वेदनामयी सत्य की झांकी
नीरोत्तमा शर्मा
प्रकृति के आंचल को दैनिक क्रिया-कलापों में लपेटे अरुणाचल प्रदेश के आदिवासी समुदाय आज भी आम भारतीयों के लिए अपरिचित हैं। लेखिका ‘जोराम यालाम नाबाम’ ने विशुद्ध स्मृतियों के आधार पर रचित संस्मरण द्वारा न्यीशी समुदाय के रीति-रिवाजों, पर्व-त्योहारों, सामाजिक व पारिवारिक जीवन, धार्मिक व सांस्कृतिक मान्यताओं, आर्थिक व सामुदायिक क्रिया-कलापों से पाठकों को परिचित करवाया है। लेखिका स्वयं न्यीशी समुदाय से हैं इसीलिए वह इतनी सत्यनिष्ठा एवं बेबाकी से किसी व्यक्ति विशेष नहीं बल्कि पूरे गांव की आकांक्षाओं, अपेक्षाओं, समस्याओं, पारिवारिक चिन्ताओं का बखूबी चित्रण कर पाई हैं।
पर्वत पर्यटकों के लिए बहुत लुभावने होते हैं किन्तु मूल निवासियों के लिए बड़े ही भयावह। रेल के कटे डिब्बों की मानिन्द इधर उधर बिखरे घर, बांस की दीवारें, टीन की छतें, लकड़ी के खम्भे, बिजली के पतले नंगे तारों का ताना-बाना। नित्यप्रति की प्राकृतिक आपदाएं, उनसे जूझते लोग विशेष तौर पर महिलाएं जिनके सिर पर न केवल पूरे परिवार को पालने की बल्कि सम्भालने की जिम्मेवारी भी है। लुगदी के केनवास पर शब्दों की तूलिका से उकेरी गई यह तस्वीर दिल को छू जाती है।
लेखिका की स्मृतियों में सुन्दर, सुहाने बचपन की खट्टी-मीठी यादें हैं तो ‘तअरपोख’ की तरह दिखने वाले घिनौने राक्षस भी। चार किताबें पढ़कर, जड़ों को त्याग पैसे की चकाचौंध में निर्मोही हुई नव पीढ़ी वर्तमान युग की सबसे बड़ी त्रासदी है। प्रकृति का वैराग नर्तन। अपने ही भीतर के मौन में उतर आने का निमंत्रण है यह। वेदनामयी है किन्तु सत्य है।
पुस्तक : गाय-गेका की औरतें लेखिका : जोराम यालाम नाबाम प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 116 मूल्य : रु. 199.