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कागजों में कमाल, हकीकत में बदहाल

07:00 AM Oct 22, 2024 IST
कागजों में कमाल  हकीकत में बदहाल
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आलोक पुराणिक

भारतीय टीम कागजों पर कमाल लगती है, पर रिजल्ट कमाल नहीं आते हैं। कुल 46 रनों पर पूरी टीम सिमट जाये और वह टीम, जिसमें विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे दिग्गज बल्लेबाज हों।
हाल के विधानसभा चुनावों में हरियाणा में इतने दिग्गज दिख रहे थे एक पार्टी में, फिर वह पार्टी चुनाव हार गयी। तमाम विद्वान बता रहे थे कि वही पार्टी जीतेगी, तमाम सर्वे बता रहे थे कि वही पार्टी जीतेगी। वह पार्टी हार गयी, हालांकि कागज पर वह जीत चुकी थी। कागज पर भारतीय क्रिकेट टीम को देखें, तो वह भी मुकाबला जीतती हुई दिख रही थी, फिर हार गयी।
पर 46 रन सबसे कम स्कोर नहीं है भारतीय टीम का टेस्ट मैच में। भारतीय टीम 36 रन भी बनाकर दिखा चुकी है, टेस्ट में। जब परफारमेंस खराब हो जाए, तो देखना चाहिए कि इससे खराब परफारमेंस कौन-सी है। अभी 46 बने पहले 36 बने यानी 46 का स्कोर भी बेहतर लगता है 36 के मुकाबले। यह राजनीतिक तरकीब है। एक पॉलिटिकल पार्टी कहती है कि उसकी विरोधी पार्टी की सरकार के राज में 900 डकैतियां पड़ीं। इसका जवाब यह दिया जाता है कि हमारे राज में तो सिर्फ 900 डकैतियां पड़ीं, उनकी अपोजिट पार्टी के राज में तो 908 डकैतियां पड़ीं। घटिया का मुकाबला और घटिया से किया जा सकता है। बदमाशी के मुकाबले और बड़ी बदमाशी रखी जा सकती है। ऐसे खुद को बेहतरीन साबित किया जा सकता है।
46 का स्कोर बेहतरीन साबित किया जा सकता है 36 के मुकाबले। आजकल तमाम मामलों में ऐसे ही बेहतर दिखने का चलन है। हर ऊंचाई से बड़ी ऊंचाई हमेशा मौजूद होती है, और हर नीचाई के नीचे और नीचाई मौजूद होती है, बस उसे देखने की जरूरत है।
विराट कोहली और रोहित शर्मा के रहते क्रिकेट टीम डूब जाये, तो मानना चाहिए कि कागज पर कुछ भी दिखाया जा सकता है। अब हकीकत भी बदल रही है। फलां पार्टी कागजों में सौ बार जीती दिखा दी गयी। सचमुच में वह हार गयी एक बार। तो लोकतंत्र के हिसाब से एक तरीके से जीता माना जा सकता है कि कागजों पर, सर्वे में तो वह पार्टी सौ बार जीत चुकी है। एक बार सच में हार गयी, तो भी क्या फर्क पड़ता है।
जी आजकल यही हो रहा है। तमाम यूट्यूब चैनल, यूट्यूब पत्रकार अपनी मर्जी का विश्लेषण दिखाते हैं और मनमाने तरीके से किसी भी पार्टी को जीता हुआ, किसी भी पार्टी को हारा हुआ दिखा देते हैं। इससे उनकी दर्शक संख्या में लगातार बढ़ोतरी होती जाती है। लोग सुनते हैं वो, जो वो सुनना चाहते हैं, वो सच हो या नहीं, इससे फर्क नहीं पड़ता।

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