मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

एक सस्पेंस और थ्रिल का-सा मजा

06:46 AM Sep 14, 2024 IST

सहीराम

Advertisement

अरे जनाब चुनाव में क्या मजा आएगा, जो मजा हरियाणा में टिकट वितरण में आया। यह ऐसा तमाशा था जिसमें राग भी था, द्वेष भी था। त्याग भी था और प्रतिशोध भी था। गम भी था, गुस्सा भी था। दया भी थी, निष्ठुरता भी थी। भावुकता भी थी और निर्दयता भी थी। बोले तो क्या नहीं था। यह एक ऐसी फिल्म थी जो थ्रिल और सस्पेंस, प्रेम और उदात्तता, त्याग और समर्पण, रोष और प्रतिशोध से लबालब थी। इतनी कि सागरो पैमाने की तरह नहीं तो अधजल गगरी की तरह तो अवश्य ही छलक-छलक जा रही थी। कई बार तो इसमें गाली-गलौज भरी ओटीटी वाली सीरीज का-सा मजा भी आया। टिकटार्थियों की भीड़ में आप किसी भी मानवीय भावना का प्रतिबिंब देख सकते थे।
आप देख सकते थे कि कोई इसलिए जार-जार रोए जा रहा है कि उसे टिकट नहीं मिला, फिर चाहे उसने अपनी जिंदगी में कितनों का ही पत्ता काटा हो। कोई इसलिए गमगीन था कि उसका टिकट कट गया, फिर चाहे उसने कितनों को कितने ही गम दिए हों। कोई इसलिए गुस्से में था कि उसका टिकट कट गया है, हालांकि थोड़ी देर पहले ही वह उन्हीं नेताओं की लल्लोचप्पो कर रहा था, जिनके खिलाफ अभी वह आग उगल रहा था। कोई अपनी ही उस पार्टी से प्रतिशोध की कसमें खा रहा था, जिसके प्रति वह थोड़ी देर पहले ही संपूर्ण समर्पण का प्रदर्शन कर रहा था।
भीड़ थी, गर्मी थी, उमस थी, बारिश की चिपचिप थी। लेकिन टिकटार्थियों को किसी की भी परवाह नहीं थी। भीड़ तो टिकटार्थी को चाहिए थी, लेकिन तब जब टिकट मिल जाए और वह नामांकन करने जाए। गर्मी तो उसे भी चाहिए थी, लेकिन तब जब उसके समर्थन में माहौल गर्मा जाए। बारिश उसे भी चाहिए थी, लेकिन वोटों की चाहिए थी। इस भीड़, इस गर्मी, इस उमस की उसे परवाह नहीं थी क्योंकि वह एक खुशनुमा जीवन के स्वप्न लोक में विचर रहा था।
टिकट वितरण के इस समारोह में अगर अभी-अभी जोश था, उल्लास था, नारेबाजी थी, जयजयकार थी, तो अब सिर्फ आंसू हैं, गम है, गुस्सा है, हताशा है, निराशा है। इस तमाशे में अभी-अभी उम्मीदें जग रही थीं, सुखद जीवन की कल्पनाएं पंख फड़फड़ा रही थीं लेकिन अब मिट्टी के घरौंदों की तरह वे उम्मीदें चकनाचूर हैं। धराशायी हैं, धूल-धुसरित हैं। अभी-अभी जीवन उमंगों से भरा हुआ था, लेकिन अब जीवन की निस्सारता याद आ रही है। ऐसा नहीं है कि सब तरफ निराशा और हताशा ही थी, खुशी भी थी, पर उन्हें जिन्हें टिकट मिल रहा था। खुशी तो एक ही के हिस्से में आ रही थी, लेकिन गम बहुतों के हिस्से में आ रहा था। सो खुश कम थे, दुखी ज्यादा थे।

Advertisement
Advertisement