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उपचार के साथ जीवनशैली बदलने की भी जरूरत

06:51 AM Nov 17, 2023 IST
उपचार के साथ जीवनशैली बदलने की भी जरूरत
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ज्ञानेन्द्र रावत

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दुनिया में मानसिक रोगों से पीडि़त लोगों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। विश्व के 64 देशों के तकरीबन चार लाख लोगों पर किया गया अध्ययन इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि दुनिया के एक-तिहाई से ज्यादा लोग मानसिक स्वास्थ्य की परेशानियों से ग्रस्त हैं। यह भी कि कोविड महामारी के बाद से लोगों की सेहत के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ। वहीं मानसिक समस्याओं से जूझ रहा हर तीसरा व्यक्ति अवसाद और एंग्जाइटी का शिकार है। आत्महत्या का विचार पनपने के पीछे भी यही अहम कारण है। वर्ष 2021 के दौरान अकेले भारत में 1,64,033 आत्महत्याएं हुईं। इस साल इन घटनाओं में वर्ष 2020 की तुलना में 7.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसके मुताबिक प्रतिदिन देश में 450 आत्महत्याएं हुईं।
दि मेंटल स्टेट आफ द वर्ल्ड रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि लाख कोशिशों के बावजूद आज भी मानसिक स्वास्थ्य मजबूत करने की दिशा में विफलता इस रोग की बढ़ोतरी का अहम कारण है। उस हालत में, जब देश में 9,800 से ज्यादा मनोचिकित्सक और तकरीबन 3,400 क्लिनिकल साइकलोजिस्ट मौजूद हैं। हालांकि 10 साल पहले के मुकाबले कहीं अधिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है लेकिन मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की बहुत कमी है। वहीं देश में कुल बीमारियों में मानसिक विकारों का योगदान दोगुणा से भी ज्यादा है। इसमें 1990 के दशक से दोगुने से ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज की गयी।
देश में कुल आबादी के 14 फीसदी से ज्यादा लोग मानसिक रोगों के शिकार हैं जिसमें 29-40 आयु वर्ग के लोग बहुतायत में हैं। इस बारे में यदि मानसिक समस्याओं से पीड़ित लोगों को नि:शुल्क परामर्श देने वाले सायरस एंड प्रिया वांड्रेवाला फाउंडेशन की मानें तो मानसिक समस्याओं को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ रही है। करीब 53 फीसदी महिलाएं और 42 फीसदी से ज्यादा पुरुष व्हाट्स एप चैट के माध्यम से अपनी समस्याएं साझा कर रहे हैं। फाउंडेशन की प्रमुख प्रिया हीरानंदानी का कहना है कि एक-तिहाई लोग एंग्जाइटी, अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति से जूझ रहे हैं।
यदि मानसिक समस्या के चलते आत्महत्या करने वालों का जायजा लें तो दुनिया भर में आत्महत्या के मामले बढ़ना बेहद चिंतनीय है। हर 40 सैकेंड में कोई एक व्यक्ति आत्महत्या कर रहा है। बीते साल विश्व में 8 लाख लोगों ने आत्महत्या की जिनमें 1.64 लाख से ज्यादा लोग भारत के थे। गौरतलब है कि जीवन का अंत करने से किसी समस्या का समाधान नहीं होता बल्कि आत्महत्या करने से प्रभावित पूरा परिवार आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक समस्याओं में फंस जाता है। एक आत्महत्या करीब 135 लोगों को प्रभावित करती है। इनमें आत्महत्या करने वाला परिवार, नजदीकी रिश्तेदार व मित्र शामिल होते हैं। यह आवेश में लिया गया कदम है। यदि आप आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के दिमाग को दूसरी दिशा में मोड़ सकते हैं तो आप उसकी जान बचा सकते हैं। इहबास संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. ओम प्रकाश कहते हैं कि उनके पास ज्यादातर मूड खराब, अवसाद, घबराहट, नींद न आने, तनाव आदि समस्याओं के रोगी आते हैं। उनके मुताबिक, वे आत्महत्या के मिथक और बचाव को लेकर हेल्पलाइन टेली मानस के जरिये लोगों को जागरूक कर रहे हैं। दिल्ली में हर रोज 50-60 कॉल हेल्पलाइन पर लोग करते हैं।
मौजूदा भागमभाग की जिंदगी भी मानसिक रोगों की अहम वजह है। इससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लोग इसके बावजूद मनोचिकित्सक के पास जाना नहीं चाहते। इसमें मानसिक चिकित्सा सुविधाओं की कमी भी एक बड़ी वजह है। इस संदर्भ में मेंटल हेल्थ फाउंडेशन इंडिया और एम्स के डाक्टरों ने मिलकर एक वेब पोर्टल happyfitindia- mhfindia-org तैयार किया है। इसके माध्यम से लोग खुद अपने मानसिक स्वास्थ्य का ऑनलाइन परीक्षण कर सकते हैं। इस बारे में एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के डॉ. नंद कुमार कहते हैं कि यह पहल मानसिक बीमारियों से बचाव और मानसिक स्वास्थ्य ठीक रखने में मददगार है। वहीं हर मानसिक परेशानी के इलाज के लिए दवा की जरूरत नहीं। बगैर दवा के भी योग, जीवनशैली बदलने से भी मानसिक स्वास्थ्य बेहतर बनाया जा सकता है। यदि पोर्टल पर परामर्श के बाद मानसिक परेशानी दूर नहीं होती तो चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए।
जहां तक अवसाद का सवाल है, आज कोई भी व्यक्ति पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। अवसाद या डिप्रेशन के दौरान इंसान के शरीर में खुशी देने वाले हार्मोन का बनना कम या बंद हो जाता है। इसकी वजह से आप चाहकर भी खुश नहीं हो सकते। आगरा स्थित प्रख्यात मनोचिकित्सक डॉ. केसी गुरनानी का मानना है कि जिस तरह शरीर में अंदरूनी दोष के चलते बीमारियां होती हैं, उसी तरह दिमाग की कार्यप्रणाली प्रभावित होने पर तनाव व अवसाद होता है। दिमाग में तरह-तरह के विचार आते हैं जिनका असर मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पर पड़ता है। सेरेटोनिन, डोपामाइन आदि कई तरह के हारमोन प्रभावित होने लगते हैं।
अवसाद की समस्या अब व्यक्ति विशेष या देश की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की है। मोबाइल ने इसमें और इजाफा किया है। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य को अपने जीवनशैली का हिस्सा बनाना समय की मांग है। मानसिक स्वास्थ्य की बेहतर समझ ही इस समस्या का हल है। वहीं इलाज के अलावा पीड़ितों के दुख-दर्द में सहयोग और साथ देने का विश्वास दिलाने की बेहद जरूरत है।

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