For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

शीतल बयार में दिलकश सैर

08:30 AM Mar 22, 2024 IST
शीतल बयार में दिलकश सैर
Advertisement

अमिताभ स.
गर्मियां आ ही रही हैं। ऐसे में, हिमाचल के पहाड़ों की गोद में बसे धर्मशाला और मैक्लोडगंज का ख्याल ही असीम आनन्द से सराबोर कर देता है। यहां की बर्फ से ढकी धौलाधार चोटियां, कांगड़ा के हसीन नजारे और देवदार व चीड़ के सटे-सटे पेड़ करीब से नहीं देखे तो क्या देखा। आज इसी दिलकश सैर पर चलते हैं...
कहीं पढ़ा था कि धर्मशाला की तकदीर में ही फेम लिखा था। इसीलिए 1860 के दशक में, ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड एल्गिन को कांगड़ा घाटी का धर्मशाला शहर भा गया। वह इसके चप्पे-चप्पे में फैले कुदरती नज़ारों पर इतना फिदा हुआ कि इसे हिन्दुस्तान की ग्रीष्म राजधानी बनाने को बेकरार हो उठा। लेकिन ऐसा मुमकिन न हो सका क्योंकि लॉर्ड एल्गिन का देहांत हो गया। उन्हें नजदीकी सेंट जॉन चर्च में दफना दिया गया। हालांकि कुछ का मानना है कि 1905 में कांगड़ घाटी में भूकम्प आने से समर केपिटल को शिमला शिफ्ट करने तैयारी की गई।
फिर धर्मशाला की बजाय शिमला को समर कैपिटल बना दिया गया। लेकिन किसी को क्या खबर थी कि सुदूर दूसरे मुल्क के धर्मगुरु धर्मशाला के ऊपर मैक्लोडगंज में डेरा डालेंगे और इसे विश्व नक्शे पर चमका देंगे। साल 1960 के दशक के दौरान, तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा ने अपर धर्मशाला के मैक्लोडगंज में खुद को बसा लिया। आज़ादी से पहले समूचा इलाका ब्रिटिश कैंट का हिस्सा था।

दो हिस्सों में बंटा

धर्मशाला दो हिस्सों में बंटा है- लोअर और अपर। नीचे धर्मशाला है और ऊपर मैक्लोडगंज। दोनों में दूरी करीब 9 किलोमीटर है। रोप-वे ट्रॉली से भी आ-जा सकते हैं। धर्मशाला समुद्र स्तर करीब 4,550 फुट की ऊंचाई पर है और मैक्लोडगंज करीब 6,830 फुट। इस का नामकरण पंजाब के लेफ्टिनेंट गर्वनर सर डोनल्ड फ्रील मैक्लोड के नाम पर हुआ है, जिसके कार्यकाल में इलाके का विकास हुआ। यह कांगड़ा घाटी के दिल में बसा है। कई मन्दिर हैं, जड़ी-बूटियों की खेती-बाड़ी है और स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग्स भी।
धर्मशाला स्टेडियम भी देखने लायक़ है। बस अड्डे से सटा कोतवाली बाज़ार सबसे रौनकी है। सड़क के दोनों ओर छोटी-छोटी दुकानें हैं। छोटे-छोटे कैफे, हलवाई, बेकरी, खोमचा वगैरह हैं, जहां खाने-पीने का लुत्फ लिया जा सकता है। एक मॉल भी है, उसमें गोल्ड सिनेमा हॉल भी। सामने ही राम चाट वाले की रेहड़ी के इर्द-गिर्द गोलगप्पों के चटकोरों का मजमा लगा रहता है। लोअर और अपर धर्मशाला के बीच में स्कूल ऑफ तिब्बत कल्चर लाइब्रेरी है। सड़क के रास्ते घने जंगल से घिरा फॉरसैथगंज आता है, जहां कई पुराने बंगले हैं।
मैक्लोडगंज में तिब्बती बस्तियों का डेरा है। इसीलिए ‘लिटिल तिब्बत’ और ‘छोटा ल्हासा’ कहलाता है और तिब्बती डिशेज खूब परोसी जाती हैं। यहीं खासा लम्बा-चौड़ा प्रार्थना चक्र भी है। यहीं तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा का निवास और निर्वासित सरकार का हैडक्वार्टर भी है। यहां दलाई लामा के मन्दिर और तिब्बत म्यूजियम भी देख सकते हैं। प्रमुख बौद्ध मठ में भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा खास आकर्षण है।

