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प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक

10:18 AM Sep 16, 2024 IST
प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक
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बुशरा तबस्सुम
ईद का अर्थ है जश्न और उल्लास। इसका एक अर्थ त्योहार भी है। यों तो मुख्य रूप से रमज़ान के बाद मनाई जाने वाली ईद को ही ईद के रूप में पहचाना जाता है लेकिन मुस्लिम समाज में तीन ईद मनाई जाती हैं। रमज़ान के तीस रोज़ो के पश्चात शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर जिसे मीठी ईद भी कहा जाता है। जी-उल-हज माह की दसवीं तारीख को ईद-उल-जुहा जिसे बकराईद भी कहा जाता है। इन दोनों ईदों के अतिरिक्त जिस ईद का सर्वाधिक महत्व है वह है रबी उल अव्वल की बारहवीं तारीख को मनाई जाने वाली ईद-मिलाद-उन नबी। इस वर्ष सितंबर की सोलह तारीख में यह पवित्र त्योहार मनाया जा रहा है।
मुस्लिम समाज में हज़रत मुहम्मद सल्लैह अला का विशेष महत्व है। उन्हें अंतिम पैगम्बर के रूप में याद किया जाता है। इनका जन्म 571वीं ईस्वी में हुआ था। इनके वालिद का नाम अब्दुल्ला और मां का‌ नाम अमीना था। इनके जन्म से पूर्व अरब देश की स्थिति अच्छी नहीं थी। समाज में घोर अराजकता थी। नियम-कानून की बंदिशों से आजाद वहां के निवासी बुरे कर्मों में लिप्त थे। इस्लामिक मान्यता के अनुसार हज़रत मोहम्मद अल्लाह के संदेशवाहक थे जिन्हें एकेश्वरवादी शिक्षाओं की पुष्टि के लिए भेजा गया। इन्होंने कुरान के माध्यम से कौम को सही राह दिखाई। पवित्र क़ुरआन इन्हीं के माध्यम से लोगों तक पहुंचा। इन्हीं पैगम्बर की योमे पैदाइश को सभी मुस्लिम त्योहार के रूप में मनाते हैं।
अरबी भाषा में ‘मौलिद’ शब्द‌ का अर्थ है पैदाइश। मौलिद-ए-नवी मतलब नबी का जन्म जो कालांतर में अपभ्रंश होकर मिलाद-ए-नवी हो गया। पैगम्बर और अंतिम पैग़म्बर को धीरे-धीरे लोग त्योहार के रूप में मनाने लगे। यह त्योहार ईद मिलाद-उन-नबी के नाम से लगभग पूरे विश्व मे मनाया जाने लगा। कहा जाता है कि इस त्योहार को मनाने की शुरुआत मिस्र में ग्यारहवीं सदी में हुई। पैग़म्बर की मृत्यु की तीन सदी बाद यह धीरे-धीरे पूरे विश्व में मनाया जाने लगा। ईद मिलादुन्नबी के रोज़ सभी मुस्लिम नबी की शिक्षाओं को दोहराते हैं। बच्चों को उनके संदेश सुनाए जाते हैं, प्रतीकात्मक रूप से जुलूस निकाले जाते हैं, जुलूस में नात शरीफ पढ़ी जाती है और हुजूर पाक की शान में नारे लगाए जाते हैं।
शिया व सुन्नी समुदाय में इसे मनाने के तरीके अलग-अलग हैं। जुलूस-जलसे अधिकतर शिया समुदाय में निकाले जाते हैं। सुन्नी समुदाय उनकी शिक्षाओं को दोहराते हैं कुरान की तिलावत करते हैं। मस्जिदों आदि में जलसे होते हैं, विशेष नमाज़े पड़ी जाती हैं। लोग सारी रात जागकर इबादत करते देखे जाते हैं। घरों को विशेष रूप से सजाया जाता है। रोशनी की जाती है, महिलाएं पकवान विशेष रूप से मीठे पकवान बनाती हैं और इबादत भी करती हैं।
इस प्रकार ईद जिसका अर्थ त्योहार, हर्ष और उल्लास है। हजरत मोहम्मद के जन्मदिवस पर भी ईद मिलाद-उन-नबी के नाम से मनाई जाती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आज ही के दिन मोहम्मद साह‌ब का निधन भी हुआ था। इसलिए इसको बारह वफात भी कहा जाता है। किंवदंती है कि बारह दिन बीमार रहने के बाद आपने वफात पाई इसलिए इसका नाम बारह वफात पड़ा। सुन्नी समुदाय वफात को याद करते हुए कुरान की तिलावत पर अधिक ज़ोर‌ देते हैं। इस प्रकार अलग-अलग तरीकों से पूरे विश्व में एक साथ मनाया जाने वाला यह मुस्लिमों का विशेष महत्व वाला त्योहार है।

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