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महज सियासी मजबूरी से न हो अग्निवीर योजना पर पुनर्विचार

07:31 AM Jun 18, 2024 IST
महज सियासी मजबूरी से न हो अग्निवीर योजना पर पुनर्विचार
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सी. उदय भास्कर
आम चुनाव-2024 का परिभाषित परिणाम यह है कि भारत का राजकाज सही मायने में गठबंधन सरकार चलाएगी, जिसमें भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है, जो दो मुख्य सहयोगियों, जनता दल यूनाइटेड और तेलुगू देशम पार्टी के नाजुक समर्थन पर टिकी है। अतएव, मोदी सरकार-3 में शासन का स्वरूप और अवयव पिछले एक दशक में देखे गए रंग-ढंग जैसा न होगा।
राष्ट्रीय सुरक्षा-सैन्य ढांचे के मामले में बदलाव लाने की मांग पहले ही सामने आ चुकी है। जनता दल (यू) ने कहा है कि मोदी सरकार-2 में लागू की गई विवादित अग्निपथ योजना को पुनर्समीक्षा की जरूरत है। इस योजना के तहत सेना में फौजी (अग्निवीर) की भर्ती, छह महीने के प्रशिक्षण सत्र के बाद, चार साल के लिए होती है, इसके सेवा-नियम पूर्व में लागू पेंशन एवं संबंधित लाभों से एकदम अलग हैं, जो विगत में अफसर से निचले स्तर के फौजियों को 15 साल के सेवाकाल के बाद मिला करते थे। शपथ समारोह से पूर्व जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी का बयान आया ः ‘अग्निपथ योजना को लेकर कुछ तबकों में रोष है। हमारी पार्टी चाहती है कि इसमें व्याप्त खामियों को दूर किया जाए’। जब वर्ष 2022 के मध्य में यह योजना लागू की गई थी, तब पेशेवर हलकों में इस बात को लेकर काफी नुक्ताचीनी हुई थी कि यह प्रधानमंत्री कार्यालय का शायद एकतरफा निर्णय है। नई योजना के सूक्ष्म बिंदुओं पर न तो सेना के आला अफसरों से सलाह-मशविरा किया गया, न ही सांसदों के बीच इस पर विस्तृत विमर्श हुआ। दिसंबर, 2019 से अप्रैल, 2022 तक सेनाध्यक्ष रहे जनरल एमएम नरवणे ने विमोचन की प्रतीक्षा कर रही अपनी किताब में अग्निपथ बाबत मूल्यवान जानकारी दी है। वे कहते हैं कि उन्होंने तो थल सेना में अल्प-कालिक भर्ती के लिए ‘टूअर-ऑफ-ड्यूटी’ नामक एक प्रयोगात्मक योजना का प्रारूप सुझाया था लेकिन 2022 में प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी नीति एकदम अलग स्वरूप वाली थी और इसको सेना के तीनों अंगों पर लागू कर दिया गया। यह भी कहा : ‘हम थल सेना वालों को तो घटनाक्रम में आए इस मोड़ से सिर्फ हैरानी ही हुई, लेकिन नाैसेना एवं वायु सेना के लिए तो यह अचानक चौंकाने वाली बात थी’।
नियमानुसार चलने वाले लोकतंत्र की रिवायतों का तकाजा है कि यदि देश का राजनीतिक नेतृत्व कोई नीति संबंधी निर्णय लेता है तो सेना के सर्वोच्च अधिकारियों को उसका पालन करना पड़ता है, अग्निपथ योजना में यही हुआ। हालांकि इसकी पृष्ठभूमि में, प्रमाणित है कि मोदी सरकार-2 का यह फैसला मुख्यतः बजटीय कारणों को ध्यान रखकर लिया गया (पेंशन मद बचाना), और इसका असर सेना की लड़ाकू-दक्षता पर कितना होगा, इस पर विचार गौण था।
अग्निपथ योजना सम्मिलित राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए दीर्घकाल में कितनी फायदेमंद रही, इसका अंदाजा एक दशक या उसके बाद ही हो पाएगा। जदयू की मांग ने अब किया यह है कि राजनीतिक मजबूरी ने सैन्य-व्यय पर पुनर्विचार करना आवश्यक बना डाला है। गठबंधन सरकार का एक भागीदार भाजपा को इस नीति की पुनर्समीक्षा करने को मजबूर कर रहा है, परंतु इसके पीछे वजह व्यावसायिक पहलू न होकर राजनीतिक है। यह तो बिहार में फौजी बनने के चाहवान युवाओं के बड़े वर्ग के गुस्से और हताशा को शांत करने के वास्ते है, क्योंकि अग्निपथ योजना फौजी वर्दी धारण करने का मौका उनसे छीनने के अलावा सरकारी पेंशन रूपी आर्थिक सुरक्षा से भी वंचित कर रही है। लोकसभा चुनाव से पहले चले प्रचार में, कांग्रेस और सपा के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने नई सैनिक भर्ती योजना पर अपने एतराज खुलकर जाहिर किए।
