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लाहुल-स्पीति की धार्मिक सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

10:41 AM Aug 30, 2024 IST
लाहुल स्पीति की धार्मिक सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

लाहुल स्पीति एक बेहद खूबसूरत इलाका है। रोहतांग सुरंग पार करने के बाद, एक नई दुनिया खुलती है, जो आपकी कल्पना से परे है। यहां मीलों फैली वादियां हैं, जिनमें हरियाली की कमी है; भूरे पहाड़, कुछ पेड़-पौधे और सब्जियों के खेत हैं।

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रमेश पठानिया

अगर आप लाहुल स्पीति नहीं गए हैं, तो आपने एक बेहद खूबसूरत इलाका नहीं देखा। रोहतांग सुरंग पार करने के बाद, एक नई दुनिया खुलती है, जो आपकी कल्पना से परे है। यहां मीलों फैली वादियां हैं, जिनमें हरियाली की कमी है; भूरे पहाड़, कुछ पेड़-पौधे, और सब्जियों के खेत हैं। कुछ साल पहले लाहुल घाटी में सेब लगाने शुरू किए गए थे, जो अब सफल साबित हुए हैं। कुल्लू और मनाली से लाहुल घाटी के लिए बसें चलती हैं, जो आपको केलांग तक ले जाएंगी। केलांग से आप उदयपुर की बस ले सकते हैं, जो चंद्रभागा नदी के साथ-साथ पहाड़ी पर बलखाती हुई आपको लाहुल घाटी के विहंगम दृश्यों से परिचित कराती है। जब आप उदयपुर पहुंचते हैं, तो वहां से आप त्रिलोकनाथ मंदिर के लिए बस या टैक्सी ले सकते हैं।

त्रिलोकनाथ मंदिर

लाहुल में त्रिलोकनाथ मंदिर एक प्राचीन और पवित्र तीर्थ स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और अपनी अनोखी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यह हिंदू और बौद्ध दोनों समुदायों के लिए समान रूप से श्रद्धेय है। हिंदुओं के लिए त्रिलोकनाथ मंदिर भगवान शिव का मंदिर है। त्रिलोकनाथ का अर्थ ‘तीनों लोकों के स्वामी’ है। यहां शिवजी को त्रिलोकनाथ के रूप में पूजा जाता है। श्रद्धालु यहां दर्शन और पूजा के लिए दूर-दूर से आते हैं, विशेषकर शिवरात्रि और अन्य धार्मिक अवसरों पर।

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बौद्ध आस्था का प्रतीक

बौद्ध धर्म के अनुयायी इस मंदिर को अवलोकितेश्वर के रूप में पूजते हैं, जो करुणा के बोधिसत्त्व माने जाते हैं। बौद्ध धर्म में भी इस मंदिर का विशेष महत्व है और इसे आध्यात्मिक शांति और मोक्ष प्राप्ति का स्थल माना जाता है। यह मंदिर हिंदू और बौद्ध वास्तुकला का एक अद्वितीय मिश्रण है। यहां लकड़ी की बारीक नक्काशी, पत्थर की मूर्तियां, और सुंदर सजावट के माध्यम से धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों को प्रदर्शित किया गया है। मंदिर में स्थित मूर्ति सफेद संगमरमर से बनी है, जो अपने अद्वितीय और शांत भाव के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि मूर्ति के दर्शन से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

मंदिर का इतिहास

मंदिर 10वीं सदी में बनाया गया था। यह एक पत्थर शिलालेख द्वारा प्रमाणित हुआ, जो 2002 में मंदिर परिसर में पाया गया था। इस शिलालेख में उल्लेख है कि यह मंदिर दीवान चंद राणा द्वारा बनवाया गया था, जो त्रिलोकनाथ गांव के राणा ठाकुरों के पूर्वज हैं। उन्हें विश्वास था कि चंबा के राजा शैल वर्मन ने ‘शिकर शैली’ में इस मंदिर का निर्माण किया था। राजा शैल वर्मन चंबा शहर के संस्थापक थे। चंबा महायोगी सिद्ध चरपथ (चरपथ नाथ) के राजगढ़ ने भी यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने बोधिसत्त्व आर्य अवलोकितेश्वर के लिए असीम भक्ति की थी और इस शील में 25 श्लोकों की रचना की थी, जिसे ‘अवलोकितेश्वर स्त्रोत’ कहा जाता है। स्थानीय कहानी के अनुसार, मंदिर एक रात में ‘महा दानव’ द्वारा पूरा किया गया था। वर्तमान हींसा नल्ला अद्वितीय है क्योंकि इसका पानी अभी भी दूधिया सफेद है और कभी भी भारी बारिश में इसका रंग नहीं बदलता है।

साझी विरासत

त्रिलोकनाथ मंदिर में आयोजित होने वाला पोड़ी उत्सव यहां का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है, और भगवान की मूर्ति की शोभायात्रा निकाली जाती है। इस अवसर पर हिंदू और बौद्ध दोनों समुदायों के लोग एक साथ मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं।

स्थान और पहुंच

त्रिलोकनाथ मंदिर एक छोटे से गांव त्रिलोकनाथ में स्थित है, जो केलांग से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है, जहां से चारों ओर के पर्वतों और घाटियों का अद्भुत दृश्य देखा जा सकता है। त्रिलोकनाथ गांव में ज्यादा घर नहीं हैं और आबादी भी अधिक नहीं है। यहां कुछ ढाबे हैं जहां अच्छा सात्विक खाना मिलता है। मंदिर के पास एक धर्मशाला भी है जहां आप रात को रह सकते हैं। त्रिलोकनाथ मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह लाहुल और स्पीति की धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। यहां की शांत और आध्यात्मिक ऊर्जा लोगों को ध्यान और आंतरिक शांति के लिए आकर्षित करती है। सितंबर से नवंबर तक, जब तक बर्फ नहीं गिरती, रास्ते खुले रहते हैं।

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