समाज के कटु यथार्थ का बोध
रश्मि खरबंदा
पुस्तक : मुट्ठी भर मिट्टी लेखिका : डॉ. इंदु गुप्ता प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 160 मूल्य : रु. 450.
हिंदी, पंजाबी, उर्दू में लिखने वाली डॉ. इंदु गुप्ता की किताब ‘मुट्ठी भर मिट्टी’ सात कहानियों का संग्रह है। कहानियां समाज का आईना-स्वरूप हैं। गांव-शहर, अंग्रेज़ी-भाषी, शिक्षित-अशिक्षित, हर प्रकार के किरदार इनका हिस्सा हैं, जिनसे पाठक किसी-न-किसी रूप से जुड़ाव महसूस करेगा। कहानियां समाज के कड़वे सत्यों से रूबरू कराती हैं।
प्रथम कहानी ‘बिना नींव के’ में तीन ऐसे किरदार हैं जो नदियों की तरह अकेले, शीतल और गहरे हैं, लेकिन मिलकर एक प्रशस्त समुद्र बन जाते हैं। इस फ़साने में पीड़ा है, उदासी है, परंतु उम्मीद भी। बिना खून के रिश्तों के भी परिवार बनता है। वहीं कहानी ‘वंशान्तरण’ में खून के रिश्तों में भी परायापन है।
कहानी ‘आप या मैं’ ऐसी औरत के बारे में है जिसके दो परिवार— मायका और ससुराल होने के बावजूद उसका कोई अपना न हो सका। हर रिश्ते का प्यार उसके अस्तित्व से जुड़ी सहूलतों को ही मिला।
मुख्य पात्र मंजुला शरीर से अपाहिज है पर यह कहानी समाज की मानसिक अपंगता को उजागर करती है। बराय नाम कहानी ‘मुट्ठी भर मिट्टी’ में हिन्दू-मुसलमान की दीवार को दर्शाया गया है जो इंसानियत के आगे चरमरा जाती है। हम जितना भी वाद-विवाद कर लें, जितने भी मतभेद रख लें, पर मानवता सब पर भारी पड़ती है। पुस्तक का झुकाव समाज-सुधार के साथ स्वः आकलन की ओर भी है।