Advertisement

हिमाचली शॉपिंग और खाना

​खरीदारी के लिए लोअर धर्मशाला का रुख करना बेहतर है। क्योंकि मैक्लोडगंज की माल रोड से सस्ता है कोतवाली बाज़ार। यहां गर्म कपड़े मिलते हैं। हिमाचली टोपियां और शालें तो धर्मशाला की सौगात हैं। बुद्धा पेंटिंग्स और नगीनों से पिरोई मालाएं, कलात्मक चाबी के छल्ले वगैरह गिफ्ट आइट्म्स की भी कई दुकानें हैं। ​लोअर और अपर धर्मशाला के कुछेक ढाबे जोरदार हैं। ‘येलो लामा’ सबसे ज्यादा चलने वाला तिब्बती-चाइनीज रेस्टोरेंट है। अपने होटल में ही ऑर्डर करना बेहतर रहता है। क्योंकि बाज़ार में नॉर्थ इंडियन खाने के विकल्प कम हैं।
जहां जाएं, वहां के प्रांतीय व्यंजन नहीं खाए, तो क्या खाया। सो, हिमाचल में बबरू भी टेस्ट करना बनता है। तवे पर बना आटे का चीला समझिए। धीमी आंच पर बनाते हैं, जिससे ज़्यादा टेस्टी लगता है। ऊपर देसी घी, गुड़ और काले चने डाल कर पेश करते हैं। चने का मधरा, सिड्डू और धाम हिमाचल के अन्य पारम्परिक व्यंजन हैं।

और आसपास भी

धर्मशाला के मैक्लोडगंज के रास्ते में ही, पत्थरों से बनी चर्च देखने लायक है। इसे अंग्रेज शासक लॉर्ड एल्गिन की याद में बनवाया गया था। हरे-भरे ऊंचे-ऊंचे दरखतों से घिरी चर्च की रंगीन कांच की खिड़कियां अत्यन्त लुभाती हैं। उधर धर्मशाला से 10 किलोमीटर आगे है त्रिउंड। करीब 9,280 फुट की ऊंचाई पर बसा त्रिउंड पिकनिक के लिए उत्तम है। यह धौलाधार पर्वतारोहरण का आधार शिविर भी है और स्नो लाइन का श्रीगणेश बिंदु भी। कोतवाली बाज़ार से करीब 3 किलोमीटर आगे माता कुनाल पथरी नाम का देवी मन्दिर भक्तों से भरा रहता है।
मैक्लोडगंज से 4 किलोमीटर ऊपर धर्मकोट पर भी टूरिस्ट्स का जमावड़ा रहता है क्योंकि धौलाधार पहाड़ और कांगड़ा घाटी का सबसे मनोहरी या कहें पिक्चर परफेक्ट सीन यही है। करीब 3 घंटे की सड़क दूरी पर पालमपुर के चाय बाग़ानों की सैर भी मज़ेदार अनुभव है। बाग़ानों में चाय की पत्ती ख़रीद कर लाने से अलग की आनंद का अहसास होता है।

Advertisement

इतनी दूर... ऐसे जाएं...

सड़क मार्ग से धर्मशाला सीधे दिल्ली से जुड़ा है। बाय एयर जाना चाहें, तो नजदीकी एयरपोर्ट घग्गर है। डेढ़ घंटे की उड़ान है और आगे आधा घंटा सड़क से। कांगड़ा से धर्मशाला महज 17 किलोमीटर दूर है। वंदे भारत ट्रेन से अम्ब अंदौरा रेलवे स्टेशन पर उतरते हैं। करीब साढ़े 6 घंटे ट्रेन का सफर, फिर ढाई घंटे सड़क के रास्ते लगते हैं। दिल्ली से धर्मशाला सीधी बसें भी आती-जाती हैं। बस से पहुंचने में 10-12 घंटे लगते हैं। दिल्ली से धर्मशाला की दूरी करीब 500 किलोमीटर है। ​धर्मशाला के सैर-सपाटे के लिए मार्च-अप्रैल और अक्तूबर-नवम्बर भी अच्छे हैं, लेकिन गर्मियां तो बेस्ट हैं ही।

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×