फिल्मों पर मंथन के लिए फिल्मकारों का वैश्विक मंच
लोकमित्र गौतम
गोवा के पणजी में 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) का आयोजन हो रहा है जो बीते 20 नवंबर से शुरू हो चुका है व 28 नवंबर तक चलेगा। पिछले 72 सालों से जारी भारत के इस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव को दुनिया में एक विशिष्ट स्थान हासिल है। भले यह ऑस्कर फिल्म पुरस्कार समारोह जितना लोकप्रिय न हो और किसी फिल्म व फिल्मकार को वैसी विशिष्ट वैश्विक मान्यता न देता हो या फ्रांस के कांस फिल्म समारोह जैसा इंटेलैक्चुअल फिल्मों व फिल्मकारों का समारोह न समझा जाता हो। इसके बावजूद इफ्फी का दुनिया के सिनेमाई परिदृश्य में खास महत्व है। हमारे इस समारोह की अपनी कुछ खासियतें हैं, जो इसे दुनियाभर में विशेष और ऐतिहासिक बनाती हैं। इफ्फी की इस बार टैग लाइन है- ‘युवा फिल्म निर्माता- भविष्य अब है’।
फिल्मों और नई प्रतिभाओं को बढ़ावा
भारत का अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) भारतीय फिल्मों और नई प्रतिभाओं को न सिर्फ बढ़ावा देता है बल्कि उन्हें विश्व मंच भी प्रदान करता है। जहां दूसरे देशों के फिल्म महोत्सव मुख्यतः हॉलीवुड या यूरोपीय सिनेमा पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वहीं इफ्फी में हम भारतीय सिनेमा की धरोहर को वैश्विक मंच प्रदान करने की कोशिश करते हैं। इस महोत्सव में भारत की मुख्यधारा की फिल्मों के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को भी बड़ी संख्या में प्रदर्शित किया जाता है, जिससे एक ही जगह पर भारत की विशिष्ट बहुलतावादी संस्कृति के विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने का मौका मिलता है। यही कारण है कि जहां दूसरे फिल्म समारोहों में कुछ विशेष फिल्में या मुश्किल से 10-12 फिल्में ही फोकस में रहती हैं, वहीं भारतीय फिल्म महोत्सव में हर बार औसतन 150 से ज्यादा फिल्में प्रदर्शित की जाती हैं।
81 देशों की 180 फिल्में होंगी प्रदर्शित
इससे पिछले यानी इफ्फी के 54वें संस्करण में 106 देशों की 3574 फिल्मों की प्रविष्टियां प्राप्त हुई थीं। जिनमें से 79 देशों की कुल 278 फिल्में दिखाई गईं और इनमें से 21 के विश्व प्रीमियर हुए यानी दुनियाभर की 21 फिल्में पहली बार इफ्फी के किसी संस्करण में प्रदर्शित हुईं। जबकि इस बार यानी इसके 55वें संस्करण में भी 81 देशों की 180 फिल्में प्रदर्शित की जा रही हैं, जिसमें 15 विश्व प्रीमियर भी शामिल हैं। इतने बड़े पैमाने पर दुनिया के शायद ही किसी दूसरे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में वैश्विक फिल्में दिखायी जाती हैं। यही वजह है कि पिछले 72 सालों में इफ्फी में अब तक 10,000 से ज्यादा फिल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं और कई सौ फिल्मों का विश्व प्रीमियर भी सम्पन्न हो चुका है।
‘पथेर पांचाली’ का हुआ था प्रीमियर
भारत के इस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह की ऐतिहासिक कामयाबी को अगर कुछ फिल्मों के माध्यम से समझना हो तो हम जान सकते हैं कि सत्यजीत रे की विश्व प्रसिद्ध फिल्म ‘पथेर पांचाली’ का प्रीमियर इफ्फी में ही हुआ था। इसके बाद ही यह भारतीय फिल्म पूरी दुनिया का ध्यान खींचने वाली विश्व की महानतम फिल्मों की श्रेणी में शुमार हुई थी।
‘भुवन शोम’, ‘लगान’ का भी लॉन्च पैड
भारत में समानांतर सिनेमा की शुरुआत जिस हिंदी फिल्म ‘भुवन शोम’ से हुई मृणालसेन की इस फिल्म का प्रीमियर भी इफ्फी में ही हुआ था, इसके अलावा रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’, मीरा नायर की फिल्म ‘सलाम बॉम्बे और आशुतोष गोवारीकर, जो इस बार के इफ्फी के अंतर्राष्ट्रीय ज्यूरी के अध्यक्ष हैं, की फिल्म ‘लगान’ का प्रीमियर भी भारत के इसी फिल्म महोत्सव के दौरान हुआ था । इसके बाद इन सभी फिल्मों ने विश्व सिनेमा पर अपना ऐतिहासिक मुकाम बनाया।
