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दूसरों को संबल के साथ जरूरी खुद की संभाल भी

06:36 AM Jul 23, 2024 IST
दूसरों को संबल के साथ जरूरी खुद की संभाल भी
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कामकाज, गृहस्थी की जिम्मेवारी और रिश्तों को निभाने के सिलसिले में व्यक्ति खुद पर ध्यान नहीं दे पाता है। जबकि खुद के लिए समय निकालना भी दायित्व है। जैसे व्यायाम करना, सुकून से बैठ चाय-कॉफी पीना, प्रकृति में समय बिताना, ध्यान करना, फिल्म देखना, परिजनों से बतियाना, पसंदीदा किताब पढ़ना आदि। दरअसल, वक्त निकाल सोचने, स्वयं के जीवन की दशा-दिशा समझने का संदेश देता है सेल्फ केयर डे।

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डॉ. मोनिका शर्मा
जिम्मेदारियों के निर्वहन की यात्रा में महिला हो या पुरुष, एक बात साझी होती है। दोनों के ही व्यवहार से जुड़ा सहज सा लगने वाला यह पक्ष एक समय के बाद अपराधबोध, स्वास्थ्य समस्याएं और एक अनकही सी पीड़ा झोली में डाल देता है। बावजूद इसके संसार के हर हिस्से में बसा इंसान इस मोर्चे पर जरा देरी से चेतता है। खुद की संभाल-देखभाल की अनदेखी का यह पहलू समाज के हर वर्ग में देखने को मिलता है। लिंग भेद से परे दायित्वों को निभाने में गुम अधिकांश लोग अपने ही ऊपर स्नेह लुटाना भूल जाते हैं। खुद को ही संबल देने में कोताही करते हैं। बता दें कि 24 जुलाई को वैश्विक स्तर पर ‘सेल्फ केयर डे’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस सबसे जुड़कर स्वयं से न छूटने का संदेश देता है।


खुद की अनदेखी का परिवेश
भारतीय जीवनशैली में तो सचमुच अपने आप के प्रति कोई जवाबदेही ही नहीं रह जाती। महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी सामाजिक संबंधों, पारिवारिक दायित्वों और कामकाजी आपाधापी के चलते खुद को भुला बैठते हैं। जबकि मित्रों, सहकर्मियों और परिजनों के प्रति प्रेम, सहयोग और सराहना का भाव रखने साथ ही खुद के लिए समय निकालना जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस ओर ध्यान खींचने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय स्व-देखभाल फाउंडेशन द्वारा साल 2011 मंक स्व-देखभाल के महत्व को समझने के प्रति सजगता और जागरूकता लाने के लिए यह दिन चुना गया। जुलाई यानि साल का 7वां महीना और 24 तारीख यानी चौबीस घंटे के समय को दर्शाने के लिए यह दिन चुना गया। जिसका सीधा सा अर्थ ही आज-कल पर टालने के बजाय आत्म-देखभाल के लिए भी समय निकालना आवश्यक है।

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ठहरकर सोचने का समय
दरअसल ,यह दिन कुछ विशेष करने की बात नहीं करता। स्व-देखभाल को समर्पित यह दिन भागदौड़ भरी जिंदगी में जरा ठहरकर स्वयं अपने जीवन की भी दशा और दिशा को समझने का संदेश देता है। आत्म-देखभाल को लेकर सहज से तरीके अपनाने की बात लिए है। जैसे व्यायाम करना, सुकून से बैठकर चाय-कॉफी पीना, प्रकृति के साथ समय बिताना, ध्यान करना, फिल्म देखना, परिजनों से बोलना-बतियाना, पसंद की किताब पढ़ना, शारीरिक स्वच्छता पर ध्यान देना आदि। अच्छी आदतों को जीवन में शामिल कर हर तरह की बुरी लत को छोड़ने जैसी बातें भी खुद की देखभाल की सूची का हिस्सा होती हैं। देखने में आता है कि सेल्फ पैम्परिंग और सेल्फ अवेयरनेस से जुड़ी ऐसी छोटी-छोटी चीज़ें भी जीवन की भागदौड़ में भुला दी जाती हैं। मन-मस्तिष्क और शरीर के लिए जीवनचर्या में सकारात्मक बदलाव लाने वाली इन गतिविधियों का कोई महंगा मोल भी नहीं चुकाना पड़ता। आत्म-देखभाल से जुड़े ऐसे क्रियाकलाप तो शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार करते हैं। तनाव, अवसाद और चिंता जैसी मनोवैज्ञानिक उलझनों से दूर रखते हैं। इसी के चलते स्व-देखभाल से जुड़ी हर गतिविधि को मन-जीवन के अनगिनत पहलुओं की बेहतरी से जोड़कर देखा जाता है। इनमें शारीरिक, सामाजिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य, हर पक्ष का परिष्करण शामिल है।


देर न हो जाए
आमतौर पर घर और बाहर अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की भागमभाग में महिलाएं हो या पुरुष, खुद को भुला ही देते हैं। कभी अभिभावक की भूमिका से जुड़ी आपाधापी तो कभी कामकाजी जीवन की व्यस्तता। खुद के लिए समय निकालने के मायने समझने के बावजूद आज-कल पर टालने की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। खुद के लिए थोड़ा वक्त निकाल भी लिया जाए तो अपराधबोध की भावना जकड़ लेती है। स्वयं को प्राथमिकता देने के लिए अपने आप को दोषी महसूस करने की यह मानसिकता महिलाओं में और ज्यादा होती है। असल में भारतीय परिवेश में दूसरों की सेवा या सम्भाल से परे कुछ भी करना थोड़ा अजीब माना जाता है। किसी को भी व्यक्तिगत सुख-सुविधा या सहजता से जुड़ा कोई काम करते देख लोग हैरान-परेशान होते हैं। उनकी बातें और उलाहने अपराधबोध का शिकार बना देती हैं। जबकि खुद अपनी सेहत की देखभाल किए बिना समाज और परिवार के लिए भी कुछ नहीं किया जा सकता। ऐसे में सेल्फ केयर को लेकर कोई पश्चाताप मन में न पालें। खुद की देखभाल करना भी आपकी ही ज़िम्मेदारी है। सबसे अहम यह कि ऐसा कुछ करने में ज्यादा देर करना भी बहुत सी समस्याओं को बढ़ाना ही है।

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