आस्था और राजनीति का नया मैदान
सहीराम
कांवड़ यात्रा संपन्न हो गयी जी! अब आप भी राहत की सांस ले सकते हैं, सरकार भी राहत की सांस ले सकती है, प्रशासन भी राहत की सांस ले सकता है, ढाबे वाले राहत की सांस ले सकते हैं, गाड़ियों-टैंपो वाले यहां तक कि साइकिल वाले भी सब राहत की सांस ले सकते हैं। वरना तो जी, सबकी सांस चढ़ी हुई थी। कांवड़ यात्रा एक तरह से सबकी परीक्षा होती है- सरकार की, प्रशासन की और आम पब्लिक की भी- सबकी। धीरज की भी और कानून -व्यवस्था की भी। अच्छी बात यह है कि इस परीक्षा का पर्चा लीक नहीं होता। यूं तो आजकल हर त्योहार मनाना एक तरह की परीक्षा से ही गुजरना होता है। रामनवमी शांति से गुजर जाए तो भी बल्कि अब तो हनुमान जयंती भी शांति से गुजर जाए तो भी लोग राहत की सांस लेते हैं।
अब होली-दिवाली, ईद-बकरीद की ज्यादा टेंशन नहीं होती, वे तो शांति से गुजर ही जाते हैं। टेंशन इन नए आयोजनों की रहती है-कांवड़ यात्रा से लेकर रामनवमी तक के आयोजनों की। पिछले दिनों हर तरफ भोले ही भोले थे। वे राजनीति में थे, राजनीति के आरोपों और प्रत्यारोपों में थे, वे मीडिया में थे, वे टेलीविजन के विजुअल्स में थे, वे सोशल मीडिया में थे, उसकी रीलों में थे, उसके वीडियोज में थे। वे मुकदमेबाजी में भी थे। वे सड़कों पर थे। वे ढाबों में भी थे और शिविरों में भी थे। बोले तो वे कहां नहीं थे!
यहां तक कि भोले बाबा तो संसद में भी थे, संसद की बहसों और आरोपों-प्रत्यारोपों में थे। कहा जा सकता है कि आखिर तो सावन का महीना था। सो वे हर जगह थे। वे अगर सड़कों पर पैदल थे, तो वे डाक कांवड़ में भी थे। वे डीजे के साथ थे। कांवड़ यात्रा बड़े अद्भुत दृश्यों से लैस रहती है। कहीं कोई वाहन तोड़ रहे हैं। कहीं वे उधम मचा रहे हैं तो कहीं वे किसी को सबक सिखा रहे हैं। इधर कांवड़ के साथ-साथ अब वे अपने पसंदीदा नेताओं के पुतले भी कांधों पर ढोकर चलने लगे हैं। बंगाल के पूजा मंडपों की तरह से अब कांवड़ भी अलग-अलग थीमों पर सजने लगी है।
कांवड़ यात्रा को लेकर हमेशा एक सनसनी बनी रहती है। सरकार और प्रशासन से लेकर आम जन तक सब दम साधे, नजरें गड़ाए इंतजार करते रहते हैं-कांवड़िए आ रहे हैं। संशय भी होता है, भक्ति भाव भी होता है। यह वे भोले हैं जो अपने रोजगार की चिंता छोड़कर कांवड़ लेने आए हैं, यह वे भोले हैं, जो अपनी खेती छोड़कर कांवड़ लेने आए हैं। कांवड़ अब एक नयी अभिव्यक्ति है, नया जुनून है, आस्था का भी और राजनीति का भी एक नया मैदान है। वह राजनीति की एक नयी पिच है। नहीं क्या?