यह वांछित घटनाक्रम नहीं है, जिसमें महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा निर्णय और नीतियां लागू होने बाद उनपर बहस करनी पड़े। इससे बचा जा सकता था यदि अपने दूसरे कार्यकाल में अग्निपथ योजना की घोषणा करने से पहले प्रधानमंत्री मोदी सदन के अंदर और सेना के आला अधिकारियों से विचार-विमर्श करने की जहमत उठा लेते। इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय सेना और उच्च रक्षा प्रबंधकीय ढांचे में नीतियों की समीक्षा और तंत्र का पुनर्निर्माण करने की जरूरत बहुत ज्यादा है। मोदी सरकार-1 में चार रक्षा मंत्री रहे और जो एकमात्र बड़ा निर्णय लिया गया वह था, नवम्बर 2015 में वन रैंक-वन पेंशन को मंजूरी देना और इसका स्वागत भी हुआ। मोदी सरकार-2 (2019-24) में,प्रधानमंत्री ने कुछ साहसिक किंतु एकदम अलग निर्णय लिए, मसलन, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) पद और डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स (डीएमए) का सृजन। अलबत्ता पांच साल बाद भी, इस सिलसिले में विभागीय पुनर्गठन का काम अधूरा है।
लोकतांत्रिक स्वरूप वाली सरकारें वक्त के साथ अपनी नीतियों के सांचे में क्रमिक सुधार करती रहती हैं। भारत के मामले में, प्रत्येक प्रधानमंत्री – नेहरू और उनके बाद आने वाले – प्रधानमंत्री कार्यालय को और अधिक शक्तिशाली करते गए। लेकिन रिवायत रही कि संसद के भीतर, व विशेषकर विषय संबंधित संसदीय कमेटियों से सलाह-मशविरा किए जाने ने पारदर्शिता लाने और उद्देश्यपूर्ण समीक्षा एवं सर्वसम्मति की अनुमति के लिए मूल्यवान भूमिका निभाई।
लेकिन मोदी शासन की कार्यशैली में इस तरीके को तरजीह नहीं रही। अतएव, चाहे यह अग्निपथ योजना हो या किसी सेवानिवृत्त थ्री-स्टार जनरल को फोर-स्टार सीडीएस पद पर बैठाना, सब फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय में मनमाफिक लिए गए। राष्ट्रीय सुरक्षा और सेना के गैर-राजनीतिक चरित्र के मामले में यह कृत्य दीर्घ-काल में अच्छा सिद्ध नहीं होगा। घरेलू राजनीति की जरूरतों को मुख्य रखना और अल्प-कालीन राजनीतिक फायदे आंतरिक रक्षा मामलों को स्वरूप देते रहे। मणिपुर की त्रासदी इसकी एक बानगी है। एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री बहक कर गंभीर नीतिगत गलती कर सकता है, ऐसी जो राष्ट्रीय सुरक्षा को फिर से ठीक न किए जा सकने वाला नुकसान पहुंचा दे, यहां नेहरू-कृष्ण मेनन की भारी भूल एक चेतावनी है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में अत्यंत जरूरी है कि जल्दबाजी में फैसला लेने से बचा जाए और पहले सदन और संबंधित कमेटियों में इनपर यथेष्ट विचार-विमर्श हो।
अब जबकि मोदी सरकार-3 का कार्यकाल शुरू हुआ है, यह सही होगा कि सांसदों और विषय विशेषज्ञों को पिछले दस सालों के दौरान किए गए बड़े बदलावों की उद्देश्यपूर्ण समीक्षा की अनुमति हो और भारत की समग्र सैन्य क्षमताओं की मौजूदा स्थिति के मद्देनज़र आकलन किया जाए। बीसी खंडूरी संसदीय कमेटी रिपोर्ट-2017 में सेना की साजो-सामान संबंधी जिन कमियों को गिनाया गया था, उन पर ध्यान देना अच्छी शुरुआत बन सकता है। अग्निपथ योजना के अलावा, आत्मनिर्भरता बनाकर आयात घटाने पर ध्यान देना एक अन्य प्रमुख आवश्यकता है। इस प्रकार की पुनर्समीक्षाओं के लिए जरूरी नहीं कि कोई राजनीतिक मंशा या गलवान झड़प-2020 जैसी झकझोर देने वाली घटना कारक बने, बल्कि यह करना व्यवस्था का स्थाई अंग हो।
मोदी सरकार-3 के लिए शीघ्रतम काम है जून के मध्य से पहले नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति करना। उम्मीद करें कि संस्थागत सार्वभौमिकता और ईमानदारी का पोषण करने वाले जांचे-परखे सिद्धांतों पर राजनीति हावी नहीं की होगी।

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लेखक सोसायटी फॉर पॉलिसी स्टडीज़ के निदेशक हैं।

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