आस्था की नगरी बेरी में सियासत की अनूठी रणभेरी
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
बेरी, 19 सितंबर
झज्जर जिले का बेरी कस्बा। धार्मिक नगरी के नाम से भी विख्यात। सौ से अधिक छोटे-बड़े मंदिरों वाले इस कस्बे में स्थित भीमेश्वरी देवी मंदिर के प्रति लोगों की अटूट आस्था है। नवरात्रों के समय यहां लाखों श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। बेरी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले सभी राजनीतिक दलों के नेता अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत भीमेश्वरी देवी से आशीर्वाद के बाद ही करते हैं।
बेरी के इस मंदिर का महत्व महाभारतकाल से जुड़ा है। महाभारत की लड़ाई में श्रीकृष्णा के निर्देशों पर भीम अपनी कुलदेवी को हिंगले पर्वत (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित) से लाए थे। किंवदंतियों के अनुसार, उस समय कुलदेवी युद्ध के मैदान में चलने के लिए राजी हो गईं, लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि भीम उन्हें जमीन में नहीं बिठाएंगे। बेरी पहुंचने के बाद प्यास लगने पर भीम ने अपनी गदा से पानी निकाला और उसी दौरान उन्होंने कुलदेवी को जमीन पर स्थापित कर दिया। चूंकि कुलदेवी शर्त के साथ चली थीं। भीम ने जब उन्हें उठाने की कोशिश की तो वह उन्हें उठा नहीं सके। हालांकि कुलदेवी ने पांडवों को जीत का आशीर्वाद दिया। इसी वजह से मंदिर का नाम भीम के नाम पर भीमेश्वरी देवी पड़ा। ऐसा भी कहा जाता है कि कौरवों के परास्त होने के बाद इस मंदिर की स्थापना की गई। धार्मिक नजरिये के साथ-साथ राजनीतिक तौर पर भी इस क्षेत्र का बड़ा महत्व है।
हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री रहे पंडित भगवत दयाल शर्मा भी बेरी के ही रहने वाले थे। बेरी हलके से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ रहे डॉ. रघुबीर सिंह कादियान अब राजनीति में भी ‘पीएचडी’ कर चुके हैं। हिसार स्थित एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में 16 वर्षों तक प्रोफेसर रहे डॉ. कादियान ने देवीलाल की पाठशाला से राजनीति का ककहरा सीखा। वह बेरी से छह बार विधायक बने हैं। लगातार पांच बार एक ही सीट से चुनाव जीतने वाले प्रदेश के चुनिंदा नेताओं में उनकी गिनती होती है। इस बार वह फिर मैदान में हैं।
डॉ. कादियान पहली बार 1987 में लोकदल के टिकट पर बेरी से विधायक बने। बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। फिर 1996 में कांग्रेस टिकट पर बेरी से समता पार्टी के प्रो. वीरेंद्र पाल के हाथों चुनाव हारे। हालांकि अगले ही चुनाव यानी 2000 में उन्होंने प्रो. वीरेंद्र पाल से हार का बदला ले लिया और दूसरी बार विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे। 2000 के बाद से लेकर 2019 तक हुए पांच चुनावों में उन्होंने कभी हार का मुंह नहीं देखा। जाट बाहुल्य बेरी में जाटों के दो गोत्र कादियान और अहलावत सबसे बड़े हैं। भाजपा टिकट पर पूर्व में विक्रम कादियान चुनाव लड़ते रहे हैं। लेकिन इस बार भाजपा ने बादली हलके के संजय कबलाना को बेरी से चुनावी मैदान में उतारना पड़ा।
तीन अहलावत मांग रहे थे टिकट
इस बार बेरी हलके से भाजपा से टिकट मांगने वालों में अमित डीघल, प्रदीप अहलावत और नीलम अहलावत शामिल थे। विक्रम कादियान भी टिकट के लिए लॉबिंग कर रहे थे, लेकिन भाजपा ने चारों में से किसी को टिकट नहीं दिया। टिकट कटने से आहत भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष विक्रम कादियान ने पार्टी को अलविदा बोल दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए। वहीं बागी हुए अमित डीघल निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में आ डटे। संजय कबलाना पर जहां ‘पैराशूट’ और ‘बाहरी’ उम्मीदवार होने का टैग लगा है। वहीं अमित डीघल ने भी पार्टी के समीकरण बिगाड़ दिए हैं।