एआई का तूफान दुनिया में घमासान
इस साल 28 मई को जब देश की राजधानी में नई संसद का उद्घाटन हो रहा था, तो उससे थोड़ी ही दूरी पर दिल्ली पुलिस यौन शोषण के आरोपों को लेकर प्रदर्शन कर रहे पहलवानों को हटा रही थी। उसी दौरान सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल होने लगी। इस फोटो में प्रदर्शन में शामिल महिला पहलवान विनेश फोगाट और उनकी बहन संगीता फोगाट एक बस में मुस्कुराते दिख रही थीं। ट्विटर से लेकर फेसबुक पर लोग इस फोटो को देखने के बाद प्रदर्शनकारी पहलवानों को टूलकिट बनाने और तरह-तरह की साजिशों की बातें करने लगे। कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर 'देख लो एजेंडा' लिखते हुए एक अलग ही नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश की। बाद में पता चला कि वह तस्वीर फर्जी (फेक) थी। उसे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) जैसी आधुनिक तकनीक से बदला (मार्फ्ड) गया था। फेक फोटो का भंडाफोड़ करते हुए कुछ लोगों ने एक वीडियो के जरिये दिखाया कि किसी गंभीर, गमगीन या खामोश चेहरे को एआई की मदद से मुस्कुराता हुआ कैसे दिखाया जा सकता है। झूठ को सच, नकली को असली और इसी तरह अंधेरे को उजाले के रूप में दिखाने वाली एआई की तकनीक के तमाम खतरे और भी हैं, जिनमें सबसे बड़ी चुनौती दुनिया इस समय रोजगारों को लेकर महसूस कर रही है। तकरीबन पूरी दुनिया को लग रहा है कि यह तकनीकी तूफान उनकी अच्छी-भली नौकरी खा जाएगा।
दूसरा पहलू सुविधा का
हॉलीवुड में हड़ताल करने वाले कथा-लेखकों, तकनीशियनों को ही नहीं, बल्कि दुनिया की आईटी कंपनियों के कर्मचारियों और मीडियाकर्मियों को भी अपनी नौकरी एआई के कारण संकट में पड़ी नजर आ रही है। पर यह एआई का एक पहलू है। इस तकनीक का दूसरा पहलू वह है, जिसमें कई कामकाज इसकी वजह से बेहद आसान हो गए हैं। इसके फायदों को देखते हुए कहा जा रहा है कि एआई एक क्रांतिकारी तकनीक है जिसमें मानवता की उन्नति और विकास के लिए बेहतरीन मौके उपलब्ध कराने की क्षमता है लेकिन इन मौकों का लाभ उठाने के लिए इसके खतरे कम करने होंगे। इस मकसद से दुनिया के कई मुल्कों में एआई संबंधी कानून बनाने पर विचार-विमर्श शुरू हो गया है।
कंप्यूटर की मिसाल भी
किसी नई तकनीक का आना और उसे लेकर मानव सभ्यता का भयभीत होना नया नहीं है। बीते कुछ दशकों में ही देखें, तो कंप्यूटर का आगमन हमारे देश और दुनिया में इस आशंका के साथ हुआ था कि यह उपकरण लोगों की नौकरियां खा जाएगा। पर हुआ दरअसल उल्टा। कंप्यूटर और इंटरनेट की बदौलत इतने रोजगार और इतनी संपदा का निर्माण हुआ- जिसकी कल्पना तक नहीं की गई थी। गौर से देखें तो कुछ वैसी ही आशंकाएं एआई को लेकर इस वर्ष यानी 2023 की शुरुआत से बनी हुई हैं। लेकिन एआई के सकारात्मक पक्ष को लेकर वैसी आश्वस्ति नहीं दिख रही है, जैसी बाद में कंप्यूटर और इंटरनेट के संबंध में बन गई थी। इसकी वजह संभवतः यह है कि बीते दो से तीन दशकों में दुनिया को तकनीकी प्रबंधों के फायदे-नुकसान के आकलन की समझ बन गई है। लोग किसी नई तकनीक के आगमन के साथ ही बता देते हैं कि वह अपने मौजूदा स्वरूप में मानव समाज की बेहतरी का रास्ता खोलेगी या बर्बादी का।
जब आया तकनीक का डर
