हर कदम पर जिम्मेदारी और समझदारी का अहसास
अमिताभ स.
सिंगापुर की रंगत की जितनी तारीफ की जाए, कम है। ए-वन साफ-सफाई, जीरो अपराध, ट्रैफिक क़ायदे-नियमों के पालक जैसी खूबियों से लेस सिंगापुर एशिया में होने के बावजूद किसी मायने में भी यूरोप के देशों से कम नहीं है। इसके चंगी एयरपोर्ट पर उतरने से पहले हवाई जहाज़ में ही चेता दिया जाता है कि सिंगापुर में विदेश से सिगरेट, च्वइंगम और नशीले पदार्थ लाने की सख्त रोक है। हालांकि, सिंगापुर में सिगरेट बहुत महंगे हैं, लेकिन बिकते हैं, चुनिंदा जगहों पर पीने की छूट भी है। ओरचिड रोड जैसी शानदार शॉपिंग स्ट्रीट की फुटपाथों पर जगह-जगह कूड़ेदान और उन पर ऐश-ट्रे जुड़ी हैं। अगर कोई तय ऐश ट्रे जगहों से हट कर सिगरेट पीता पकड़ा जाए, तो करीब 50 हज़ार रुपये जुर्माना है। सड़कों पर कूड़ा फेंकने का जुर्माना भी इतना ही है। मॉल्स में सिगरेट पीना पूर्णत: मना है।
सिंगापुर की सड़कों की साफ-सफाई और आबोहवा अपने तमाम बड़े शहरों से कहीं बेहतर है। बावजूद इसके कि वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सभी बसें डीजल से चलती हैं। सिंगापुर खुद को 70 फीसदी साफ-स्वच्छ शहर मानता है। सौ फ़ीसदी नहीं क्योंकि पेड़ों के पत्ते सड़कों पर गिर- गिर कर कूड़ा बनाते हैं। वैसे, सिंगापुर 23 फीसदी हराभरा है। इसीलिए यह ‘सिटी विद इन ए गार्डन’ भी कहलाता है। खास बात है कि वहां बड़ी तादाद में गौरैया चिड़िया खूब दिखाई देती है, दिल्ली या देश के अन्य महानगरों की तरह गायब नहीं हुई है।
न पुलिस, न अपराध
सिंगापुर में नाममात्र अपराध होते हैं। ऐसा तब है, जब दिल्ली और अपने महानगरों से उलट वहां की सड़कों पर पुलिस और ट्रैफिक पुलिस बिल्कुल दिखाई नहीं देती। वहां हर 10 में से 6 पुलिसकर्मी सिविल ड्रेस में गश्त लगाते हैं। ऐसे हर किसी को लगता है कि पुलिस यहीं कहीं आसपास है। किसी भी क्षण पकड़े जाने के डर के मारे कोई गलत काम को अंजाम देने की जुर्रत ही नहीं करता। नतीजतन अपराध मुक्त बन गया है। ऊपर से लेकर निचले स्तर तक भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी कहीं नहीं है। वहां पिस्तौल या बंदूक रखना बहुत बड़ा गहन जुर्म है। लाइसेंस मिलता ही नहीं, न ही लाइसेंस लेने-देने का कोई नियम है। चोरी-छिपे पिस्तौल या बंदूक़ रखने के जुर्म की सज़ा में कोई अपील- दलील की गुंजाइश नहीं होती, सीधे सजा-ए-मौत है।
कई सड़कों के किनारे दो पीली लाइनें खिंची हैं। मतलब है- नो पार्किंग। कुछ-कुछ सड़कों किनारे पार्किंग कर भी सकते हैं। ऐसी सड़कों पर, पार्क कर सकने वाली कारों की अधिकतम संख्या दर्ज हैं, जिससे ज्यादा कारें खड़ी करना मना है। केवल अंडरग्राउंड दौड़ती मेट्रो को एम.आर.टी. कहते हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सिंगल, आगे-पीछे डबल और ऊपर-नीचे डबल-डेक्कर तीनों तरह की बसें हैं। ऑटो बिल्कुल नहीं है, टैक्सियां अलग-अलग रंगों की हैं। टैक्सी स्टैंडों पर लोग अपनी-अपनी बारी की टैक्सी के इंतजार में कतार में खड़े रहते हैं। पैदल सड़क पार करने वालों के लिए भी बाकायदा ट्रैफिक सिग्नल हैं। किसी-किसी क्रॉसिंग पर राहगीरों के लिए ग्रीन लाइट का बटन दबा कर, सड़क पार करने की सुविधा है।
बारिश घंटा भर ही
सिंगापुर में चारों मौसमों के मजे नहीं हैं। सारा साल गर्मी ही रहती है। सबसे गर्म 34 डिग्री सेल्सियस तक तापमान जुलाई में होता है। बादल आते-जाते रहते हैं। कभी भी बरस पड़ते हैं- लेकिन हद से हद केवल एक-डेढ़ घंटा। शाम साढ़े सात बजे अंधेरा होने लगता है। लोग शाम 6 से 7 के बीच ही रात्रि भोज कर लेते है। सोते हैं रात 10 से 11 के बीच। सुबह चाय नहीं, कॉफी पीने वाले ज़्यादा हैं। फिर नाश्ता सुबह 7-साढ़े 7 बजे और दोपहर का खाना 12 से 1 बजे तक। सिंगापुर के लोगों की ड्यूटी के घंटे 8 हैं, ओवर टाइम काम करने पर डेढ़ गुना ज्यादा मिलता है। वहां दूध महंगा है, पेट्रोल सस्ता, जबकि अपने देश में उल्टा है। सरकारी ऑफिस हफ्ते में 5 दिन खुलते हैं, शनि और रवि को दो दिनों का साप्ताहिक अवकाश रहता है। मॉल और बाजार सातों दिन सुबह 10 से रात 10 बजे तक चालू रहते हैं।
