जनकल्याण हेतु आस्था की दिव्य-भव्य यात्रा
हर 12 साल बाद जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, दाऊ बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को बदला जाता है। पुरानी मूर्तियों से जो नई मूर्ति बदली जाती है, उसमें एक चीज वैसी की वैसी रहती हैं, जिसे ब्रह्म पदार्थ कहते हैं। भगवान जगन्नाथ की आंखें बड़ी-बड़ी हैं, जो उनकी सर्वज्ञता और सर्वव्यापकता का प्रतीक हैं।
आर.सी. शर्मा
भगवान जगन्नाथ, भगवान विष्णु के पूर्ण कला अवतार श्रीकृष्ण का ही एक रूप हैं। जगन्नाथ से आशय है पूरे जगत के स्वामी। माना जाता है कि हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ मंदिर से बाहर आकर जगत का कल्याण करते हैं। इस तिथि को भगवान जगन्नाथ के भक्तों द्वारा उनकी एक भव्य रथयात्रा निकाली जाती है। इस रथयात्रा की सदियों पुरानी परंपरा है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र (जगन्नाथ पुरी) में होने वाली इस रथयात्रा में जो व्यक्ति शामिल होता है, उसके जाने-अनजाने किए गए सभी पाप खत्म हो जाते हैं और उसे मोक्ष मिलता है। इस साल यह विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा 7 जुलाई से शुरू होने के बाद 16 जुलाई को खत्म होगी।
पुरी जगन्नाथ रथयात्रा आज जिस रूप में निकलती है, वैसी वह 12वीं शताब्दी से निकल रही है। कहते हैं पहली बार यह रथयात्रा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम को रथ में बिठाकर घुमाने के लिए निकाली थी। भगवान जगन्नाथ का मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, इसे हिंदुओं के चार धामों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ में भगवान विष्णु के सभी अवतारों के गुण विद्यमान है। इनकी पूजा इनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा की त्रई के हिस्से के रूप मंे की जाती है। हर 12 साल बाद जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, दाऊ बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को बदला जाता है। पुरानी मूर्तियों से जो नई मूर्ति बदली जाती है, उसमें एक चीज वैसी की वैसी रहती हैं, जिसे ब्रह्म पदार्थ कहते हैं। भगवान जगन्नाथ की आंखें बड़ी-बड़ी हैं, जो उनकी सर्वज्ञता और सर्वव्यापकता का प्रतीक हैं।
दस दिनों की इस यात्रा में शामिल होने के लिए हर साल देश-विदेश से लाखों लोग पुरी आते हैं। यह यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है, जो उनकी मौसी का मंदिर है। इसे गुंडिचा बाड़ी भी कहते हैं। यहां भगवान जगन्नाथ, दाऊ बलभद्र और देवी सुभद्रा सात दिनों के लिए विश्राम करते है। गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को ‘आड़प दर्शन’ कहते हैं। इस तरह यह यात्रा मंदिर के मुख्यद्वार से शुरू होकर करीब 3 किलोमीटर तक की दूरी तय करती है। यात्रा दस दिनों तक चलती है। इस दौरान अलग-अलग रथों में सवार भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा शहर की मुख्य सड़कों से गुजरते हैं। इन रथों को लाखों भक्त खींचते हैं तथा अपार जनसमूह में लोग भगवान के दर्शन करने की कोशिश करते हैं।
इस रथयात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ, दाऊ बलराम और देवी सुभद्रा तीनों के लिए अलग अलग रथों का निर्माण होता है। सबसे आगे बलराम जी का रथ होता है, बीच में देवी सुभद्रा का रथ होता है और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ यानी भगवान श्रीकृष्ण का होता है। इनके रथों को इनके अलग अलग रंगों और ऊंचाई से पहचाना जाता है। बलराम जी के रथ को तालध्वज कहते हैं, इसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन या पद्म रथ कहते हैं, यह काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष या गरुड़ध्वज कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है। भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा होता है, जबकि बलराम जी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा होता है और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।
ये सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व लकड़ियों से बनाया जाता है। इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ों की पहचान कई माह पहले कर ली जाती है। यह काम मंदिर द्वारा गठित एक खास समिति करती है। इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार की कील या कांटे अथवा किसी धातु का इस्तेमाल नहीं होता। रथों के निर्माण मंे सिर्फ काष्ठ का इस्तेमाल होता है और जिस लकड़ी से ये रथ बनते हैं, उसका चयन वसंत पंचमी के दिन शुरू होता है और रथ का निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारंभ होता है। जब तीनों रथ तैयार हो जाते हैं तो ‘छर पहनरा’ नामक अनुष्ठान किया जाता है, इसके लिए पुरी के गजपति राजा पालकी में आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं और सोने की झाड़ू से रथ मंडप और रास्ते को साफ करते हैं।
अंत में आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को ढोल, नगाड़ों और तुरहई और शंख ध्वनि के साथ यह यात्रा शुरू होती है। जिसे इस रथ को खींचने का अवसर मिलता है, वह अपने को महाभाग्यवान समझता है। माना जाता है, जो रथ खींचता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है। इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर