For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

आदि गुरु ने दिया था सप्त ऋषियों को ज्ञान

08:00 AM Jul 03, 2023 IST
आदि गुरु ने दिया था सप्त ऋषियों को ज्ञान
Advertisement

चेतनादित्य आलोक
प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ‘गुरु पूर्णिमा’ का पर्व मनाया जाता है। वहीं आषाढ़ महीने में होने के कारण इसे ‘आषाढ़ पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म होने के कारण इसे ‘व्यास पूर्णिमा’ एवं ‘वेद व्यास जयंती’ के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू संस्कृति में भी गुरु ही भगवान का ज्ञान कराते हैं। उनके बिना व्यक्ति को ब्रह्मज्ञान अथवा मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। वे अपने ज्ञान से जीवन में अध्यात्म और कर्म के महत्व एवं उनकी उपयोगिता का तथा नीति और अनीति के बीच के भेद तथा उनके महत्व का बोध कराकर हमें उचित मार्ग पर ले जाने का कार्य करते हैं। कहते हैं कि इस दिन श्रद्धापूर्वक गुरु की पूजा करने से यदि कुंडली में ‘गुरु दोष’ लगा हो तो वह अप्रभावी अथवा समाप्त हो जाता है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही गुरु-शिष्य परंपरा का विशेष महत्व रहा है।
गुरु पूर्णिमा का पर्व हमें आत्म गौरव की अनुभूतियों से भर देता है। इस दिन लोग अपने गुरुओं का पूजन कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करते हैं और उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। इस दिन महर्षि वेदव्यास जी की पूजा किये बिना गुरु पूर्णिमा की पूजा पूरी नहीं मानी जाती। दरअसल, शास्त्रीय मान्यता के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी भगवान श्रीविष्णु के अंश माने जाते हैं। यही नहीं, उन्होंने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान भी प्रदान किया था। इसलिए हिंदू संस्कृति में महर्षि वेदव्यास जी को सृष्टि के प्रथम गुरु की उपाधि प्राप्त है। ऐसे में उनकी पूजा किये बिना भला गुरु पूर्णिमा की पूजा कैसे संपन्न हो सकती है। वैसे इस अवसर पर गुरु के अतिरिक्त विशेष रूप से भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा करने का भी विधान है।
ऐसा माना जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन गो माता की पूजा, उनकी सेवा तथा उनका दान करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, जिसके परिणामस्वरूप जीवन में सुख-सौभाग्य एवं उत्तम स्वास्थ्य का आगमन होता है। शास्त्र बताते हैं कि गुरु पूर्णिमा के दिन घर के भीतर उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण में हल्दी मिले जल से साफ कर वहां घी के दीपक प्रज्वलित करने से संपूर्ण परिवार के ऊपर ईश्वर का आशीर्वाद बना रहता है, क्योंकि ईशान कोण का संबंध देवताओं के गुरु बृहस्पति देव से होता है। वैसे तो प्रत्येक महीने में आने वाला पूर्णिमा का पर्व पुण्य फलदायी माना ही जाता है, परंतु गुरु-शिष्य परंपरा को समर्पित गुरु पूर्णिमा का यह पर्व विशेष महत्व वाला होता है। पूर्णिमा तिथि को भगवान लक्ष्मी-नारायण की पूजा करने एवं श्रीसत्यनारायण भगवान की कथा सुनने से भगवान श्रीविष्णु का आशीर्वाद एवं देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
गुरु पूर्णिमा के दिन वेद, पुराण, गीता अथवा रामायण आदि में से किसी भी धर्मग्रंथ का पाठ करना सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक लाभदायी होता है। इसी प्रकार इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से धन, लक्ष्मी, यश, वैभव एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा उस तिथि का प्रतिनिधित्व करती है, जिस दिन भगवान शिव ने ‘आदि गुरु’ अथवा कहें कि ‘मूल गुरु’ के रूप में सभी वेदों के द्रष्टा सप्त ऋषियों को ज्ञान प्रदान किया था। यही नहीं, योगसूत्र में ‘प्रणव’ अथवा ‘ॐ’ के रूप में ‘ईश्वर’ या ‘परमात्मा’ को ‘योग का आदि गुरु’ कहा गया है। कहते हैं कि महात्मा बुद्ध ने इसी दिन को सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था। हिंदुओं के अतिरिक्त दुनियाभर के विभिन्न भागों में निवास करने वाले जैन, सिख एवं बौद्ध समुदाय के लोगों द्वारा भी गुरु पूर्णिमा का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, जो इस पवित्र तिथि के महत्व को दर्शाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष आषाढ़ महीने की पूर्णिमा तिथि का आरंभ दो जुलाई की रात आठ बजकर 21 मिनट पर और समापन तीन जुलाई की शाम पांच बजकर आठ मिनट पर होगा। इस प्रकार पारंपरिक उदया तिथि के अनुसार इस वर्ष गुरु पूर्णिमा का पर्व तीन जुलाई यानी सोमवार को मनाया जायेगा।

Advertisement

Advertisement
Tags :
Advertisement