समाज की विषमताओं और यथार्थ का गहरा चित्रण
डाॅ. महेश गौतम
‘लहू के गुलाब’ उर्दू, हिंदी और पंजाबी भाषाओं के प्रतिष्ठित कवि अमृतपाल सिंह शैदा का मूल्यवान ग़ज़ल संकलन है, जिसमें तिहत्तर ग़ज़लें संकलित हैं।
शैदा जी के पूर्व में प्रकाशित संकलनों में ‘फ़स्ल धुप्पां दी’ और ‘टूणेहारी रुत दा जादू’ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने एक काव्य संकलन, एक ग़ज़ल संकलन, और दो कहानी संकलनों का सम्पादन भी किया है। शैदा दूरदर्शन और आकाशवाणी के कार्यक्रमों में भी सक्रिय रहे हैं। ‘लहू के गुलाब’ हिंदी भाषा में देवनागरी लिपि में शब्दांजलि पब्लिकेशन, पटियाला द्वारा प्रकाशित हुआ है।
इस संग्रह में शैदा जी का संवेदनशील हृदय समाज की विषमताओं और पीड़ाओं को गहराई से छूने वाली ग़ज़लों के माध्यम से व्यक्त हुआ है। उन्होंने इस संकलन को दुनिया की सुख-शांति और समृद्धि को समर्पित किया है। उनका कहना है :-
‘खिला कर दिखाए हैं चिंतन की धरती पे हमने तो अक्सर लहू के गुलाब
जिन्हें, तजुर्बाकार कहते हैं अकसर, खिलाने हैं दूभर लहू के गुलाब।’
इन पंक्तियों में ग़ज़लों के तीखे व्यंग्य और संवेदनाओं की गहराई को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। शैदा जी का मानना है कि उनके शे’र सामान्य नहीं बल्कि अत्यधिक प्रभावशाली हैं। उनके ग़ज़लों में सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक विषमताओं पर कटाक्ष किया गया है।
शैदा जी समाज में जाति, धर्म और भेदभाव की आलोचना करते हुए कहते हैं :-
‘रंग क्या, रूप क्या, जात क्या, धर्म क्या
आदमी में फ़क़त खूबियां ढूंढि़ए।’
वे राजनीति और लोकसेवा की आड़ में हो रहे घोटालों पर भी तीखा कटाक्ष करते हैं :-
‘लोकसेवा के पसे-पर्दा है मक़सद लूटना
साफ़-सुथरा हर सियासतदां का कारोबार क्यों?’
समाज में व्याप्त विषमताओं पर प्रहार करते हुए कवि सीधे-सपाट शब्दों में प्रश्न करता है :-
‘एक घर में भूखे बच्चे, एक घर त्योहार क्यों?
इक मुहल्ले में बसे दो मुख़्तलिफ़ परिवार क्यों?’
इसके अलावा, वे झूठ और फरेब के यथार्थ को भी उजागर करते हैं :-
‘हां ये सच है कि वो सच ही की दुहाई देगा
शोर में झूठ के, पर किसको सुनाई देगा।’
कवि अपनी गहराई और संवेदनशीलता को शे’रों के माध्यम से व्यक्त करते हुए कहते हैं :-
‘मेरे शे’रों में लोगों के दुख हैं, आंसू हैं, खुशियां हैं
हर पल चिंतन और मनन ने हक़ सच का परचम लहराया।’
‘लहू के गुलाब’ ग़ज़ल संग्रह पाठकों को समाज की वास्तविकताओं से परिचित कराता है और उन्हें यथार्थ के धरातल पर कायम रहने की सलाह देता है।
पुस्तक : लहू के गुलाब ग़ज़लकार : अमृतपाल सिंह शैदा प्रकाशक : शब्दांजलि पब्लिकेशन, पटियाला पृष्ठ : 96 मूल्य : रु. 200.