Aggressive Publicity आक्रामक प्रमोशन नहीं हिट की गारंटी
आजकल फिल्मों का प्रमोशन का बजट सैकड़ों करोड़ तक बढ़ चुका है। लेकिन महंगा प्रचार किसी बड़ी हिट की गारंटी नहीं। आक्रामक प्रमोशन से फिल्म को शुरुआती फायदा तो मिल जाता है,लेकिन अंतिम रूप से वही फिल्म हिट या सुपरहिट होती है, जो अच्छी कहानी, कसी हुई पटकथा से लैस हो।
डीजे नंदन
ब्रह्मास्त्र-100 करोड़ रुपये, जवान-70 करोड़ रुपये, पठान-50 करोड़ रुपये। यह रकम इन फिल्मों की लागत नहीं है,यह रकम इनके प्रमोशन की है। इनके बन जाने के बाद और थियेटर में पहुंचने के पहले की प्रचार कवायद का खर्चा है। आजकल बड़े सितारों वाली बड़े बजट की फिल्मों का प्रमोशन का बजट इतना बढ़ चुका है कि किसी जमाने में बड़े-बड़े निर्देशक इतने बजट की फिल्म का सपना देखा करते थे। जब अनिल कपूर और श्रीदेवी स्टारर फिल्म ‘रूप की रानी, चोरों का राजा’ 25 करोड़ रुपये में बनी थी, तो उसके प्रचार पोस्टरों में यह रकम भी लिखी गई थी ताकि देखने वाले दर्शक हैरान हो जाएं? लेकिन आज मझोली फिल्मों तक के महज प्रमोशन का इतना बजट होता है।
आक्रामक प्रचार का हासिल
मगर क्या फिल्मों का यह भारी-भरकम प्रमोशन बजट और आक्रामक तरीके से एक साथ कई प्लेटफॉर्म पर किया गया फिल्मों का प्रचार,उसकी सफलता की 100 फीसदी गारंटी है? निश्चित रूप से आक्रामक प्रचार किसी फिल्म की सफलता की गारंटी नहीं है। लेकिन इस आक्रामक प्रचार के जरिये फिल्म के पहले तीन, चार दिन या अधिकतम एक हफ्ते तक एडवांस बुकिंग के जरिये जबर्दस्त तरीके से दर्शकों को खींचा जा सकता है, इस रणनीति में अगर फिल्म सफल नहीं भी होती, तो भी वह काफी हद तक अपनी लागत निकाल लेती है। दूसरी बात यह कि इस आक्रामक प्रचार के जरिये ही दर्शक थियेटर तक आने का मन बनाते हैं।
दर्शक को निर्णय लेने में मददगार
दरअसल आजकल थियेटर में फिल्म देखना बहुत खर्चीला शगल बन गया है। साधारण आदमी आजकल थियेटर तक जाने के पहले दस बार सोचता है। क्योंकि 90 फीसदी थियेटर मल्टीप्लेक्स का हिस्सा हो गये हैं और यहां एक फिल्म देखना कम से कम 800 से 1000 रुपये का खर्च है। इसलिए दर्शक महंगी टिकट खरीदने के पहले उस फिल्म के बारे में काफी कुछ जान लेना चाहता है। फिल्मों का आक्रामक प्रमोशन फिल्मों के संभावित दर्शकों को उसके प्रति उत्सुक बनाता है और उन्हें फिल्म देखने का निर्णय लेने में मददगार होता है।
सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने की मजबूरी
सोशल मीडिया पर ट्रेंड करना, इन दिनों सफलता के पूर्व माहौल बनाने के लिए बहुत जरूरी हो चुका है और सोशल मीडिया में ट्रेंड कोई फिल्म तभी कर पाती है, जब वह डिजिटल मार्केटिंग के जरिये अंधाधुंध प्रचार करती है। इंस्टाग्राम, रील्स, यू-ट्यूब वीडियो और ट्विटर पर बड़े बजट की फिल्म के लिए प्रचार करना जरूरी हो गया है। क्योंकि कोई भी निर्माता, निर्देशक अपनी खराब कहानी वाली फिल्मों को शुरुआती दर्शकों के ‘वर्ल्ड ऑफ माउथ’ का शिकार नहीं होने देना चाहता।
निश्चित नहीं सफलता
हालांकि यह रणनीति भी आक्रामक प्रमोशन से हासिल होने वाली निश्चित सफलता की गारंटी नहीं है। हां, इससे शुरुआती कलेक्शन इतना आकर्षक हो जाता है कि उसका हश्र बेहद फ्लॉप फिल्मों जैसा न हो। क्योंकि अगर कंटेंट कमजोर है तो दो-तीन दिनों के बाद फिल्म का कमजोर होना तय है। मसलन फिल्म ब्रह्मास्त्र जो 400 करोड़ रुपये में बनी थी और उसके देश-विदेश में किये गये प्रचार में 100 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए गए थे, इसके बावजूद ब्रह्मास्त्र अपनी लागत नहीं निकाल पायी। वहीं ‘सम्राट पृथ्वीराज’ जो कि अक्षय कुमार स्टारर फिल्म थी, उसका का भी बहुत आक्रामक प्रमोशन हुआ था। लेकिन कमजोर कहानी के कारण फ्लॉप रही। आमिर खान की फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ भी ऐसे ही औंधे मुंह गिरी थी। लेकिन 2021 में आयी सलमान खान स्टारर फिल्म ‘राधे’ खराब कहानी और नकारात्मक निर्देशन के बावजूद आक्रामक प्रमोशन की वजह से कुछ सफल रही। कह सकते हैं कि आक्रामक प्रमोशन से फिल्म को शुरुआती फायदा तो मिल जाता है,लेकिन अंतिम रूप से वही फिल्म हिट या सुपरहिट होती है, जो अच्छी कहानी, कसी हुई पटकथा से लैस हो। -इ.रि.सें.