अमृता प्रीतम को समझने की नई दृष्टि
डॉ. मीनाक्षी वाशिष्ठ
पुस्तक : अमृता प्रीतम : स्मृतियों के झरोखे से लेखक : डॉ. चन्द्र त्रिखा प्रकाशक : अद्विक पब्लिकेशन, दिल्ली पृष्ठ : 104 मूल्य : रु. 160.
अमृता प्रीतम पर ढेरों पुस्तकें, वृत्तचित्र और अब आने वाली कुछ फिल्में चर्चा में आ चुकी हैं। देश की 26 क्षेत्रीय भाषाओं व सात विदेशी भाषाओं में उनकी कृतियों के अनुवाद हो चुके हैं। इसी संदर्भ में कुछ व्यक्तिगत एवं साहित्यिक संस्मरणों को बयान करती इस कृति में लेखक ने अमृता-इमरोज़-साहिर के संबंधों के त्रिकोण का भी संवेदनशील रूप में विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
इस कृति में दो पक्ष ऐसे भी हैं जिन्हें संभवत: पूर्ववर्ती कृतियों में छुआ नहीं गया। एक पक्ष अमृता के आध्यात्मिक एवं पारलौकिक चिंतन से जुड़ा है और दूसरा ‘नागमणी’ के माध्यम से साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में उनकी देन को बयान करता है।
कवयित्री की कुछ कविताओं के हिंदी रूपांतरण के साथ भारत-पाक विभाजन के संदर्भ में उनकी कविताओं के साथ-साथ गद्य-कृतियों का भी रोचक प्रस्तुतीकरण किया गया है।
फैज़ अहमद फैज़, देवेंद्र सत्यार्थी, खुशवंत सिंह के साथ अमृता के अंतरंग संस्मरणों की एक झलक भी इस कृति में बखूबी दी गई है।
लेखक के अनुसार अमृता प्रीतम के अनेक पहलू हैं। जब भी उसकी जिंदगी में झांकने का प्रयास होगा, ढेरों नए पृष्ठ खुलने लगेंगे। वस्तुत: उसकी जिंदगी का ‘कैनवस’ इतना विशाल है कि उसे जब भी जिस भी कोण से देखने का प्रयास होगा, उतने ही नए-नए रेखाचित्र उभरने लगेंगे।
लगभग 100 कृतियां, सम्मानों की एक लम्बी फेहरिस्त, व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लिखी गई दर्जनों पुस्तकें, शोध प्रबंध, नाट्य-प्रस्तुतियां, प्रेम संबंधों के बारे विभिन्न विश्लेषण, दार्शनिक एवं चिंतक वाला पक्ष, प्रेम को दी गई उनकी स्वर्णिम व्याख्याएं, उसका आध्यात्मिक पक्ष, परा-वैज्ञानिक संस्मरण और उसके संसदीय पत्रकारिता एवं लेखन से जुड़े असंख्य प्रसंग, सब कुछ समेटना, किसी भी एक लेखक/समीक्षक के लिए आसान नहीं है।
जन्म कब हुआ, कहां पहली बार आंख खोली और लम्बी अनवरत बहुपक्षीय यात्रा का अंतिम पड़ाव कब और कहां आया, यह सब इस कृति के सीमित पृष्ठों में दर्ज है। हर बार लगता है, बहुत कुछ छूट गया है।
आने वाले समय में अमृता को किस-किस रूप में याद किया जाएगा, इसका सही आकलन संभव नहीं। संभावनाएं हैं कि उसे ‘प्रेम की देवी’ के रूप में स्थापित किया जाए या फिर पंजाबी की ‘मीरा’ कह दिया जाए। मगर अमृता की एक विलक्षण मौलिक पहचान है कि वह इन सभी तुलनात्मक अध्ययनों से कहीं ऊपर हैं।