एआई आज की देन नहीं है। पिछले छह-सात दशकों में इस क्षेत्र में काफी काम हुआ है और बताते हैं कि वर्ष 1952 में जब कंप्यूटर ने ‘नॉट्स एंड क्रॉसेज’ नाम के एक खेल में इंसान को पराजित किया था, तो उसे एआई की करामात माना गया था। वर्ष 1955 में एमेरिट्स स्टैनफोर्ड के प्रोफेसर जॉन मैक्कार्थी ने जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को ‘बुद्धिमान मशीनें बनाने के विज्ञान और इंजीनियरिंग’ के रूप में पारिभाषित किया था, तब इसे लेकर ज्यादा जिज्ञासाएं नहीं थीं। इसके बाद के प्रसंग नब्बे के दशक और आगे के वक्त से जुड़े हैं। वर्ष 1994 में खेल ‘चेकर्स’ में भी एआई से लैस मशीन यानी कंप्यूटर ने ही जीत दर्ज की थी और सबसे दिलचस्प किस्सा वर्ष 1996 और 1997 का है। वर्ष 1996 में आईबीएम का सुपर कंप्यूटर डीप ब्लू विश्व शतरंज चैंपियन गैरी कास्पारोव से फिलाडेल्फिया में हार गया था। लेकिन अगले ही साल यानी 1997 में सुपर कंप्यूटर ‘डीप ब्लू’ ने शतरंज के विश्व चैंपियन गैरी कास्पारोव को हराकर पूरी दुनिया में सनसनी फैला दी थी। तभी से कहा जाने लगा कि एक दिन इंसान मशीनों से हार जाएगा। इस वाकये पर एक वृत्तचित्र- ‘गेम ओवर : कास्पारोव एंड द मशीन’ भी बनाया गया। यहां से सुपर कंप्यूटरों और एआई का हौवा खड़ा होने लगा। अब से करीब 12 साल पहले इस 2011 में आईबीएम के ही एक अन्य सुपर कंप्यूटर वॉटसन ने एक क्विज शो ‘जियोपार्डी’ में इस क्विज के दो महान चैंपियनों क्रमश: ब्रैड रट्टर और केन जेनिंग्स को भारी अंतर से हराया तो कहा जाने लगा कि आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस अब इंसानों को पछाड़ने की भूमिका में आ गई है।
खेल से आगे की आशंका
एक अहम बदलाव 2014 में गूगल के डीपमाइंड की कंप्यूटरीकृत मशीन के साथ हुआ। वीडियो गेम्स खेलने में महारत रखने वाली और खुद-ब-खुद सीखने वाली इस मशीन को इंसानी दिमाग से टक्कर लेने वाला माना जाता रहा है। इस मशीन ने अपने कंप्यूटर प्रोग्राम की मदद से वीडियो गेम्स खेलना सीख लिया और 50 खेलों में उसका प्रदर्शन किसी पेशेवर खिलाड़ी जैसा या उससे बेहतर रहा। इस आधार पर गूगल डीप माइंड के शोधकर्ताओं ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ, जब एक मशीनी सिस्टम ने कई किस्मों के जटिल काम सीखकर उनमें इंसानों पर अपनी श्रेष्ठता साबित की। पर किसी कंप्यूटरीकृत खेल में मशीन का आगे निकलना इतना खतरनाक नहीं समझा गया, जिससे कि इंसान मशीन के सामने बौना साबित हुआ हो।
अंकुश के साथ कैसे हो इस्तेमाल
नौबत ये है कि एक्स (पूर्व में ट्विटर) के मालिक ईलॉन मस्क से लेकर गूगल के सीईओ तक ये चेतावनी दे रहे हैं कि एआई पर अंकुश लगाना जरूरी है, अन्यथा यह तकनीक इंसान के हाथ से बाहर निकल जाएगी। कई सरकारें इस पर विचार कर रही हैं कि कैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दुष्प्रभावों से लोगों को बचाया जाए, जबकि इसके तकनीकी विकास का लाभ भी मिलता रहे। ऐसे देशों में ऑस्ट्रेलिया सबसे आगे है जहां एआई पर अंकुश लगाने के कानूनी मसौदे तैयार किए जा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में 2018 में एआई पर अंकुश लगाने के लिए एक स्वैच्छिक व्यवहार निर्देशिका अपना ली गई थी। इसमें कॉपीराइट, निजता और उपभोक्ता सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सोच-विचार किया गया था और यह राय बनाई गई थी कि फिलहाल बनाए गए कानून एआई से जुड़े मुद्दों के लिए नाकाफी हैं। इसलिए सरकारों को ऐसे कानूनी ढांचे बनाने होंगे जो इस तकनीक के तमाम