नाइट लाइफ का जलवा
सिंगापुर में नाइट लाइफ के जलवे बहुत हैं। सबसे तड़कीली-भड़कीली जगह है सिंगापुर रिवर के किनारे ‘क्ला की’ नाम का इलाका। होटल, पब, डिस्को, क्लब और सड़कों पर ही युवाओं की गहमागहमी ‘क्ला की’ को रोमांटिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती। यहीं से दिखाई देता है समुद्री जहाज के आकार से जुड़ा तीन इमारतों के सेटंस होटल में 24 घंटे खुलने वाला कसीनो। एक और बड़ा कसीनो सेंटोसा आइलैंड पर है। कसीनो में सिंगापुर के नागरिकों को 24 घंटे जुआ खेलने के लिए 100 सिंगापुर डॉलर यानी करीब 6,500 रुपये फीस अदा करनी पड़ती है। जबकि पर्यटकों के लिए प्रवेश मुफ्त है। शुल्क इसलिए वसूला जाता है कि कहीं सिंगापुर वाले काम-धंधे छोड़ कर दिन भर जुआ ही न खेलते रहें।
कुछ सड़कों और इलाकों के नाम दूसरे देशों से लिए गए हैं। अरब स्ट्रीट, हॉलैंड रोड, रंगून रोड, लिटिल इंडिया, चाइना टाउन वगैरह ऐसी चंद मिसालें हैं। चाइना टाउन में 18वीं सदी के हेरिटेज इमारतें और घर हैं। वहीं चाइना टेम्पल है, जहां माचा या सी गॉड (सागर की देवी) की पूजा की जाती है। भक्त जूते पहन कर मन्दिर में जा सकते हैं और मुफ्त में मिलती 3-3 अगरबत्तियां जला कर पूजा-अर्चना करते हैं। विद्या के चीनी देव कंफ्युसियस का मन्दिर भी चाइना टेम्पल में है। सिंगापुर में चर्च, मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा सभी धर्मस्थल हैं।
सिंहपुर से नाम मिला
संस्कृत शब्द ‘सिंहपुर’ से ही सिंगापुर का नामकरण हुआ है। इसी भारतीय प्यार की वजह से, व्यंजन ‘रोटी-परांठा’ सिंगापुर के लोग चाव से खाते हैं। दिवाली पर राष्ट्रीय अवकाश होता है। आइसक्रीम पर फ्रूट ब्रेड लपेट कर लोग खाना पसंद करते हैं। आइसक्रीम के सभी हॉकर आइसक्रीम-सैंडविच बनाते-खिलाते हैं। भिखारी नजर नहीं आते। गरीब हैं, लेकिन कुछ कलात्मक ढंग से सज-संवर कर या कुछ न कुछ बेच कर अपना गुजर-बुसर करते हैं, सिर्फ भीख मांग कर हरगिज नहीं।
64 द्वीपों का देश सिंगापुर दक्षिण पूर्वी एशिया का गेट-वे है। खोज हुई 1819 में। ब्रिटिश राज रहा अगस्त, 1957 तक, फिर 9 अगस्त, 1965 तक मलेशिया का हिस्सा रहा। तब से अलग देश बना। सन् 1972 में सिंगापुर के तत्कालीन प्रधानमंत्री ली क्वांग यू की कोशिशों के चलते सिंगापुर को ‘मलाइन’ लैंडमार्क मिला। सफेद रंग के मलाइन या समुद्र जीव का मुंह शेर का है और धड़ मछली का। सिंगापुर में देखने लायक और भी बहुत कुछ है। यहां 165 मीटर ऊंचा दुनिया का सबसे ऊंचा मैरी गो अराउंड झूला ‘सिंगापुर फ्लायर’ है। तीस मिनट में एक चक्कर पूरा करता है और यहां से सिंगापुर का नजारा देखने लायक है। दुनिया का पहला और अकेला ‘नाइट सफारी’ भी यहीं है।
दूरी, करेंसी और...
दिल्ली से करीब 5 घंटे की हवाई सफर की दूरी तय कर सिंगापुर पहुंचते हैं। समय के हिसाब से भारत से ढाई घंटे आगे है।
करेंसी सिंगापुरी डॉलर और सेंट। आजकल एक सिंगापुरी डॉलर करीब 75 रुपये का है। कुल एरिया है 699 वर्ग किलोमीटर और आबादी 50 लाख। वहां दिल्ली से ज्यादा घनी आबादी है। वहां प्रति वर्ग किलोमीटर 7022 लोग रहते हैं, जबकि इतनी जगह में दिल्ली में 11,297 लोग।
वहां 30 फीसदी विदेशी हैं, जिनमें 9 फीसदी भारतीय हैं। अंग्रेजी, चीनी, मलेइया और तमिल चार ऑफिशियल भाषाएं हैं।
राष्ट्रीय गीत ‘माधोराव सिंगापुरा’ मलेइया भाषा में ही है।