओर ऊंचे पहाड़ पर मॉनसून पैलेस है, तो दूसरी ओर नीमच माता मन्दिर। उधर सिटी पैलेस की दीवार से सट कर पिछौला लेक है। लेक में जग मन्दिर होटल है। और ताज, ओबराय व लीला होटल्स भी इसी लेक में हैं। करीब ही है दूध तलाई नाम की झील। किसी जमाने में यहां दूध बिकता था, आज पूजा, अर्चना और आरती का केन्द्र है।
जिस सड़क से गुजरें, उदयपुर में झीलें नज़र आती हैं, तो पोल भी कम नहीं दिखते। पोल यानी खम्भे नहीं, बल्कि दरवाजे। यहां मेवाड़ के प्राचीन द्वारों को पोल कहते हैं। सूरज पोल, कृष्ण पोल, दंड पोल, ब्रह्म पोल वगैरह कुल सात पोल हैं। उदयपुर के उत्तर में खड़े हाथी पोल के आसपास पुराने और थोक बाजार हैं। इसमें आपस में जुड़े दो द्वार हैं- पहला, बाहरी द्वार पूर्व मुखी है, तो दूसरा, भीतरी द्वार उत्तर की ओर। भीतरी दरवाजा शहर को फतेह सागर से जोड़ता है।

सहेलियों की बाड़ी

फतेह सागर के बगल में ‘सहेलियों की बाड़ी’ नाम का सुंदर बाग है। हरियाली और झर-झर बहते फव्वारों की ठंडक टूरिस्ट्स को लुभाती है। बताते हैं कि इसे महाराणा संग्राम सिंह (द्वितीय) ने 1710 से 1734 के बीच राज परिवार की महिलाओं के सैरगाह के लिए बनवाया था। इसीलिए नाम ‘सहेलियों की बाड़ी’ रखा गया। यह देश के मशहूर बागों में शुमार है। बाग के कई भाग हैं, नाम हैं- सावन भादो, हाथी फव्वारे, रासलीला, बिन बादल बरसात वगैरह। असल में, शुरुआती दौर में, फतेह सागर के करीब छोटे-छोटे कई बगीचे थे। इन्हें महाराणा फतेह सिंह ने सहेलियों की बाड़ी में मिला कर, भव्य स्वरूप प्रदान किया।
सबसे ऊंचे पहाड़ पर सिटी पैलेस है। पिछौला लेक से सटे पैलेस में फतेह पोल के द्वार से दाखिल होते हैं। ऊंचाई से समूचे उदयपुर का हवाई नजारा दिल को खूब भाता हैं। राज आंगन, राणा प्रताप म्यूजि़यम, लक्ष्मी चौक, दिल खुशाल, बड़ा महल वगैरह पैलेस के अहम हिस्से हैं। बड़ा इतना है कि 4-6 घंटे भी घूमने के लिए कम पड़ते हैं। मेवाड़ की एक से एक चित्रकलाओं से रू-ब-रू होने का मौका यहां मिलता है। शिव निवास, फतेह प्रकाश और शम्भू निवास की सैर के बगैर सिटी पैलेस अधूरा ही समझिए।
क्रिस्टल गैलरी भी क्या खूब है और है दरबार हाल के बीचोंबीच लटकता झाड़फानूस। राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स के दीदार का मौका भी यहां मिलता है। चेतक और महाराणा प्रताप उदयपुर अरावली पहाड़ों पर बसा है, जो दिल्ली तक आते हैं। चेतक पर सवार भारी-भरकम भाला थामे महाराणा प्रताप की प्रतिमाएं कई चाैराहों और खास स्थलों की शान बढ़ाती हैं। एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन दोनों का नामकरण महाराणा प्रताप के नाम पर ही हुआ है।
पेचवर्क और पिछवाई पेंटिंग्स की रंग-बिरंगी दुनिया उदयपुर के सिवाय और कहीं नहीं है। यहां कठपुतलियां भी खूब बनती और बिकती हैं। उदयपुर में और खास है सज्जन बाग निवास या गुलाब बाग की सैर। सामने विंटेज कार क्लेक्शन होटल है, जहां महाराजा की दुर्लभ विंटेज कारों को करीब से देखने का मौका मिलता है। उधर घंटा घर से ज्यादा दूर नहीं है श्री जगदीश मन्दिर। सीढ़ियां चढ़कर, 17वीं सदी के प्राचीन मन्दिर में प्रवेश करते हैं। सामने अंकित है- जय जगदीश हरे। गरुड़ भगवान की प्रतिमा है और होते हैं मन्दिर में श्रीविष्णु भगवान के दर्शन। चारों दिशाओं में छोटे-छोटे मन्दिर हैं- सूर्य, गणेश, दुर्गा मां और महादेव गौरी शंकर का।

Advertisement

सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम में

दिल्ली से करीब 664 किलोमीटर दूर है। सड़क से पहुंचने में करीब 13 घंटे लगते हैं, तो ट्रेन से 20 घंटे के आसपास। सीधी उड़ान महज एक घंटे में उदयपुर उतार देती है। महाराणा प्रताप एयरपोर्ट उदयपुर से करीब 26 किलोमीटर परे है।
राजस्थान घूमने-फिरने के लिए सर्दियां बेस्ट हैं। गर्मियों में भी झीलों के आसपास घूमना सुकून भर देता है। मॉनसून के दौरान, खूबसूरती चरम पर होती है।

Advertisement
Advertisement