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ऐतिहासिक धरोहर और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम

04:00 AM Dec 06, 2024 IST
खजुराहो, मध्य प्रदेश का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर स्थल है, जो अपने अनोखे मंदिरों और अद्भुत वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थल यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल है और पर्यटकों को अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक विविधता से आकर्षित करता है।

सोनम लववंशी

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो एक मशहूर पर्यटन स्थल है। यह दुनियाभर में आकर्षक मूर्तियों के लिए जाना जाता है। यह शहर अनोखे हिंदू और जैन मंदिरों लिए विश्व प्रसिद्ध है। यूनेस्को ने खजुराहो को वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में शामिल किया है। कहा जाता है कि चंदेल राजाओं ने इन मूर्तियों का निर्माण कराया था। इस स्थान का नाम खजुराहो इसलिए पड़ा क्योंकि यहां खजूर के पेड़ों का विशाल बगीचा था। इब्नबतूता ने इस स्थान को कजारा कहा है, तो चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसे ‘चि: चि: तौ’ लिखा है। अलबरूनी ने इसे ‘जेजाहुति’ बताया है, जबकि संस्कृत में इसे ‘जेजाक भुक्ति’ बोला जाता रहा है। चंद्र बरदाई की कविताओं में इसे ‘खजूरपुर’ कहा गया। एक समय इसे ‘खजूरवाहक’ नाम से भी जाना गया। लोगों का मानना है खजूर के विशाल वृक्षों के कारण यह नाम कालांतर में खजुराहो कहलाने लगा।

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कामसूत्र और खजुराहो

कामसूत्र में वर्णित भाव-भंगिमाओं का सजीव चित्रण खजुराहो के सभी मंदिरों की दीवारों पर जीवंत हुआ दिखाई देता है। यहां स्थित 22 मंदिरों में से एक कंदारिया महादेव का मंदिर काम शिक्षा के लिए विश्व भर में मशहूर है। संभवत: कंदरा के समान प्रतीत होते इसके प्रवेश द्वार के कारण इसका नाम कंदारिया महादेव पड़ा होगा।

जीवंत शिवलिंग

मध्यप्रदेश के खजुराहो में मतंगेश्वर मंदिर का रहस्य बहुत ही अनोखा और आश्चर्यचकित करने वाला है। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को एकमात्र जीवित शिवलिंग माना जाता है। इस शिवलिंग की ऊंचाई हर साल आश्चर्यजनक रूप से बढ़ रही है। यह शिवलिंग जितना ऊपर की और उठता है, उतना ही धरती के अंदर भी बढ़ता है। वर्तमान काल में इस शिवलिंग की लंबाई लगभग 9 फीट तक हो चुकी है। ऐसी मान्यता है कि हर साल कार्तिक महीने की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई बढ़ती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शंकर के पास मरकत मणि थी, जिसे भगवान शिव ने पांडव पुत्र युधिष्ठिर को दे दी। इसके बाद युधिष्ठिर के पास से वह मणि मतंग ऋषि को मिल गई और उन्होंने राजा हर्षवर्मन को दे दी। मतंग ऋषि की मणि के कारण ही इनका नाम मतंगेश्वर महादेव पड़ा। इस मणि को सुरक्षा की दृष्टि से शिवलिंग के नीचे जमीन में गाड़ दी गई थी। इस मणि की प्रचंड शक्ति के कारण ही यह शिवलिंग हर साल एक जीवित मानव की तरह बढ़ता है, जिस कारण इसे जीवित शिवलिंग भी कहा जाता है।

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मतंगेश्वर मंदिर

मतंगेश्वर मंदिर खजुराहो का सबसे रो मंदिर है। 9वीं शताब्दी में निर्मित, यह तांत्रिक मंदिर 64 योगिनियों को समर्पित है। यह मंदिर खाली होने के बावजूद, यहां एक रहस्यमय आभा महसूस की जाती है। ये 64 योगिनियां जीवन के सार को संतुलित करती हैं और इसलिए खजुराहो को ऊर्जा से भर देती है।

