अग्निपथ विवाद
सेना में अल्पकालिक सेवा के लिए दो वर्ष पूर्व लायी गई अग्निपथ योजना लगातार विपक्षी दलों के निशाने पर रही है। समय-समय पर सेवानिवृत्त रक्षा अधिकारियों ने सशस्त्र बलों में अल्पकालिक भर्ती प्रक्रिया की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने इस योजना के विरोधाभासी मुद्दों को चिन्हित किया है। सवाल इस बात को लेकर उठाये जाते रहे हैं कि कुल अग्निवीरों के पच्चीस फीसदी को भी स्थायी कैडर में शामिल किया जाएगा। जबकि देश में प्रचुर संख्या में जनशक्ति उपलब्ध है। हाल ही में अग्निवीरों के कथित तौर पर आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने की भी चिंताजनक घटनाएं सामने आई हैं। ऐसे ही सेवा मुक्त होने के बाद रंगरूटों के पथ से भटकाव की आशंकाएं बनी रह सकती हैं। कुछ दिग्गजों ने तो यहां तक कहा है कि सेना की पूर्व निर्धारित भर्ती प्रणाली के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। दरअसल, सैन्य वर्ग के भीतर असहमति के अलावा, अग्निपथ योजना राजनीतिक क्षेत्र में भी खासा विवाद का विषय बना हुआ है। पिछले दिनों कारगिल विजय दिवस पर अपने संबोधन में, प्रधानमंत्री ने न केवल इस योजना का जोरदार ढंग से बचाव किया, बल्कि विपक्षी दलों पर भी भर्ती प्रक्रिया पर राजनीति करने का आरोप लगाया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि अग्निपथ का उद्देश्य सेनाओं को युवा व फिट बनाना है। उन्होंने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया कि यह पहल पेंशन के पैसे बचाने के लिये की गई थी।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल इस योजना को लगातार निशाने पर लेते रहे हैं। कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी दलों ने इस योजना को रद्द करने की मांग की है। इतना ही नहीं, सत्तारूढ़ राजग गठबंधन में शामिल सहयोगी दल जनता दल युनाइटेड ने भी इस योजना की व्यापक समीक्षा की मांग सरकार से की है। निस्संदेह, सरकार अग्निपथ योजना को लेकर उठ रही आवाजों को यूं ही नजरअंदाज नहीं कर सकती। आशंका जतायी जा रही है कि सेनाओं से जुड़े मुद्दों पर आम सहमति की कमी सशस्त्र बलों की युद्ध की तैयारियों को प्रभावित कर सकती है। कई भाजपा शासित राज्यों ने पुलिस जैसी वर्दीधारी सेवाओं में नौकरियों में अग्निवीरों के लिये आरक्षण या प्राथमिकता की घोषणा की है। लेकिन ये कदम विरोधियों को चुप कराने के लिये पर्याप्त नहीं हो सकता है। केंद्र सरकार को इस योजना को लेकर मिल रही प्रतिक्रिया को गंभीरता से लेना चाहिए। साथ ही योजना से जुड़ी विसंगतियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। निस्संदेह, इस मुद्दे पर अड़ियल रवैये की प्रतिक्रिया भविष्य में भी हो सकती है। जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा लाये गए तीन कृषि कानूनों के लागू होने के बाद विरोध प्रदर्शन सालभर चले थे। सरकार को गहनता से इस मुद्दे पर मंथन करना चाहिए। यह निर्विवाद सत्य है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सैनिकों के मनोबल को लेकर कोई प्रयोग नहीं किये जा सकते। देश के सत्ताधीशों को राजनीतिक बड़बोलेपन से परहेज करना चाहिए।