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संपूर्ण सृष्टि के प्रति कृतज्ञता जताने का पर्व

07:08 AM Apr 09, 2024 IST
संपूर्ण सृष्टि के प्रति कृतज्ञता जताने का पर्व
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योगेश कुमार गोयल

वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष हिन्दू नववर्ष 9 अप्रैल, मंगलवार से शुरू हो रहा है। हिन्दू नववर्ष यानी विक्रम संवत‍्‍ 2081 के पहले दिन अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और शश राजयोग का संयोग बन रहा है। इसके अलावा वैदिक पंचांग आधारित इस नववर्ष के पहले दिन रेवती और अश्विनी नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है।
यूं तो सनातन धर्मावलंबियों के लिए नववर्ष बेहद महत्‍वपूर्ण होता ही है किन्तु ज्‍योतिष की नजर से भी इस साल यह वर्ष बेहद खास है। विक्रम संवत‍्‍ 2081 के राजा मंगल और मंत्री शनिदेव होंगे, जिनका पूरे वर्ष सभी राशियों पर प्रभाव बना रहेगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 30 वर्षों बाद ऐसा संयोग बन रहा है, जब हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत‍् की शुरुआत कई शुभ योगों में हो रही है। प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नव संवत्सर का आरंभ माना जाता है।
हिन्दू जीवन-दर्शन की मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि की काल गणना के मुताबिक भारत में प्रचलित संवत्सर केवल भारतीयों का ही नहीं बल्कि समूचे विश्व अथवा समस्त मानवीय सृष्टि का संवत्सर है। नव संवत्सर को संवत्सरारंभ, विक्रम संवत‍्, गुड़ी पड़वा, युगादी, वर्षारंभ, वर्ष प्रतिपदा, वसंत ऋतु प्रारंभ इत्यादि नामों से भी जाना जाता है, जो सकल ब्रह्मांड के लिए नववर्ष के आगमन का सूचक है।
हमारी वैदिक धरोहर का प्रतीक तथा सृष्टि और ब्रह्मांड की उत्पत्ति का दिवस नव संवत्सर हर भारतीय के लिए एक पावन पर्व के समान है, जो भारत की पौराणिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परम्परा का संवाहक है।
नव संवत्सर को विक्रम संवत‍् भी कहा जाता है। विक्रम संवत‍‍् की ‍स्थापना ईसा के 57 वर्ष पूर्व सम्राट विक्रमादित्य के शकों पर विजय पाने के उपलक्ष्य में हुई थी। शक चीन के पास से निकलने वाली तामीर नदी के इलाके की बर्बर और युद्धप्रिय जाति थी, जिन्होंने मध्य एशिया में आतंक मचाते हुए भारत पर भी कई बार हमले किए। सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पश्चिम में हिन्दूकुश से और पूर्व में बर्मा के पार खदेड़ते हुए अपनी प्रजा को भयमुक्त, आपदामुक्त करने के अलावा करमुक्त भी कर दिया था। वहीं प्रजा के हित में अनेक जनहितकारी कार्य करते हुए धर्म संसद से अपने नाम का ‘संवत‍्’ चलाने का गौरव हासिल किया था। सम्पन्नता तथा सुरक्षा की इसी स्मृति में उन्होंने ‘कृत संवत‍्’ की स्थापना की, जो ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दी तक ‘मालव संवत‍्’ के नाम से जाना जाता रहा। उस समय यशोधर्मा ने हूणों को पराजित कर भारत से बाहर खदेड़ा था।
हूणों पर शकों जैसी ही विजय पाने की स्मृति में ‘मालव संवत’ की पुनर्प्रतिष्ठा करते हुए राजा यशोधर्मा ने इसका नाम ‘विक्रम संवत‍्’ कर दिया। हिन्दू धर्म में नव संवत्सर को शक्ति की उपासना, सभी के सुख की कामना और सम्पूर्ण सृष्टि, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का पर्व माना जाता है। विक्रम संवत‍् को अत्यंत प्राचीन, पूर्ण रूप से वैज्ञानिक, समस्त संस्कारों, पर्वों और त्योहारों की रीढ़ माना जाता है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार नव संवत्सर अच्छे कार्यों की शुरुआत के लिए बहुत शुभ होता है। इसीलिए प्रायः मुंडन, नामकरण, गृह प्रवेश इत्यादि हिन्दुओं के सभी शुभ संस्कार नव संवत्सर से शुरू होने वाले नवरात्र के नौ दिनों में किया जाना ही शुभ माना जाता है। सनातन धर्म के सभी अनुष्ठानों और संकल्पों में जब काल और स्थान बोले जाते हैं तो विक्रम संवत‍् के ही वर्ष, मास, पक्ष और तिथि का उच्चारण किया जाता है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हिन्दू नववर्ष मनाने के नैसर्गिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक कारण भी हैं। इससे हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के अनेक प्रसंग जुड़े हैं। संवत्सर के पहले दिन ही भगवान विष्णु का मत्स्यावतार होने का वर्णन मिलता है। भगवान श्रीराम और सम्राट युधिष्ठिर ने इसी दिन राजसत्ता संभाली थी।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के ही दिन अयोध्या में श्रीराम का विजयोत्सव मनाने के लिए अयोध्यावासियों ने घर-घर के द्वार पर धर्मध्वज फहराया था। इसीलिए इसके प्रतीक स्वरूप इस दिन धर्मध्वज फहराया जाता है। इसी दिन श्रीराम ने बाली का वध किया था। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए प्रथम भारतीय पंचांग की रचना की थी। महर्षि दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी और सिखों के द्वितीय गुरु अंगद देव का जन्मदिवस भी इसी दिन मनाया जाता है।

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