देवी जगदम्बी मंदिर

हिंदू देवी जगदम्बी की विशाल मूर्ति के साथ अपने गर्भगृह के लिए प्रसिद्ध, यह मंदिर एक नाजुक संतुलित मंदिर के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर को भगवान विष्णु, देवी पार्वती और देवी काली का पवित्र निवास होने का सौभाग्य प्राप्त है। यहां नक्काशी के तीन बैंडों पर जटिल मूर्तियां दिखाई देती हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस तीर्थस्थल को राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में वर्गीकृत किया है। शिवरात्रि के धार्मिक समारोह के दौरान भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ती है। इस दिन, लिंग को नहलाया जाता है, कपड़े पहनाए जाते हैं और सुंदर दूल्हे की तरह सजाया जाता है।

पन्ना राष्ट्रीय उद्यान

पन्ना राष्ट्रीय उद्यान खजुराहो के पास वन्य जीवन के अनुभव का आनंद लेने के लिए एक आदर्श स्थान है। यह जगह बाघों के लिए जानी जाती है जिन्हें सफारी ट्रिप के दौरान आसानी से देखा जा सकता है। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान की जीप सफारी एक शानदार अनुभव है। जलीय प्रजातियों को करीब से देखने के लिए आप सफारी के दौरान केन नदी पर नौका बिहार का आनंद भी ले सकते हैं।

जलप्रपात और गुफाएं

खजुराहो से महज़ कुछ ही दूरी पर स्थित पांडव गुफाओं के संदर्भ में यह कहा जाता है कि इनका निर्माण पांडवों ने अपने निर्वासन के दौरान किया था। इस जगह पर एक ख़ूबसूरत जलप्रपात भी है जिसे पांडव जलप्रपात के नाम से जाना जाता है। यह जगह काफ़ी शांत और मन को सुकून देने वाली है। इस जगह की शांति, पवित्रता और रहस्यमय वातावरण पर्यटकों को मंत्र मुग्ध कर देता है।

पुरातत्व संग्रहालय

खजुराहो पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना खजुराहो की महान विरासत और इतिहास को संरक्षित करने के उद्देश्य से की गई थी। यह ख़ूबसूरत संग्रहालय वर्ष 1910 में बनाया गया था पर 2016 में इसका पुनर्निर्माण किया गया। इस संग्रहालय में चंदेला शासन के दौरान बनाए गए मंदिरों की करीब 1500 मूर्तियों को संरक्षित किया गया है। इस जगह पर आकर आप खजुराहो की समृद्ध विरासत को देख सकते हैं।

कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग : खजुराहो हवाई अड्डा शहर के केंद्र से लगभग 5 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां से दिल्ली, मुंबई, वाराणसी और आगरा सहित भारत के प्रमुख शहरों के लिए नियमित उड़ानें हैं।
रेल मार्ग : खजुराहो का अपना रेलवे स्टेशन है। हालांकि, रेल नेटवर्क सीमित है, और खजुराहो के लिए केवल कुछ सीधी ट्रेनें हैं। वैकल्पिक रूप से, आप पास के झांसी जंक्शन या महोबा रेलवे स्टेशन के लिए ट्रेन ले सकते हैं, जहां बेहतर रेल संपर्क है। फिर सड़क मार्ग से खजुराहो की अपनी यात्रा कर सकते हैं। झांसी या महोबा से, आप खजुराहो पहुंचने के लिए टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या बस ले सकते हैं।
सड़क मार्ग : खजुराहो मध्य प्रदेश और पड़ोसी राज्यों के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। खजुराहो की यात्रा के लिए सरकारी बसें, निजी बसें और टैक्सियां उपलब्ध हैं। झांसी, सतना, ओरछा और भोपाल जैसे शहरों से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। यदि आप अधिक आरामदायक और निजी यात्रा पसंद करते हैं, तो आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या सेल्फ-ड्राइव कार का विकल्प चुन सकते हैं।

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