चुनावी वेला में बिना दिल मिले के गठबंधन
सहीराम
मोदीजी, इंडिया पर भारी पड़ गए जी! नहीं-नहीं, उस वाले इंडिया पर नहीं जो भारत है। वे तो उस वाले इंडिया पर भारी पड़ गए जो विपक्ष का गठबंधन है। लेकिन इस वाले इंडिया के बारे में लोग यही कह रहे थे कि यह इंडिया तो मोदीजी पर भारी पड़ेगा। आखिर तो छब्बीस दलों का गठबंधन है। वैसे तो उनकी छप्पन इंच की छाती के मुकाबले छब्बीस वाले कहां ठहरने वाले थे। फिर भी मोदीजी आत्मतुष्ट नहीं हुए। वे तो वैसे भी तुष्टिकरण के खिलाफ हैं। हालांकि, उनके विरोधी उन पर आत्ममुग्ध होने का आरोप जरूर लगाते हैं। खैर जी, उन्होंने पार्टी वालों से कहा कि इनसे ज्यादा दल जुटाओ। ऐसे में पार्टी वालों की यह हिम्मत कैसे होती कि यह कह दें कि जी कहां से जुटाएं, जुटे-जुटायों को तो आपने बिखेर दिया। उधर शिवसेना को, इधर अकाली दल भी चल दिया। वो एक ठोकर में वाइको गए। पर फिर इधर-उधर नजर दौड़ाई तो उन्होंने कितने ही दल बिखरे पाए। नहीं दिल के टुकड़ों की तरह नहीं कि कोई यहां गिरा था और कोई वहां गिरा था और उन्हें जोड़ लिया। दिलों को जोड़ने का काम उनका नहीं है।
वे दल तो परिवारों के बिखरने की तरह पाए गए। वैसे भी वे संघ परिवार के अलावा हर तरह के परिवारवाद के खिलाफ हैं। सो परिवारों को भी दिलों की तरह ही तोड़ते हैं। खैर, जुटान शुरू हुई-अरे एनसीपी को तोड़ा था, तो अजित दादा को लाओ न। शिवसेना को तोड़ा था तो शिंदे को लाओ न, आखिर यह लोग किस दिन काम आएंगे। इधर से राजभर को लाओ, उधर से जीतनराम मांझी को लाओ। यह जुटान वैसे नहीं थी, जैसे कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा जोड़कर कभी भानुमति ने कुनबा जोड़ा था। न ही किसी ने यह आशंका प्रकट की कि साहब ये क्या काम आएंगे-इनके पास न तो सांसद हैं और न विधायक।
सबको पता था कि अभी हमें दल चाहिए, सांसद और विधायक हम बाद में जुटा लेंगे। आखिर ईडी किस काम आएगी। तो इधर-उधर से चुग-चुगाकर उन्होंने पोटली बांधी और इंडिया के सामने रख दी-लो तुम्हारे छब्बीस के मुकाबले हमारे अड़तीस। पीछे से पार्टी वाले एक-आध और ले आए। किसी ने कहा-अड़तीस नहीं जी उनतालीस। किसी ने कहा-नहीं जी, इकतालीस। जैसे बोली लग रही हो। विपक्ष ने पूछा-यह क्या है। गठबंधन के मुकाबले गठबंधन और क्या-वे बोले- यह हमारा एनडीए है। है न इंडिया से भारी।