आखिर देर-सवेर मिला शेर को सवाशेर
सहीराम
अभी तक धर्म ही धर्म था। वह सब तरफ था, सर्वव्यापी था। वह राजनीति में था। वह राजनीति में था तो राजनीतिक रैलियों में था, नेताओं के भाषणों में था। वह संसद और विधानसभाओं के चक्कर लगा आता था। वह राजनीति में था तो जाहिर है खबरिया चैनलों पर भी था। खूब था। इफरात में था। प्राइम टाइम की बहसों और चर्चाओं में था। वह फिल्मों का फेरा लगा आता था। उसके चलते कई फिल्में हिट हो गयी थीं। वह शिक्षा पर प्रभाव डाल रहा था, वह इतिहास को बना और बिगाड़ रहा था। उसके लिए राजनीति और राजनेता ताने-उलाहने तक सहते थे। लेकिन उसे छाती से लगाए रहते थे। वह था, तो देशभक्ति थी, उसके बिना देशभक्ति भी कुछ नहीं थी, राष्ट्रवाद भी कुछ नहीं था। वह था तो किसी को भी देशद्रोही करार दिया जा सकता था- क्या कलाकार, क्या विद्वान। किसी को भी दुत्कार कर कहा जा सकता था- जा, चला जा पाकिस्तान। वह था तो महंगाई की परवाह नहीं थी। उसके लिए उसे और कई-कई गुना बर्दाश्त किया जा सकता था। वह था तो बेरोजगारी ने भी सताना छोड़ दिया था। उसके चलते गरीबी का रोना बंद हो गया था। उसके लिए स्वास्थ्य, शिक्षा सब सुविधाएं छोड़ी जा सकती थीं। वह था तो नेता लोग नीरो की तरह चैन की बांसुरी बजा सकते थे। वह था वे बेफिक्र थे। वह था वे निर्द्वंद्व थे। वह था तो चौड़ी छातियां थी, गर्व था।
लेकिन अब धर्म ही नहीं जात भी होगी। अभी तक धर्म ने जात को अपने आगोश में ले रखा था, अपने में समा रखा था। एक जात इस बगल, एक जात उस बगल। कोई पांवों से लिपटी थी तो कोई सिर-माथे पर। लेकिन छत्र एक ही था, छत्रछाया एक ही थी, शरणस्थली एक ही थी। सब वहीं शरण पाते थे। बाड़ा एक ही था। चौकीदार एक ही था। कोई उस बाड़े में, कोई छाती ताने था, कोई किसी को सींग घुसा रहा था, कोई किसी को लात मार रहा था। कोई दहाड़ रहा था, कोई सिसक रहा था। पर थे सब वहीं। अब जात आ गयी है, तो खतरा यही है कि सब वहां से भागेंगे। अब चौकीदार का धर्म का डंडा नहीं चलेगा। अब सब अपने अलग बाड़ों में विचरण करेंगे। अब शिकायतें आएंगी। कोई कहेगा हमें दबाया गया। धर्म के छत्र से अब दिन में भी तारे नजर आएंगे। अब पहले लगे पर्दों में जो सुराख होंगे, उनसे ताजी हवा आने की उम्मीद जगेगी। अब नीरो के लिए निर्द्वंद्व हो बांसुरी बजाना आसान नहीं रह जाएगा।