खुशी के साथ जरूरी भी है चौकसी
उत्तर भारत में नवरात्रि से लेकर दिवाली तक त्योहार ही त्योहार होते हैं। आजकल त्योहारों का मौसम ही चल रहा है। इन दिनों में बच्चों की खुशी देखने लायक होती है। एक तो छुट्टियां दूसरे घर में बनते पकवान, घर के अन्य सदस्यों, नाते, रिश्तेदारों, माता-पिता के मित्रों उनके बच्चों से मिलना-जुलना। हर रोज के उत्सव और पार्टिंयां भी। अक्सर परिवारों में अन्यों से पहले बच्चों की पसंद की खाने-पीने की चीजें बनती हैं। आखिर ऐसा और कौन-सा दूसरा वक्त होगा जब सब कुछ मन का हो रहा हो। बच्चों के खेल-कूद और धमा-चौकड़ी का भी यही समय होता है।
इन दिनों बाजार में तरह-तरह के खिलौनों की भरमार होती है। तीर कमान, गत्ते और टीन की तलवारें, पटाखे भी खूब मिलते हैं। टोलियों में निकले बच्चे इन्हें खूब चलाते भी हैं। लेकिन तीर, कमान या तलवारें खतरनाक भी हो सकती हैं, यह उन्हें मालूम नहीं होता। माता-पिता या घर के बड़े खरीदकर तो देते हैं लेकिन इनके प्रयोग में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, ये नहीं बताते। बताते भी हैं तो खेल दीवाने बच्चे शायद इस पर ध्यान नहीं देते। यों भी बच्चों की दुनिया में खतरों की कोई जगह नहीं होती। यहां कुछ उदाहरण याद आ रहे हैं। शायद इनके बारे में पढ़कर हम कुछ सचेत हों।
यह लगभग पैंतीस साल पहले की बात है। पड़ोस में एक परिवार रहता था। नौकरीपेशा लोग थे। उनके दो बच्चे थे। बड़ा बेटा पांच-छह साल का था, दूसरा उससे छोटा। दोनों बच्चे अपने पिता के साथ दशहरा मेला देखने गए थे। वहां से उन्होंने अन्य सामान के साथ तीर-कमान भी लिए। अगले दिन ये बच्चे घर के सामने की सड़क पर अपने दोस्तों के साथ खेलने लगे। दोस्तों के पास भी अपने-अपने तीर-कमान थे। वे अपने को दशहरे मेले में देखी तीरंदाजी का सबसे बड़ा नायक समझ रहे थे। कुछ बच्चों को पता तो होता नहीं कि तीर उस दिशा में चलाना चाहिए जहां कोई न खड़ा हो। न उन्हें किसी ने बताया ही होगा। बस एक बच्चे ने तीर चलाया तो वह पड़ोसी के बड़े बेटे की आंख में जा घुसा। और आंख हमेशा के लिए चली गई। परिवारजन बच्चे को न जाने किस-किस अस्पताल में ले गए लेकिन कुछ नहीं किया जा सका। माता-पिता हमेशा इस बात के लिए खुद को कोसते कि जिस तीर कमान-को वे खेलने की चीज समझ रहे थे, क्या पता था कि किसी और बच्चे के चलाए तीर के कारण उनके बच्चे की आंख चली जाएगी। यों किसी भी बच्चे के साथ वह दुर्घटना हो सकती थी जो उनके बच्चे के साथ हुई। डाक्टर्स कहते हैं कि इन दिनों उनके पास बड़ी संख्या में ऐसे रोगी आते हैं जिनकी आंखों में चोट लगी होती है। इनमें बड़ी संख्या में बच्चे होते हैं। वे इस तरह के खिलौने से खेलने के लिए भी मना करते हैं। इसीलिए अगर घर वाले बच्चों को ऐसे खिलौने दिलवा भी रहे हैं तो उनका सावधानी से प्रयोग करना भी उन्हें सिखाएं।
