For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

प्रेमिल अनुभूति

06:57 AM May 12, 2024 IST
प्रेमिल अनुभूति
Advertisement

पुरुषोत्तम व्यास
बदल गई परिभाषा प्रेम की
पर नहीं बदला प्रेम
आज नयनों में लिखी होती
कविता
आज भी कवि का हृदय धड़कता
भंवरों की तरह होता प्रेम
सुमन-सुमन फिरा करता
नहीं कुचलता सुमनों को
रसमय जीवन जीया करता

अधिकार भरी भाषा परे
डाली-डाली टहनी-टहनी
खिला करता...
न पीड़ा देना
न मर मिटने वाली सोच
धारा एक बह पड़ती
नयनों से नयन मिला करते

Advertisement

प्रेम-भरी छोटी-सी अनुभूति
रहती संग हर क्षण
प्रेम है जीवन में जिसके
संग परमात्मा उसके होता
मिला प्रेम
खुश नसीब समझे
मार-धाड़ वाली परिभाषा से
कवि बेचारा कुछ गढ़ न पायेगा।

पचपन में बचपन

मन बच्चे-सा लग रहा
चलाऊं रेलगाड़ी
दौड़ लगाऊं तितली के पीछे
रेत में घर बनाऊं...
बिना हाथ धोये कुछ भी खाऊं
हर राहगीर से हाथ मिलाऊं
कुत्ते के बच्चों को रस्सी बांध
घर ले आऊं

Advertisement

नहीं परवाह गंदे कपड़ों की
टूटी चप्पल के संग दौड़ लगाऊं
समोसे और कचौरी देख
मुंह पानी भर लाऊं
कल के बारे में नहीं सोचू
नये-नये सपने में खो जाऊं
बगीचे घूमने की घोषणा पर
पहले ही तैयार हो जाऊं

रेलगाड़ी में खिड़की के पास बैठूं
रंग-बिरंगी पक्षी देख मुस्कुराऊं
हाथी के पीछे-पीछे चलूं
बंदर का खेल देख ठहाके लगाऊं
दिवाली में फुलझडि़यां जलाऊं
होली में रंगों में डूब जाऊं
बारिश में भीगते-भीगते नाचूं
पकोड़ों को पहले मैं ही खाऊं

लगता ज्यादा बड़ा हो गया
बात-बात पर बखेड़ा हो गया
छोटी-छोटी खुशियों पर
क्यों दूर हो गया...

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×