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Acharya Devvrat-Nayab Saini : गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने CM सैनी से की शिष्टाचार मुलाकात, प्राकृतिक खेती के लिए मांगा सहयोग

09:31 PM Apr 16, 2025 IST

ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 16 अप्रैल।

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हरियाणा की नायब सरकार ने प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत से सहयोग मांगा है। नायब सरकार ने इस साल प्रदेश में एक लाख एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती करवाने का लक्ष्य रखा है।

राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने सीएम आवास पर नायब सैनी के साथ शिष्टाचार मुलाकात की। पंजाब से लौटते वक्त चंडीगढ़ पहुंचे राज्यपाल ने मुख्यमंत्री ने मुलाकात के दौरान प्राकृतिक खेती पर काफी देर तक चर्चा की। बता दें कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एजेंडे में टॉप पर है। आचार्य देवव्रत गुजरात से पहले हिमाचल के राज्यपाल रहे हैं और वहां के किसानों को भी प्राकृतिक खेती की ओर आकर्षित किया। गुजरात में भी 23 लाख के करीब किसानों को इस खेती के लिए वे ट्रेंड कर चुके हैं।

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प्रदेश की नायब सरकार ने प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को देसी गाय की खरीद पर 25 हजार की बजाय 30 हजार रुपये सब्सिडी देने का भी फैसला लिया है। पहले यह सुविधा दो एकड़ या इससे अधिक की खेती पर किसानों को मिलती थी। अब सरकार एक एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को भी गाय खरीद पर अनुदान देगी। राज्यपाल व सीएम के बीच हुई चर्चा में इस बात पर सहमति बनी कि जल्द ही व्यापक कार्यक्रम बनाया जाएगा ताकि किसानों को जागरूक किया जा सके।

इससे पहले भी आचार्य देवव्रत हरियाणा के विभिन्न जिलों व जेलों में वर्कशॉप करके प्राकृतिक खेती के फायदों के बारे मंल बता चुके हैं। देसी गाय की खरीद पर अनुदान भी इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि इस जीरो-बजट खेती में गाय के मूत्र-गोबर, दाल व गुड़ आदि से प्राकृतिक खाद तैयार होती है। चरखी दादरी से भाजपा विधायक व जेल सुपरिटेंडेंट रहे सुनील सतपाल सांगवान रोहतक जेल में रहते हुए वहां प्राकृतिक खेती की शुरूआत करवा चुके हैं।

मुलाकात के दौरान दोनों के बीच अन्य विषयों के साथ-साथ प्राकृतिक खेती पर सारगर्भित चर्चा हुई। मुख्यमंत्री ने राज्यपाल की प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में दीर्घकालिक सेवाओं, प्रेरक योगदान एवं समर्पण भाव की सराहना की। इस मौके पर आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती केवल एक कृषि पद्धति नहीं बल्कि पर्यावरण, स्वास्थ्य और किसान की समृद्धि से जुड़ा एक व्यापक आंदोलन है। आज की परिस्थिति में खेती की यह विधा न केवल मिट्टी की उर्वरता को बचाने में सहायक है बल्कि कृषकों की लागत को घटाकर आय में बढ़ोतरी का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

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