वातानुकूलित लोकवाहक के जलवे
ऋषभ जैन
भारतीय सड़कों पर ट्रकों को निर्विवाद रूप से खलनायक का-सा सम्मान प्राप्त रहा है। घों-घों की तीव्र आवाज के साथ गुजरते किसी ट्रक पर दृष्टिपात होते ही राहगीर हड़बड़ाकर अपने सवारी को पगडंडी की ओर धकेलना शुरू कर देते हैं। साहित्य और सिनेमा में भी इस आतिशी छवि का प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है। रागदरबारी में एक ट्रक भारतीय दंड संहिता की धारा का आरोपी नजर आता है। एक्सीडेंट के सैकड़ों अन्य तरीके होने पर भी हीरो की कार को किसी मरखुन्ने ट्रक से कट मरवा कर खाई में गिराने का फार्मूला सदैव फ़िल्मी निर्देशकों का पसंदीदा रहा है।
अब सरकार ट्रकों की छवि को सुधारने के चक्कर में है। संभवतः उसे विपक्ष के अलावा किसी और का खलनायक कहलाना पसंद नहीं। वह ट्रकों को वातानुकूलित होने का फरमान जारी कर रही है। हमारे समाज में वातानुकूलित होना अभिजात्यता का प्रतीक माना जाता है। सरकार को लगता है कि वातानुकूलित परिवार के सदस्य बनने के बाद उसकी लाज रखने का ख्याल अवश्य ही ट्रक चालकों को श्रेष्ठ आचरण करने के लिए प्रेरित करेगा।
आने वाले समय में डैने फैलाकर सड़कों से डराने वाले ट्रक का दिखाई देना गये जमाने की बात होने वाली है। आगामी कालखंड बंद दरवाजे और चढ़े कांच के केबिन वाले ट्रकों का होने वाला है। ‘वातानुकूलित लोकवाहक’ लिखे हुए इन ट्रकों का दीदार अत्यंत सुकूनभरा होगा। भीषण लपटों और धूल के महासागर से हैरान ट्रक चालक के मुख से मानव सुलभ वृत्ति के कारण गालियों की बौछारें निकलना स्वाभाविक प्रक्रिया है। ट्रक चालकों के निरंतर आशीर्वचनों से उस पर लदी सामग्रियां भी अवश्य प्रभावित होती होंगी। उम्मीद है अब वातानुकूलित केबिन में बैठे प्रसन्नचित्त चालकों के आभामंडल के फलस्वरूप लोगों को सकारात्मक ऊर्जा मिला करेगी।
ट्रकों के वातानुकूलित होने के कुछ दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। फिर हाथ दिखाकर मुड़ने का संकेत देने की कला लुप्त हो जायेगी। चालकों को लुपलुपाते संकेतकों और बिना संकेत दिये मुड़ जाने के तरीकों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। कार चालकों का कांच नीचे कर उससे मुंडी निकालते हुए ट्रक चालकों को गरियाने का आनंद भी जाता रहेगा। सड़क किनारे के खुले ढाबों में पड़ी खाटें भी अपने ऊपर पसरने वाले का इंतजार करते धीरे-धीरे दम तोड़ देंगी। वातानुकूलित केबिन में चलने वाले को रस्सी से बुनी उन शय्याओं का हवादार होना अब क्या खाक आकर्षित किया करेगा।
एक डर मिसेज मोंगा सिंह को भी है। क्या पता महीने के बीस दिन ट्रक के संग बिताने वाले मोंगा सिंह को अब गैर-वातानुकूलित घर दस दिन भी सुहाता है या नहीं। इस बीच पर्यावरण पर हाय-हाय करने वाले पुनः सक्रिय हो गये हैं।