विदेशी फिल्मकारों को दर्शकों से संवाद का मौका
इफ्फी में विभिन्न देशों से आने वाली फिल्मों का प्रदर्शन और उनके निर्माता निर्देशकों का भारतीय दर्शकों के साथ संवाद, यह इस महोत्सव की खास पहचान है। इसके माध्यम से जहां भारत अपने दर्शकों को विश्व सिनेमा से रूबरू कराता है, वहीं यह दुनियाभर के फिल्म निर्माता-निर्देशकों को उनकी फिल्मों के लिए भारतीय दर्शकों का मंच प्रदान करता है। इससे स्पष्ट है कि यह भारतीय फिल्म महोत्सव दरअसल दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक विरल पुल है। यह महोत्सव भारतीय सिनेमा की विविधता और संस्कृति को कला के रूप में प्रस्तुत करता है और इसे विश्व सिनेमा के साथ जोड़ने के लिए बेहतरीन अवसर देता है। ऑस्कर या दूसरे वैश्विक समारोह जहां हॉलीवुड या यूरोपीय सिनेमा को मान्यता देते हैं और उनका फोकस मुख्यतः अमेरिकी संस्कृति को प्रमोट करने में होता है, वहीं भारतीय फिल्म महोत्सव सही मायनों में विश्व सिनेमा को बहु-सांस्कृतिक मंच प्रदान करके उसकी कथा और कला दोनों को समृद्ध करता है। यही नहीं, इस तरह से वह इसे अपने ढंग से प्रमोट भी करता है। इसलिए अगर कहा जाए कि कुछ मायनों में भारत के इस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह का महत्व ऑस्कर व कांस जैसे वैश्विक फिल्म समारोहों से कहीं अधिक है तो इसमें कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
गोवा के पर्यटन का वैश्विक अंबेसडर भी
भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव यानी इफ्फी का पहली बार आयोजन 1952 में हुआ, यह एशिया के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण फिल्म समारोहों में शामिल है। इफ्फी का शुरू से ही मुख्य उद्देश्य भारतीय दर्शकों को विश्व सिनेमा से रूबरू कराना रहा है, साथ ही इसकी प्राथमिकता भारतीय फिल्मों को वैश्विक मंच प्रदान करने की भी रही है। 1960 के दशक में हमारे इस महोत्सव की लोकप्रियता दुनिया में दूर-दूर तक बढ़ी और दुनिया के विभिन्न देशों के फिल्म निर्माता इसमें भाग लेने की जद्दोजहद करने लगे। हालांकि इसके बावजूद महोत्सव में भारतीय सिनेमा और भारतीय सिने हस्तियों को ही अधिकतम एक्सपोजर देने की कोशिश जारी रही। पहले यह समारोह भारत के अलग अलग शहरों में घूम-घूमकर होता था, तब इसकी एक स्थायी सांस्कृतिक पहचान नहीं थी। लेकिन 2004 के बाद इसे गोवा में स्थायी रूप से आयोजित किया जाने लगा, तब से एक तरफ जहां इफ्फी की पुख्ता सांस्कृतिक पहचान बनी है, वहीं यह गोवा के पर्यटन का वैश्विक अंबेसडर भी बन गया है और गोवा में विदेशी सैलानियों की संख्या काफी बढ़ गई है। भारत ने बहुत समझदारी से अपने इस समारोह का डिजाइन कुछ इस तरह से किया है कि इसके जरिये भारतीय फिल्मों और फिल्मकारों को बड़े पैमाने पर एक्सपोजर हासिल हुआ है। भारत के इस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में हर बार पैनोरमा खंड में ऐसी भारतीय फिल्मों को रखा जाता है, जो विश्व में अपनी पहचान बनाती हैं, साथ ही हर बार इस समारोह में भारत के कुछ महान फिल्मकारों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक विशिष्ट श्रद्धांजलि खंड का भी आयोजन होता है, जिसमें इस बार अभिनेता व निर्देशक राजकपूर, फिल्म निर्माता तपन सिन्हा, तेलुगू स्टार अक्किनेनी नागेश्वर राव और महान गायक मोहम्मद रफी के शताब्दी वर्षों का जश्न मनाया जा रहा है।
-इ.रि.सें.