पहलुओं पर विचार कर सकें। सिर्फ ऑस्ट्रेलिया ही नहीं, बल्कि यूरोपीय सांसद भी एक ऐसा विस्तृत कानूनी मसौदा तैयार कर रहे हैं, जो एआई से जुड़ी कानूनी चुनौतियों को समझते हुए उसके उपयोग और उससे बचाव के रास्ते सुझा सके। यूरोपीय संघ और अमेरिका में एक ऐसी स्वैच्छिक एआई व्यवहार निर्देशिका तैयार कर ली गई है, जिसे एआई से जुड़े उद्योगों द्वारा अपनाए जाने की उम्मीद है। असल में यूरोपीय आयोग ने एआई पर एक कोड ऑफ कंडक्ट का मसौदा बनाया है जिसका उद्देश्य यह दर्शाना है कि लोकतांत्रिक सरकारें एआई की चुनौतियों से निपटने की क्या तैयारी कर रही हैं। दिलचस्प यह है कि यूरोपीय संघ और अमेरिका के बीच कानूनी प्रावधान बनाने की इस प्रक्रिया में चैटजीपीटी नामक एआई टूल बनाने वाली कंपनी ओपनएआई के सैम आल्टमन की हिस्सेदारी भी रही है। एआई संबंधी कानून पर विचार करने वाले देशों में चीन भी शामिल है, जो खुद काफी तेजी से एआई के विकास को लेकर शोध कर रहा है।
महामारी के बाद की स्मार्ट देन
हालांकि इक्कीसवीं सदी के आरंभिक दो दशकों तक भी एआई को खतरे की बजाय सहयोगी की भूमिका में ज्यादा देखा गया। लेकिन कोरोना वायरस से पैदा महामारी कोविड-19 का दौर थमा और 2022 के मध्य से दुनिया का कामकाज पटरी पर लौटा, तो एआई की एक स्मार्ट देन- चैटजीपीटी का आगमन एक धमाके की तरह हो गया। चैटजीपीटी को आए तकरीबन एक साल होने को है और हालात ये हैं कि हाल में अमेरिका के ऑथर्स गिल्ड ने दस हजार लेखकों के समर्थन वाला एक खुला खत लिखा है, जिसमें एआई कंपनियों से आग्रह किया गया है कि वे कॉपीराइट के तहत सुरक्षित सामग्री का बिना इजाजत और बिना भुगतान इस्तेमाल नहीं करें। यही नहीं, कई देशों में एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर सख्त और कड़े कानून बनाए जाने की तैयारी भी चल रही है। ऑस्ट्रेलिया में प्रस्तावित कानून के अंतर्गत डीप फेक और दिखने में असली लेकिन फर्जी सामग्री बनाने वाली तकनीकों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश हो रही है।
कहां तक जाएगी कृत्रिम बुद्धि
इंसानी सभ्यता के हजारों वर्षों में इतिहास में एक क्रांतिकारी बदलाव तब आया, जब 18वीं सदी से औद्योगिकीकरण की शुरुआत हुई और हमारे बीच मशीनें आईं। मशीनें बिना थके, बिना कोई शिकायत किए दर्जनों या सैकड़ों इंसानों के बराबर काम तुरत-फुरत कर सकती हैं- यह हमने बीते ढाई सौ साल में देख ही लिया है। लेकिन इसमें भी एक बड़ा बदलाव मशीनों के कृत्रिम बुद्धि या कहें कि एआई (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) से लैस हो जाने पर हुआ है। संक्षेप में एआई कही जा रही तकनीक के क्या-क्या करिश्मे हैं, यह अब आम घरों में उंगली के इशारे पर काम करने वाली वॉशिंग मशीनों, गूगल के एलेक्सा, एप्पल के सीरी से लेकर स्मार्टफोन पर आपके द्वारा की जा रही खोज को पढ़ और समझकर उसी के अनुरूप सामग्री (कंटेंट) आपको गूगल-फेसबुक आदि पर मुहैया कराने की शक्ल में दिख रहे हैं। पर एआई क्या इससे भी आगे जा सकती है। क्या यह कथित तौर पर मशीनों द्वारा इंसानों के कामकाज यानी रोजगार को हड़पने का सबब भी बन सकती है। चैटजीपीटी नामक चैटबॉट (एक तरह का सॉफ्टवेयर) की शक्ल में एआई का जो तूफान दुनिया में उठ खड़ा हुआ है, उसने कुछ ऐसे ही सवाल पैदा कर दिए।
