पुण्य लाभ देता है आमलकी एकादशी व्रत
‘आमलकी’ का अर्थ ‘आंवला’ होता है, जिसे सनातन धर्म एवं हिन्दू संस्कृति के अतिरिक्त हमारे प्राचीन महान ग्रंथ ‘आयुर्वेद’ में भी बेहद उपयोगी एवं श्रेष्ठ बताया गया है। पद्म पुराण में तो बताया गया है कि आंवले का वृक्ष भगवान श्रीहरि विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है।
चेतनादित्य आलोक
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने में दो एकादशी व्रत होते हैं, एक कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में। स्कंद पुराण के वैष्णव खंड के अंतर्गत एकादशी महात्म्य अध्याय में एकादशी व्रत एवं सभी एकादशियों के संबंध में विस्तार से वर्णन किया गया है। भारतीय अंतिम महीने फाल्गुन के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को ‘आमलकी एकादशी’ के नाम से जाना जाता है। यह महाशिवरात्रि और होली के मध्य में पड़ने वाला व्रत है। बता दें कि हिंदू पंचांग के अनुसार यह एकादशी वर्ष की अंतिम एकादशी होती है। वैसे तो शास्त्रों में सभी एकादशियों को अत्यंत महत्वपूर्ण एवं कल्याणकारी माना गया है, लेकिन आमलकी एकादशी को सनातन धर्म में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है। देखा जाए तो ‘आमलकी’ का अर्थ ‘आंवला’ होता है, जिसे सनातन धर्म एवं हिन्दू संस्कृति के अतिरिक्त हमारे प्राचीन महान ग्रंथ ‘आयुर्वेद’ में भी बेहद उपयोगी एवं श्रेष्ठ बताया गया है। पद्म पुराण में तो बताया गया है कि आंवले का वृक्ष भगवान श्रीहरि विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है। वहीं, हिंदू मान्यताओं के अनुसार आंवले के पवित्र वृक्ष में भगवान श्रीहरि विष्णु एवं माता लक्ष्मी का वास होता है। कदाचित इसीलिए आमलकी एकादशी के दिन जगत के पालनहार श्रीविष्णु के अतिरिक्त आंवले के वृक्ष की भी पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान श्रीहरि विष्णु का पूजन करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के वृक्ष का जन्म भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा से हुआ था। इस आंवले का सौभाग्य इतना भर ही नहीं है, बल्कि यह भी कि इसके प्रत्येक भाग में ईश्वर का वास होता है और इस दिन इस वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान श्रीनारायण की पूजा करने से एक हजार गउओं (गौ) के दान करने के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। आंवले के महत्व का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पूजन-अर्चन में प्रसाद के रूप में भी विशेष रूप से भगवान को इसका फल अर्पित किया जाता है।
शास्त्र बताते हैं कि आमलकी एकादशी के दिन आंवले का सेवन करना अत्यंत ही लाभकारी होता है। यही कारण है कि इस दिन आंवले के फल का उबटन बनाकर शरीर में लगाने, आंवला मिश्रित जल से स्नान करने, आंवले को विविध रूपों में ग्रहण करने तथा आंवले के फल का दान करने का विशेष महत्व होता है। पद्म पुराण के अनुसार आमलकी एकादशी का व्रत करने से सैंकड़ों तीर्थों के दर्शन के समान पुण्य प्राप्त होता है। समस्त यज्ञों के बराबर फल देने वाले आमलकी एकादशी व्रत को करने से भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। बता दें कि इस व्रत में आंवले की उपयोगिता इतनी अधिक होती है कि जो लोग आमलकी एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, उन्हें भी इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु को आंवला अर्पित करना और प्रसाद रूप में स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए।
आमलकी एकादशी का व्रत संपूर्ण भारतवर्ष में किया जाता है। हालांकि उत्तर भारत में इसका अधिक प्रचलन देखा जाता है। राजस्थान के मेवाड़ शहर में इस दिन गंगू कुंड महासतिया पर एक छोटे से मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें गोगुन्दा क्षेत्र के कुम्हार मिट्टी के बर्तन की दुकानें लगाते हैं। उड़ीसा में इस एकादशी को ‘सरबासम्मत एकादशी’ के रूप में मनाया जाता है और इस दिन भगवान जगन्नाथ एवं भगवान विष्णु के मंदिरों में भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है। आमलकी एकादशी को आमलक्य एकादशी, आंवला एकादशी, आमली ग्यारस एवं रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु का व्रत रखने वाले उपासक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कुछ क्षेत्रों में इसे ‘पापनाशिनी एकादशी’ के रूप में भी मनाया जाता है। इस बार आमलकी एकादशी का व्रत देश भर में 20 मार्च को रखा जाएगा।
एकादशी पर क्या करें
आमलकी एकादशी के दिन विष्णु सहस्रनाम का पठन अथवा श्रवण करना अत्यन्त लाभदायी होता है, किंतु जो उपासक विष्णु सहस्रनाम का पठन या श्रवण करने में असमर्थ हों, उन्हें निम्न छोटे-छोटे मंत्रों में से किसी एक का 108 बार जाप करना भी पुण्य-फलदायी होता है :-
ॐनमो भगवते वासुदेवाय।
ॐ श्रीनारायणाय नमः।
ॐ श्रीविष्णवे नमः।