धर्म हेतु लड़ने वाला ही वीर
सुदर्शन
सूर का स्वरूप-सूर (शूर) की परिभाषा देते हुए वियोगी हरि जी का कहना है, संग्राम को देखकर जिसका शरीर पुलकने लगता है, खड्ग की झंकार और धनुष की टंकार में जिसे आनंद आता है, शत्रुओं को देखकर जिसका उत्साह बढ़ जाता है उसे शूर कहते है। शूर और वीर पर्यायवाची शब्द है। वीर रस का स्थाई भाव उत्साह है। बिना उत्साह के तो व्यक्ति एक कदम भी नहीं चल सकता। शूर के महत्व को सभी ने मुक्त-कण्ठ से स्वीकार किया है। गुरु नानक देव जी लिखते है :-
जननी जने तो भक्तजन कै दाता कै सूर।
नहीं तो जननी बांझ रहै व्यर्थ गवावहिं नूर॥
अर्थात् माता अगर बच्चा पैदा करे तो वह भक्त हो या दानी या बहादुर। इन तीन गुणों से हीन बच्चा पैदा करने से बांझ रहना अच्छा है। गुरु गोबिन्द सिंह जी लिखते है :-
‘धन्य जियो उसको जो मुखहरि, चित्त में युद्ध विचारे’ अर्थात् उसी व्यक्ति का जीवन धन्य है जिसके मुख में भगवान का नाम हृदय में संग्राम का ध्यान हो।
शूर का स्वरूप और शूर का महत्व दिखाते हुए यह स्पष्ट हो गया होगा कि शूर कहलाने वाली वही अधिकारी है जो युद्ध भूमि में शत्रुओं का प्राण हरण करे।
सच बोलने में उत्साह जैसे महाराज युधिष्ठिर, महावीर। जिस किसी को कर्म के करने के लिए उत्साह आपेक्षित है उसमें वीरता का भाव आ जाता है, अत: विविध क्षेत्रों में उत्साह के कारण ‘वीर’ या ‘शूर’ के भी अनेक भेद हो गए हैं। इसलिए दानवीर कर्ण प्रसिद्ध ही हैं।
किसी को भी यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि शूर धार्मिक नहीं होता। शूर होना ही धर्मात्मा है। युद्ध से विमुख अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश क्यों दियाॽ इसलिए कि उन्होंने देखा कि अर्जुन शूर होते हुए भी युद्ध से विमुख हो रहा है क्योंकि युद्ध करना अत्याचारी को दंड देना, अन्याय का निराकरण क्षत्रिय का धर्म है। भगवान राम ने रावण का संहार किया, श्रीकृष्ण ने अनेक दुष्टों को मारा, मराठा केसरी छत्रपति शिवा जी ने, दशम् गुरु गोबिन्द सिंह जी ने शत्रुओं को अपनी तलवारों का पानी पिलाया। क्या वे शूर धार्मिक नहीं थेॽ कहना पड़ेगा कि वे पूरे धार्मिक थे क्योंकि उन्होंने युद्ध तुच्छ स्वार्थ के लिये न कर धर्म की रक्षा के लिए, मातृभूमि के गौरव को बढ़ाने के लिए, धर्म ग्रन्थों का आदर करने के लिए किए। गुरु तेगबहादुर का बलिदान, गुरु गोबिन्द सिंह के बच्चों तथा बाल हकीकत राय का प्राण-त्याग देश हित के लिए ही हुआ। इसलिए यह लोग शूर भी थे और धार्मिक भी। इसलिए शूरता और धर्म का चोली-दामन का सम्बन्ध है।
अहिंसा कायरों का नहीं वीर पुरुषों का व्रत है। क्षमा उसी को शोभा देती है जो बलवान हो, निर्बल को नहीं। शूर मानव वही है, जो धर्म की रक्षा करते हुए अपने प्राण दे दे।