चैटजीपीटी की सनसनी क्या है, इसे लेकर टेस्ला और सोशल मीडिया मंच- ट्विटर के मालिक ईलॉन मस्क ने कुछ वक्त पहले एक टिप्पणी की थी। उन्होंने अपने एक ट्वीट में लिखा था कि चैटजीपीटी की इस ‘नई दुनिया’ में, कोई भी जल्द ही होमवर्क को ‘अलविदा’ कह सकता है। मालूम नहीं है कि मस्क की यह टिप्पणी एक तंज़ है या वास्तविक खतरे का ऐलान, लेकिन कुछ जगहों पर इसे सहज मानवीय बुद्धि के विकास के लिए घातक माना जाने लगा है। दुनिया भर के विश्वविद्यालयों-कॉलेजों में यह व्यवस्था बना दी गई है कि छात्र अपने असाइनमेंट और होमवर्क पूरा करने के लिए चैटजीपीटी का इस्तेमाल नहीं कर पाएं। स्कूल-कॉलेजों के सर्वर से जुड़े कंप्यूटरों पर चैटजीपीटी को प्रतिबंधित कर दिया गया है। यदि यह पूछा जाए कि क्या चैटजीपीटी स्कूल-कॉलेज के गृहकार्य या किसी शोध प्रस्ताव आदि का मसौदा व परीक्षा में उत्तीर्ण करने वाली सामग्री तैयार कर सकता है और उसे अकादमिक या साहित्यिक चोरी के अंश के रूप में पकड़ा नहीं जा सकता है। तो इसका एक जवाब तब मिला था, जब दिसंबर 2022 में अंग्रेज़ी अखबार- वॉल स्ट्रीट जर्नल ने स्कूल में दाखिले की प्रवेश प्रक्रिया संबंधी साहित्यिक परियोजना अपने पत्रकार के जरिये चैटजीपीटी की मदद से पूरी करवाई। यूं तो चैटजीपीटी ने उस प्रोजेक्ट के लिए दिए गए विषय पर बहुत ही साधारण सामग्री तैयार की थी, लेकिन पाया गया कि एक ऐसे छात्र- जिसे शोध का कोई पूर्व अनुभव नहीं है, को दाखिला देने लायक बी+ ग्रेड उस सामग्री पर मिल सकता था। यानी चैटजीपीटी से कोई असाधारण सामग्री या उत्तर भले न मिले, लेकिन कामचलाऊ से बेहतर नतीजा इससे मिल सकता है। सिर्फ लेखन सामग्री (टेक्स्ट) ही नहीं, बल्कि Dall-E जैसे एआई प्लेटफॉर्म साधारण फोटो को करिश्माई तस्वीरों में बदल सकते हैं, उन्हें पेंटिंग्स में भी ढाल सकते हैं। इसे लेकर दुनिया भर के कलाकारों-चित्रकारों ने भी चिंता जताई है क्योंकि इससे मौलिकता नष्ट हो रही है और कलाकारों से काम छिन रहा है।
पर खतरा असल में नौकरियों का है। और इसका सत्य अब यह है कि कृत्रिम बुद्धि से लैस मशीनें इंसानों से रोजगार छीन लेंगी- इस आशंका को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। दुनिया भर में कई कंपनियां बढ़ती श्रम लागत के मद्देनजर उत्पादन का काफी कामकाज रोबोट्स और एआई से लैस मशीनों-कंप्यूटरों के हवाले कर रही हैं। भारत में भी आईटी सेक्टर की 10 फीसदी नौकरियों पर ऑटोमेशन यानी खुद काम करने वाली मशीनों के कारण खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है। इंफोसिस के पूर्व अधिकारी टीवी मोहनदास पई के मुताबिक आज अगर आईटी सेक्टर हर साल दो से ढाई लाख नौकरियों का सृजन करता है, तो इनमें से 25 से 50 हजार नौकरियां ऑटोमेशन के कारण खत्म हो जाएंगी। वैज्ञानिक स्टीफन, मशहूर कारोबारी ईलॉन मस्क और माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स तक कह चुके हैं कि आने वाले वक्त में इंसानों को सुपर-स्मार्ट मशीनों से चुनौती मिल सकती है। जिस तरह से माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी और ईलॉन मस्क जैसे कारोबारी 'ओपनएआई' की उन परियोजनाओं में खूब पैसा लगा रहे हैं, जिनसे अक्लमंद मशीनें तैयार की जाएंगी- उससे लगता है कि एआई का यह शुरुआती दौर नौकरियों का संकट खड़ा करेगा। हालांकि हो सकता है कि इसमें आगे चलकर स्थिरता आए और एआई के जानकारों की बदौलत नई नौकरियों का सृजन हो।
लेखक एसोसिएट प्रोफेसर हैं।