जिम्मेदारियों के साथ ख्याल खुद की संभाल का भी
शरीर के साथ मन भी सेहतमंद हो, यह खास ख्याल महिलाओं को रखना चाहिये। संपूर्ण स्वास्थ्य खुद के साथ परिवार के लिए भी अहम है। गृहिणी हो या फिर कामकाजी, घर-बाहर की सभी जिम्मेदारियां खुद पर लेने के चलते तनाव-चिंता घेर लेते हैं, आराम नहीं मिल पाता। दायित्व बांटें। सुपरवुमन बनना जरूरी नहीं। तन-मन के रोगों को न छुपाएं तो बेहतर है। दिनचर्या व व्यायाम को भी प्राथमिकता दें।
डॉ. मोनिका शर्मा
महिलाओं की सेहत से जुड़ी समस्याओं को शरीर ही नहीं, मनःस्थिति से जोड़कर देखना भी आवश्यक है। स्वयं स्त्रियों को भी अपनी फिटनेस हो या किसी बीमारी का घेरा, बहुत सी बातों को मन के मोर्चे पर भी देखने-समझने का प्रयास करना चाहिए। खुद को फिट रखने, अस्वस्थ रहने या किसी बड़ी बीमारी से जूझने के दौर में इस पहलू पर सोचना वाकई मददगार साबित होगा। कई परेशानियों का हल तो आप खुद ही ढूंढ लेंगी। साथ ही उदासी और आलस के घेरे में आने के बजाय हर हाल में फिट, एक्टिव और स्वस्थ भी रहेंगी। जरूरी यह भी कि अपनी देखभाल के लिए सुपर वुमन सिंड्रोम से भी बचें। हर मामले में परफेक्ट बनने की आपाधापी भी अपनी देखभाल करने की फुर्सत नहीं लेने देती।
सुपरवुमन बनना जरूरी नहीं
थका सा मन शरीर को भी थकान के घेरे में ले आता है। हरदम उदास रहना बीमारियों को न्योता देने का बड़ा कारण बनता है। हर पल की चिंता दिल की सेहत भी बिगाड़ती है। सब कुछ संभालने का जुनून दिमाग को चैन नहीं लेने देता। बावजूद इसके महिलाओं में सब कुछ करने की भागदौड़ और हर स्थिति को संभाल लेने की होड़ सी दिखती है। गृहिणी हो या कामकाजी, यह मानसिकता हर महिला को चिंता के घेरे में लाती है। सुपरवुमन सिंड्रोम के रूप में जानी जाने वाली यह आदत नींद की कमी और अत्यधिक तनाव जैसी समस्याओं का कारण बनती है। इन हालात में अपराधबोध और अवसाद जैसी समस्याएं जड़ें जमा लेती हैं। असल में अधिकतर स्त्रियां मातृत्व हो या रिश्तों-नातों की ज़िम्मेदारी, किसी भी मोर्चे पर चूकना नहीं चाहतीं। घर की संभाल हो या बच्चों की देखभाल, इनमें जरा सी चूक भी उनके मन में अपराधबोध भर देती है। इसीलिए स्वयं को सहज जीवन से जोड़ते हुए एक आम इंसान ही समझिए। हर हाल में सुपरवुमन बनना जरूरी नहीं है। खुद को हर मोर्चे पर परफ़ैक्ट नहीं बनाया जा सकता। सब कुछ बेहतर हो यह सोच सही है पर इस बेहतरी का कोई फिक्स पैमाना मत बनाइए। खुद से खुद की यह तुलना अपराधबोध के चक्रव्यूह से कभी बाहर नहीं निकलने देगी। लंबे समय तक बना रहे तो अपराधबोध से उपजा यह उलझाव सेहत के लिए सबसे बड़ा जोखिम बन जाता है।
स्वास्थ्य समस्याओं को छिपाएं नहीं
बहुत सी महिलाएं लंबे समय तक जूझने के बाद अपनी हेल्थ से जुड़ी समस्या का जिक्र करती हैं। अपनों को बताने में भी हिचकती हैं। अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन में गुम स्त्रियां रुटीन चैकअप के लिए डाक्टर के पास जाने में भी बहाने करती हैं। ऐसे में समस्या और बढ़ जाती है। आराम करने के बजाय काम करते रहने से जुड़ी गलती हो या दवा लेने में देरी, पीड़ा और परेशानी दोनों बढ़ा देते हैं। परिवार और परिजनों का ध्यान रखने में इतना व्यस्त हो जाती हैं कि खुद के स्वास्थ्य पर ध्यान ही नहीं देतीं। इसीलिए अपने स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थितियों को समय रहते समझें। ना कहना सीखें और अपने सुकून -आराम को प्राथमिकता दें। खुद को भी थोड़ी राहत देने के लिए जिम्मेदारियां बांटने की सोच रखें। स्वास्थ्य समस्याओं को छिपाने की गलती तो बिलकुल ना करें। अपनों के संग अपनी शारीरिक तकलीफ को साझा करने से आपको मन का संबल भी मिलेगा और परेशानी का उपचार भी। तकलीफदेह है कि महिलाएं मानसिक ही नहीं, शारीरिक परेशानियों को भी खुलकर नहीं बतातीं। यहां तक कि उम्र के मुताबिक आ रहे बदलावों पर गौर करने में भी कोताही करती हैं। जबकि अध्ययन बताते हैं कि महिलाएं आयु के पड़ाव को पार करने के बाद पुरुषों के मुक़ाबले ज्यादा स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार होती हैं।
संतुलित जीवनचर्या अपनाएं
घर के हर सदस्य को समय से सोने-जागने, संतुलित आहार लेने, नियमित मेडिकल जांच करवाने और यहां तक कि फिजिकली एक्टिव रहने की सलाह देने वाली महिलाएं खुद इन बातों के मोर्चे पर चूक जाती हैं। सबका जीवन आसान बनाने की जिम्मेदारियां निभाते-निभाते, अपनी सेहत और सक्रियता से जुड़ी बातों पर सोच ही नहीं पातीं। जबकि खुद का ख्याल रखे बिना, खुद से प्यार किए बिना अपनों का ख्याल रखना भी कठिन है। हमारे देश में कुपोषित महिलाओं की दर विकासशील देशों में सबसे ज्यादा है। समझना मुश्किल नहीं कि कारण भले अलग-अलग हों पर इनमें हर तबके की स्त्रियां ही शामिल हैं। इसीलिए व्यवस्थित दिनचर्या अपनाएं। अपनों की ही नहीं, अपनी थाली में भी ताज़ा और हेल्दी फूड को प्राथमिकता दें। भरपूर नींद और कसरत के लिए वक्त निकालने का पक्का नियम ही बना लें। खुद को उपेक्षित करने की गलती शारीरिक-मानासिक और मनोवैज्ञानिक, हर मोर्चे पर नुकसानदेह होती है। इतना ही नहीं असंतुलित जीवनशैली से हार्मोनल सिस्टम भी बिगड़ता है। यह असंतुलन अपनेआप में कई परेशानियों को बढ़ाता है। हमारे पारिवारिक परिवेश में सधी-स्वस्थ जीवनशैली के लिए घर के दूसरे सदस्यों को महिलाएं चेताती हैं पर खुद को भूल जाती हैं। ऐसे में हर महिला को स्वयं की संभाल को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।