For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

गधे के सींग समेत बहुत कुछ गायब

12:38 PM Aug 10, 2022 IST
गधे के सींग समेत बहुत कुछ गायब
Advertisement

राकेश सोहमzwj;्

गायब होने का सिलसिला सतत है। लोगों के जीवन से सुख गायब है। वातावरण से शुद्ध हवा गायब है। जंगलों से पेड़ गायब हैं। दिल से ईमानदारी गायब है। डॉलर के सामने रुपया गायब है। वासना के सामने प्रेम गायब है। महंगाई के सामने बचत गायब है। चुनाव के बाद नेता गायब है। भक्त के सामने भगवान गायब हैं। बाबाओं के चक्कर में भक्तों के पैसे-धेला गायब हैं।

Advertisement

चीजों का गायब हो जाना आम बात है। भूत, प्रेत, पिशाच और चुड़ैल इसमें पारंगत होते हैं। अचानक गायब होकर लोगों को डरा देते हैं। वस्तुएं गायब हो जाती हैं और फिर मिल जाती हैं। कई बार तो वस्तुएं नज़रों के सामने होती हैं और दिखाई नहीं पड़तीं! लोग उन्हें गायब मानकर परेशान होते हैं। युवक-युवतियां प्यार में पड़कर गायब हो जाते हैं। कर्ज़दार जानबूझकर गायब हो जाते हैं। बच्चे शैतानी करके गायब हो जाते हैं। ग्राहक उधार खरीदी करके गायब हो जाता है। घोर आश्चर्य तो तब होता है जब गधे के सिर से सींग गायब हो जाते हैं। एक खबर के अनुसार स्कूलों से शिक्षक गायब रहते हैं। किसी ने कहा, छात्रों को दृष्टि-भ्रम है। शिक्षक होते हुए भी नहीं दिखते।

मेरे एक मित्र का ऑफिस दूर था। वह साइकिल से ऑफिस के लिए निकलता था। एक जगह साइकिल में ताला लगाकर रख देता और कार्यालयीन बस से ऑफिस पहुंचता था। जहां से बस मिलती थी वहीं उसके दबंगई मित्र का मकान था। साइकिल नई थी। उसकी सुरक्षा को लेकर चिंतित था। दबंगई बोला, ‘तू अपनी साइकिल मेरे घर की दीवाल से टिकाकर रख दिया कर। किसी की मजाल नहीं कि साइकिल को हाथ भी लगा ले। ऐसी-तैसी कर दूंगा।’ मित्र को दबंगई पर भरोसा आ गया। मोहल्ले में उसकी तूती बोलती थी। मेरा मित्र ऐसा ही करता। एक दिन लौटा तो देखा, उसकी साइकिल गायब है! उसने अपनी नई साइकिल गुम जाने की दुहाई दी। दबंगई चिढ़ गया और उसकी गर्दन पकड़ ली। मित्र ने डर के मारे एक दूसरी पुरानी साइकिल खरीद ली। एक दिन दबंगई का नौजवान बालक उसकी नई साइकिल चलाता हुआ मिला! लेकिन मेरे मित्र का साहस गायब हो चुका था।

Advertisement

बहरहाल, गायब होना मानवीय जीवन का अभिन्न अंग है। मैंने एक अखबार का विशेषांक उठाया और देखा, मेरी रचना गायब है! रचना स्वीकृत हुई थी। मैंने फ़ौरन संपादक को लिखाndash; आदरणीय संपादक जी, नमस्कार। मेरी रचना अंक से गायब है? उनका जवाब आया- क्षमा करें। इस विशेषांक हेतु विज्ञापन अधिक आ गए थे, इसलिए आपकी रचना नहीं जा सकी। सहयोग बनाए रखें।

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×