भारतीय संस्कृति मेें रचा बसा एक देश
विवेक शुक्ला
अगर आप समझ रहे हैं कि राम, अयोध्या और ‘राम-राज्य’ भारत में ही हैं, तो माफ करें आपको थाईलैंड की यात्रा करनी चाहिए। आप दक्षिण पूर्व एशिया के इस देश में हिन्दू देवी-देवताओं और प्रतीकों को चप्पे-चप्पे पर देखते हैं। यूं थाईलैंड बौद्ध देश है। पर यहां श्रीराम भी आराध्य हैं। यहां की राजधानी बैंकाक से सटा है अयोध्या शहर। थाईलैंड में मान्यता है कि यही थी श्रीराम की राजधानी।
आप जैसे ही थाईलैंड की राजधानी बैंकाक के हवाई अड्डे पर उतरते हैं, तो आपको उसका नाम पढ़कर हैरानी अवश्य होती है। नाम है स्वर्णभूमि एयरपोर्ट। आप एयरपोर्ट से शहर की तरफ बढ़ते हैं, तब आपको राम स्ट्रीट और अशोक स्ट्रीट जैसे साइनबोर्ड पढ़कर वास्तव में सुखद अनुभव होता है। दरअसल, आसियान देश थाईलैंड में सरकार भी हिन्दू धर्म का आदर करती है। थाईलैंड का राष्ट्रीय चिन्ह गरुड़ है। हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं में गरुड़ को विष्णु की सवारी माना गया है। गरुड़ के लिए कहा जाता है कि वह आधा पक्षी और आधा पुरुष है। उसका शरीर इंसान की तरह का है, पर चेहरा पक्षी से मिलता है। उसके पंख हैं।
अब प्रश्न उठता है कि जिस देश का सरकारी धर्म बौद्ध हो, वहां पर हिन्दू धर्म का प्रतीक क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि चूंकि थाईलैंड मूल रूप से हिन्दू धर्म से संबंधित था, इसलिए उसे इसमें कोई आपत्ति नजर नहीं आती कि वहां पर हिन्दू धर्म का प्रतीक राष्ट्रीय चिन्ह हो। यही नहीं, हिन्दू धर्म का थाई राज परिवार पर सदियों से गहरा प्रभाव है। माना यह जाता है कि थाईलैंड के राजा भगवान विष्णु के अवतार हैं। इसी भावना का सम्मान करते हुए थाईलैंड का राष्ट्रीय प्रतीक गरुड़ है। यहां तक कि वहां कभी सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए।
थाईलैंड में राजा को राम कहा जाता है। राज परिवार अयोध्या में रहता है। बौद्ध होने के बावजूद थाईलैंड के लोग अपने राजा को विष्णु का अवतार मानते हैं। इसलिए थाईलैंड में एक तरह से राम-राज्य है। वहां के राजा को भगवान श्रीराम का वंशज माना जाता है। आपको थाईलैंड एक के बाद एक आश्चर्य देगा। थाईलैंड में थेरावाद बौद्ध मत के मानने वाले बहुमत में हैं, फिर भी वहां का राष्ट्रीय ग्रंथ रामायण है। जिसे थाई भाषा में ‘राम-कियेन’ कहते हैं। जिसका अर्थ राम-कीर्ति होता है, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित है।
थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के सबसे बड़े और भव्य हॉल का नाम रामायण हॉल है। यहां पर श्रीराम के जीवन पर आधारित नाटक और कठपुतलियों का प्रदर्शन हर रोज चलता है। इसके मुख्य पात्रों में राम (राम), लक (लक्ष्मण), पाली (बाली), सुक्रीप (सुग्रीव), ओन्कोट (अंगद), खोम्पून (जाम्बवन्त), बिपेक (विभीषण), रावण, जटायु आदि हैं। क्या भारत के किसी शहर में हर रोज रामलीला का मंचन होता है? कतई नहीं। हमारे यहां तो रामलीला के मंचन घट रहे हैं। थाईलैंड में श्रीराम की जीवन लीला को रोज हजारों लोग देखने के लिए आते हैं। यकीन नहीं होता कि भारत से बाहर किसी देश में हर दिन श्रीराम कथा या कहें कि रामलीला का मंचन होता है।
अगर बात श्रीराम से हटकर नवरात्रों की करें तो इस दौरान बैंकॉक के सिलोम रोड पर स्थित श्रीनारायण मंदिर हिन्दुओं का केन्द्र बन जाता है। यहां के सभी हिन्दू इधर कम से कम एक बार जरूर आते हैं- पूजा या फिर सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए। इस दौरान भजन, कीर्तन और अन्य धार्मिक अनुष्ठान जारी रहते हैं। इस दौरान दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती जी की एक दिन सवारी भी मुख्य मार्गों से निकलती है। इसमें भगवान गणपति, श्रीकृष्ण, सुब्रमण्यम और दूसरे देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी सजाकर किसी वाहन में रखा गया होता है। इस आयोजन में हजारों बौद्ध भी भाग लेते हैं। ये सवारी अपना तीन किलोमीटर का रास्ता सात घंटे में पूरा करती है। इसमें संगीत-नृत्य टोलियां भी रहती हैं।
इस बीच, कुछ समय पहले एक चौंकाने वाला आंकड़ा पढ़ा। आंकड़ा यह था कि भारत की तुलना में छोटे से थाईलैंड में प्रति वर्ष करीब एक-डेढ़ करोड़ पर्यटक पहुंच रहे हैं। इनमें से अधिकतर भगवान बुद्ध से जुड़े मंदिरों के दर्शन करने के लिए वहां पर जाते हैं। क्या भारत में इतनी संख्या में पर्यटक बौद्ध तीर्थ स्थलों का भ्रमण करते हैं? नहीं। भारत में मुश्किल से 25 लाख विदेशी पर्यटक भी बौद्ध सर्किट में नहीं पहुंचते।
यूं तो भारत की चाहत है कि दुनियाभर में फैले 50 करोड़ बौद्ध धर्म के अनुयायियों को भारत लाया जाए। बौद्ध अनुयायियों का गौतम बुद्ध की जन्मस्थली भारत को लेकर आकर्षण स्वाभाविक होना चाहिए। इसी के चलते जापान, थाईलैंड, म्यांमार, वियतनाम, श्रीलंका जैसे बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों से पर्यटकों को भारत लाने की कोशिशें होती हैं। पर्यटकों की आमद के लिहाज से बोधगया-राजगीर-नालंदा सर्किट देश के सबसे खासमखास पर्यटन स्थलों में आते हैं। पर इनकी संख्या थाईलैंड के बौद्ध मंदिरों में आने वाले पर्यटकों की अपेक्षा काफी कम होगी। आखिर वे कौन से कारण हैं जिनके चलते हम अपने देश में अधिक से अधिक बौद्ध पर्यटकों को खींच नहीं पा रहे हैं? थाईलैंड में जगह-जगह बौद्ध मंदिर हैं। उनमें भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में भव्य मूर्तियां हैं। इनमें टूरिस्ट पहुंचते हैं लाखों की संख्या में। इनके लिए वहां पर भोजन की उत्तम व्यवस्था की गई है। इनमें घूमते वक्त आपको कहीं कोई पर्यटकों की जेब से पैसे निकालता हुआ नहीं मिलता। सब जगहों पर व्यवस्था बेहतरीन रहती है। क्या हम इस तरह का दावा कर सकते हैं? बहरहाल, थाईलैंड में बौद्ध और हिन्दू धर्म का साथ-साथ चलना सुकून देता है।