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आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नयन का समय

09:04 AM Oct 21, 2024 IST
आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नयन का समय
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चेतनादित्य आलोक
हिंदू पंचांग का आठवां महीना कार्तिक न केवल धार्मिक अनुशासन का, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि, भावनात्मक रूपांतरण एवं व्यक्तिगत विकास का भी अवसर होता है। वहीं, धार्मिक उपलब्धियों एवं आध्यात्मिक उन्नयन के लिए यह अन्य सभी महीनों में सर्वोत्तम तथा पवित्र माना जाता है। इस महीने के स्वामी भगवान कार्तिकेय हैं। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान कार्तिकेय की विशेष पूजा की जाती है। बता दें कि भगवान कार्तिकेय को दक्षिण दिशा का स्वामी माना जाता है। कार्तिक चातुर्मास का अंतिम महीना होता है। इस महीने में देवोत्थान या देवउठनी एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु चार महीने की योगनिद्रा के बाद पुनः जागते हैं, जिसके पश्चात सनातन धर्म में सभी प्रकार के शुभ तथा मांगलिक कार्य फिर से आरंभ हो जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य कार्तिक महीने में प्रतिदिन श्रीमद्भग्वद्गीता का पाठ करता है, उसे अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। कार्तिक के पूरे महीने में भगवान श्रीहरि विष्णु, माता लक्ष्मी और तुलसी माता की पूजा, गंगा स्नान और दीपदान का विशेष महत्व होता है। गौरतलब है कि भगवान कार्तिकेय ने इसी महीने में तारकासुर का वध किया था। इसलिए उनके पराक्रम को सम्मान देने के लिए इस महीने का नाम कार्तिक रखा गया। स्कंदपुराण एवं पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक का महीना धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष दिलाने वाला होता है। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि भगवान विष्णु का प्रथम यानी ‘मत्स्यावतार’ भी कार्तिक पूर्णिमा को ही हुआ था।

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कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन को ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक महाबलशाली असुर का वध किया था। इसी वजह से कार्तिक पूर्णिमा को ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार उस दानव के भीषण अत्याचारों से मुक्ति मिलने पर प्रसन्न होकर देवताओं ने भगवान शिव को ‘त्रिपुरारी’ नाम दिया। वैसे तो भगवान श्रीराम द्वारा लंका पर विजय प्राप्त करने की खुशी में कार्तिक अमावस्या के अवसर पर देश भर में दीपावली मनाई जाती है, लेकिन काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन भी दीपावली मनाई जाती है। इसे ‘देव-दीपावली’ कहते हैं। इस अवसर पर काशी के गंगा घाटों के अलावा पूरी नगरी को पुष्पों, दीपों, फूल-मालाओं, तोरण-द्वारों एवं सजावट की अन्य वस्तुओं से सजाया जाता है। दरअसल, मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवतागण देवलोक से काशी की धरती पर पधारते हैं।

दीपदान का महत्व
कार्तिक महीने में सर्वाधिक महत्व दीपदान करने का होता है। दीपदान करने का वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय महत्व भी है। विज्ञान के अनुसार इस महीने में पृथ्वी से दूर होने के कारण सूर्य की रोशनी बेहद कम हो जाती है। इसी प्रकार, ज्योतिषीय दृष्टि से भी इस महीने में संपूर्ण चराचर जगत‍् को प्रकाशमान करने वाले भगवान सूर्यनारायण अपनी निचली राशि यानी तुला में निवास करते हैं, जिसके कारण पृथ्वी पर प्रकाश का अभाव होता है और सब तरफ नकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है, जबकि दीपक का प्रकाश वातावरण के अंधेरे को मिटाकर प्रकाश का विस्तार तथा नकारात्मक ऊर्जा का नाश करता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो देवालय में, नदी के किनारे, सड़क पर अथवा शयन के स्थान पर दीपदान करते हैं, उन्हें सर्वतोमुखी यानी हर तरफ से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। जो मंदिर में दीप जलाते हैं, उन्हें श्रीविष्णु लोक में जगह मिलती है और जो दुर्गम स्थान पर दीपदान करते हैं, वे कभी नर्क में नहीं जाते, ऐसी मान्यता है।

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स्नान का महत्व
स्नानादि के लिए कार्तिक का महीना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। पुराणों के अनुसार इस महीने में भगवान श्रीहरि विष्णु ‘नारायण’ के रूप में जल में निवास करते हैं। इसलिए कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक नियमित रूप से नदियों, तालाबों, झरनों, जलाशयों, आदि में स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, लेकिन शास्त्रों के अनुसार स्नान सूर्योदय से पहले करने का ही विशेष महत्व है।

दान-पुण्य का महत्व
शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार शीत ऋतु का आगमन होने के कारण इस महीने में निर्धनों और जरूरतमंद लोगों को अनाजों, वस्त्रों, ऊनी वस्त्रों, कंबलों आदि का दान करना अत्यंत पुण्य-फलदाई होता है। इस महीने तुलसी, अन्न, गाय, केले के फल और आंवले का पौधा दान करने का विशेष महत्व होता है। वहीं, गौशालाओं में गायों की देखभाल तथा उनके लिए चारे एवं धन का दान करना भी उत्तम माना गया है। इस महीने नित्य प्रातः भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा और रात्रि में ‘आकाश-दीप’ का दान करना चाहिए।

कथा और गीतों का महत्व
इस महीने में विशेष रूप से ‘कार्तिक मास की कथा’ पढ़ने या सुनने और भक्ति गीतों के गाने से जीवन में भक्ति एवं श्रद्धा में वृद्धि होती है। यदि नित्य संभव न हो तो कम-से-कम कार्तिक अमावस्या और पूर्णमा के अतिरिक्त प्रत्येक गुरुवार को ‘कार्तिक मास की कथा’ पढ़ें या सुनें।

जल संरक्षण का संदेश
कार्तिक का पूरा महीना व्रतों और पर्व-त्योहारों से भरे होने के कारण लगभग पूरा महीना ही जलाशयों, नदियों, झरनों, जलकुंडों आदि के निकट व्यतीत करने की परंपरा प्राचीनकाल से ही रही है। इसीलिए सनातन धर्म में जल को जीवन का अभिन्न अंग माना गया है तथा जल को शुद्ध और संरक्षित रखने पर जोर दिया गया है। इसलिए यदि कहा जाए कि कार्तिक महीने का एक प्रमुख संदेश जल को शुद्ध और संरक्षित रखना है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

सकारात्मकता एवं नव-जीवंतता
कार्तिक का महीना व्रतों और पर्व-त्योहारों की प्रचुरता के कारण हर्ष और उल्लास से भरा होता है। इस दौरान मनुष्य का मन सकारात्मक विचारों से भरा होता है। साथ ही, भविष्य को लेकर व्यक्ति बेहद आशान्वित होता है। इसीलिए इस महीने को सकारात्मकता, उम्मीद और नवजीवन का प्रतीक माना गया है।

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