फिर नीतीश का यू टर्न
पिछले कुछ समय से बिहार में इंडिया गठबंधन की गांठें खुलने के कयास लग रहे थे। रविवार की सुबह नीतीश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे और शाम को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने ने उन कयासों को हकीकत बना दिया। बिहार में फिर आयाराम-गयाराम का मुहावरा चरितार्थ हुआ। नीतीश ने गठबंधन से अलग होने का भी ऐलान किया है। वर्ष 2022 में राजग गठबंधन से अलग हुए नीतीश फिर राजग के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बने हैं। निस्संदेह, उनका एनडीए में जाना इंडिया गठबंधन के लिये एक बड़ा झटका है। वह भी तब जब लोकसभा चुनाव बेहद करीब हैं। बहरहाल, भाजपा ने दिल्ली में सत्ता की राह के लिये निर्णायक चार बड़े राज्यों में से उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र व बिहार में समीकरण अपने पक्ष में साध लिये हैं। बिहार के वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील मोदी का वह बयान भी सिरे चढ़ा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि राजनीति में दरवाजे कभी पूरी तरह बंद नहीं होते। बहरहाल, सुशासन बाबू कहे जाने वाले नीतीश कुमार की साख पर इसकी आंच जरूर आएगी। लेकिन एक बात तय है कि आज शुचिता व मूल्यों की राजनीति की जगह सिर्फ वोट के समीकरण जुटाने की राजनीति ने हथिया ली है। भाजपा अब यह प्रचार जोर-शोर से करेगी कि विपक्षी गठबंधन के सूत्रधार रहे नीतीश बाबू अब राजग का हिस्सा हैं। निस्संदेह भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधकर विपक्ष की धार को कुंद किया है।
बहरहाल, एक बेहद सीमित प्रतिशत वाली जाति के नेता नीतीश ने राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी होने के बावजूद अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बरकरार रखी है। वहीं कहीं न कहीं मोदी की तीसरी जीत की राह भी आसान कर दी है। एक समय 2022 में राजग गठबंधन से अलग होने के बाद भाजपा के सूत्रधार अमित शाह ने कहा था कि नीतीश की राजग में वापसी नहीं होगी। लेकिन राजनीतिक समीकरणों ने उनकी वापसी सुनिश्चित कर दी। अब भाजपा को भी कहने का मौका मिल गया है कि जो विपक्षी एकता के सूत्रधार थे और जिनके नेतृत्व में पटना में इंडिया गठबंधन की पहली बैठक हुई थी, वो अब राजग का हिस्सा हैं। अब नीतीश के बयानों से ही इंडिया गठबंधन पर हमले बोले जाएंगे। बहरहाल, बार-बार पाला बदलकर सत्ता को साधने वाले नेता के रूप में नीतीश कुमार की यह पहचान फिर पुख्ता हुई है। इस तरह इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करके बिहार में सोशल इंजीनियरिंग करने वाले नीतीश ने इंडिया गठबंधन के लोकसभा चुनाव में सशक्त विपक्ष के सपने को तोड़ा है। कभी जय प्रकाश नारायण के आंदोलन से उपजे नीतीश ने कालांतर अपने साथियों लालू प्रसाद यादव व जार्ज फर्नांडिस से किनारा करके सत्ता की राह तलाशी। अपनी पांच दशक की राजनीति में वे सुविधा के हिसाब से लगातर पाले बदलते रहे। वर्ष 1996 में भाजपा से गठबंधन किया। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कई विभागों में केंद्रीय मंत्री भी रहे। फिर बिहार में लालू यादव का विकल्प बनकर उभरे। पिछले एक दशक में वे पांचवीं बार पाला बदल चुके हैं।