दूसरी घटना भी एक बच्चे से ही जुड़ी है। दिवाली का दिन था। एक बच्चा बहुत से पटाखे लाया था। रात के वक्त कुछ देर तक तो मां साथ में खड़ी होकर पटाखे चलवाती रही लेकिन फिर वह किसी काम से अंदर चली गई। आखिर त्योहार के दिनों में घर वालों को वैसे ही बहुत काम होते हैं। इधर बच्चे ने एक पटाखा जलाने की कोशिश की, वह नहीं जला तो उसने उसे जेब में रख लिया। और दूसरा पटाखा जलाने की कोशिश करने लगा। इतने में जेब में रखा अधजला पटाखा फट गया। बच्चे ने सिंथेटिक कपड़े पहन रखे थे , वे पूरी तरह से शरीर से चिपक गए। इसलिए वह बुरी तरह से झुलस गया। बच्चे की चीखें सुनकर घर वाले और पास पड़ोसी दौड़े आए। बच्चे के माता-पिता उसे लेकर अस्पताल दौड़े। बहुत दिनों तक उसका इलाज चलता रहा। मगर वह ठीक नहीं हो सका। माता-पिता आज इतने साल बाद भी बच्चे को याद करके रोते हैं। सोचते हैं कि जब बच्चा पटाखे जला रहा था तो काश वे उसके साथ होते। शायद उसके साथ वह न होता जो हुआ।
आपने ध्यान दिया होगा कि दिवाली पर अक्सर जगह-जगह आग लगने की सूचनाएं आती रहती हैं। बहुत से लोग दुर्घटनाओं का शिकार भी होते हैं। इस अवसर पर अस्पतालों में अलग से बर्न वार्ड बनाए जाते हैं जिससे कि आग और पटाखों से घायल होने वाले लोगों का जल्दी और सही ढंग से इलाज किया जा सके। ऐसी दुर्घटनाएं होती भी बहुत हैं।
तीसरी घटना हाल ही में एक बच्ची से जुड़ी है। वह भी मेले से टीन की तलवार खरीदकर लाई थी। एक दिन घर के आंगन में टीन की तलवार से खेल रही थी। न जाने उसे क्या सूझा कि वह उसे पेट में घुसाकर खेलने लगी। अचानक तलवार पर जोर पड़ा और वह नुकीली होने के कारण पेट में घुस गई। वह तो खैरियत थी कि अस्पताल पास में था और तलवार बहुत ज्यादा गहरी नहीं घुसी थी। इसलिए बच्ची ठीक हो गई।
ये मात्र तीन घटनाएं हैं लेकिन इनके बारे में जानकर अंदाज लगाया जा सकता है कि देशभर में ऐसी न जाने कितनी घटनाएं होती होंगी। जिनके कारण बच्चों और उनके घर वालों की जान आफत में आ जाती होगी। बच्चों को खिलौने जरूर दिलाएं मगर क्या जरूरी है कि वे ही खिलौने हों जिनसे उन्हें गम्भीर चोट लग सकती है।
त्योहारों में चंचल बच्चे खेलें-कूदें, उल्लास भी मनाएं लेकिन वे खेल-कूद ऐसे हों, जहां उनकी सुरक्षा भी रहे। इस बारे में माता-पिता को भी सावधानी बरतनी चाहिए। वैसे तो पटाखे चलाए ही क्यों जाएं। लेकिन बच्चों को समझाना बहुत बार मुश्किल होता है। बच्चे अपने दोस्तों से भी प्रेरित होते हैं। दोस्त पटाखे चला रहे हैं तो वे क्या किसी से कम हैं। वे क्यों न चलाएं। इसलिए घरवालों से वे एक से एक धूम-धड़ाके वाले पटाखे लाने की जिद करते हैं। दस-दस हजार पटाखे वाली लड़ियों का जलाया जाना आम बात हो चुकी है। इनसे वायु प्रदूषण तो होता ही है, ध्वनि प्रदूषण से भी जीना मुहाल हो जाता है। जो लोग अस्वस्थ होते हैं उन पर बुरी बीतती है। ऐसे में जरूरी है कि यदि बच्चे पटाखे चला रहे हैं या ऐसे खिलौनों से खेल रहे हैं जिनसे उन्हें चोट लगने का खतरा है, तो घर के बड़े बच्चे उनके साथ जरूर रहें। पटाखे जलाकर वे उनसे दूर हट जाएं जिससे किसी दुर्घटना से बच सकें। यही नहीं इन दिनों जरूरी है कि बच्चे सूती कपड़े ही पहनें जिससे कि बच्चों को आग से बचा सकें। और सिर्फ बच्चे ही क्यों बड़ों की भी सुरक्षा जरूरी है। वे भी सूती ही कपड़े पहनें। त्योहार की खुशी अपनी जगह है मगर सुरक्षा अपनी जगह। आइए उत्सव मनाएं।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।