घोसले से निकल भरी हौसले की उड़ान
शमीम शर्मा
हमारे एक सांसद महानुभाव चाहते हैं कि औरतें घर सम्भालें, गर्भ सम्भालें, चूल्हा-चौका सम्भालें पर खानदान की विरासत की ओर न झांकें। उनकी यह मानसिकता कि विरासत पुरुषों के माध्यम से चलती है, बरसों पुरानी गली-सड़ी मानसिकता का परिचय दे रही है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पिता का नाम सबको याद हो न हो पर लक्ष्मीबाई ने अपने पिता की विरासत को ऐतिहासिक कर दिया है। महात्मा गांधी के चार बेटे हुए पर महात्मा गांधी की विरासत वे स्वयं हैं। सुभाषचन्द्र बोस के सात भाई और छह बहने थीं पर सुभाष के अतिरिक्त बाकी के नाम भी ज्यादातर को नहीं पता। और सुभाष चन्द्र बोस की एक बिटिया है- अनीता बोस जो आजकल जर्मनी में रहती हैं। अब सुभाष की विरासत अनीता सम्भालेगी या परलोक से कोई और आयेगा?
नेहरू की विरासत को इन्दिरा गांधी ने कितना आगे तक बढ़ाया है, सब जानते हैं। अम्बाला के वैद्य हरदेव शर्मा की बेटी सुषमा स्वराज अपने पिता की पहचान बनी जबकि उनके भाई डॉक्टर गुलशन शर्मा को कम ही लोग जानते हैं। लक्ष्मी और हरदीप पुरी की दो बेटियां ही उनकी विरासत की हकदार हैं। निर्मला सीतारमण की एक ही बेटी हैं- परकला वांग्मयी। वही तो उनकी विरासत चलायेगी न? पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी दलबीर सिंह की विरासत को उनकी बेटी सेलजा बखूबी संभाले हुए हैं।
बहू-बेटियों के बारे में एक सांसद के बोल से आज महिला जगत की भृकुटियां तन गई हैं। जिनके घर में बेटा है ही नहीं और सिर्फ बेटियां हैं, उनकी तो तौहीन हुई ही है पर उनके मुंह पर भी उन्होंने करारा चांटा मारा है जो परिवार अपनी योग्य बेटियों को विरासत की दावेदार बनाते हैं।
कुंठाग्रस्त कुछ लोग चाहते हैं कि औरतें घोसले में रहें न कि हौसले में। बुहारी-बर्तन, सुई-धागे और कड़छी-कोंचे वाले हाथों में अब केवल चूड़ियां-कंगन ही नहीं हैं बल्कि संसद और विधानसभाओं की सीट है, सेना की कंमाड है, डीसी-एसपी की हैसियत साइन करने वाली कलम है, न्यायपालिका में फैसलों की पॉवर है, हवाई जहाज का स्टेयरिंग है, ऑपरेशन थियेटर की कैंची है, कंप्यूटर का की-बोर्ड है, बैंकों के बहीखाते हैं, चन्द्रयान की लैब के सूत्र हैं।
यह घड़ी बेटियों को शाबाशी देने की है न कि यह कहने की कि महिलाएं अपने परिवार की विरासत को पोषित नहीं कर सकतीं।
000
एक बर की बात अक नत्थू अर रामप्यारी छात पै सुत्ते थे। रात नैं कसूती आंधी आगी। दोन्नूं तावले-तावले गूदड़े समेटण लाग्गे। आन्धी तै वा बांस आली सीड्ढी तलै नैं जा पड़ी। ज्यूं ए नत्थू हड़ाबड़ी मैं सीड्ढी पै पां धरण लाग्या तो सीधा आंगन मैं जाकै धड़ाम पड़्या। गिरे पाच्छै टसकते-टसकते अपणी लुगाई तैं बोल्या- ए भागवान देखिये, ध्यान तैं उतरिये। ईब धरती-धारती कोन्या मखां।