यज्ञ जैसा फल देने वाला व्रत
चेतनादित्य आलोक
भाद्रपद या भादो महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को ‘अजा एकादशी’ कहा जाता है। देश के कुछ भागों में इसे जया अथवा अन्नदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद आती है। इस दिन जगत् के पालनहार श्रीहरि विष्णु के ‘उपेन्द्र स्वरूप’ की पूजा-अर्चना की जाती है। अजा एकादशी के व्रत की बड़ी महिमा है। इस पवित्र एकादशी का पुण्य-फल लोक-परलोक दोनों में ही उत्तम माना गया है।
हिंदू संस्कृति में ऐसी मान्यता है कि भादो महीने के कृष्णपक्ष की इस एकादशी के व्रत के पुण्य-प्रभाव से मनुष्य के समस्त पापों का नाश तो होता ही है, जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन भी होता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि अजा एकादशी व्रत को करने से हजार गो-दान करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है तथा अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। इसके करने से व्रती के पूर्वजन्म की बाधाएं दूर होती हैं और वह इस लोक में सुख भोगकर अंत में विष्णु लोक जाता है। इस बार अजा एकादशी का व्रत 10 सितंबर, रविवार को है।
व्रती को दशमी तिथि से ही शारीरिक एवं मानसिक पवित्रता और सात्विकता का पालन करना चाहिए। व्रत के दिन प्रात: स्नान के बाद भगवान के समक्ष व्रत का संकल्प लें। पूजाघर अथवा पूर्व दिशा में किसी स्वच्छ स्थान पर एक चौकी पर भगवान का आसन लगायें। उस पर गेहूं की ढेरी रखकर तांबे या मिट्टी के लोटे (कलश) को लाल कपड़े से सजाने के बाद जल भरकर रखें। कलश स्थापना के बाद पास में ही भगवान श्रीहरि विष्णु की मूर्ति रखें और विधिवत् पूजा करें। अगले दिन स्नानादि से निवृत्त हो भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना करने के बाद व्रत का पारण करें।