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परीलोक जैसी खूबसूरत झीलों की नगरी

10:38 AM Sep 06, 2024 IST
परीलोक जैसी खूबसूरत  झीलों की नगरी
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16वीं शताब्दी में राणा उदय सिंह ने इस शहर की खोज की थी। इसे ‘सूर्योदय का शहर’ भी कहा जाता है। पहाड़ों से घिरा यह शहर एक पर्वत शृंखला पर बसा है, जिसकी चोटी पर महाराणाजी का महल है, जिसका निर्माण 1570 ई. में शुरू हुआ था। शहर के पश्चिम में पिछोला झील है, जिस पर दो छोटे-छोटे टापू और संगमरमर से बने महल हैं।

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देवेन्द्रराज सुथार

झीलों के लिए मशहूर उदयपुर एक ऐसा शहर है जहां की सुबह और शाम मानो प्यार का घूंट पीए होती है और जहां भी नजर डालो, खूबसूरत नजारा ही नजर आता है। यहां चार बड़ी झीलें हैं—पिछोला, फतेह सागर, उदय सागर और रंग सागर। खास बात यह है कि चारों झीलें एक नहर के जरिए एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। एक तरफ ऊंचे पहाड़ पर मानसून पैलेस है, तो दूसरी तरफ नीमच माता मंदिर है। इसमें कोई शक नहीं कि यह पर्यटकों के लिए बेहद मोहक जगह है। यहां पानी से भरी झीलें गर्मियों में भी ठंडक का अहसास कराती हैं। पहाड़ों से झीलों का नजारा ऐसा लगता है मानो स्वर्ग के किसी कोने से कुछ देखा जा रहा हो।
उचित्तौड़गढ़ के पतन के बाद मेवाड़ के सिसोदिया राजपूत 1567 ई. में उदयपुर आए और उन्होंने एक खूबसूरत परीलोक जैसा शहर बसाया। 16वीं शताब्दी में राणा उदय सिंह ने इस शहर की खोज की थी। इसे ‘सूर्योदय का शहर’ भी कहा जाता है। पहाड़ों से घिरा यह शहर एक पर्वत शृंखला पर बसा है, जिसकी चोटी पर महाराणाजी का महल है, जिसका निर्माण 1570 ई. में शुरू हुआ था। शहर के पश्चिम में पिछोला झील है, जिस पर दो छोटे-छोटे टापू और संगमरमर से बने महल हैं। यह शहर समुद्र तल से करीब 2000 फीट ऊपर एक पहाड़ी पर बसा है और जंगलों से घिरा हुआ है। ऊंचे-नीचे पहाड़ी ढलानों से मुक्त, हरे-भरे पेड़ों से आच्छादित इस शहर की साफ-सुथरी और चौड़ी सड़कों पर घूमने का अपना ही आनंद है। चारों ओर हरे-भरे पहाड़ों की खूबसूरती और उनके बीच दूर तक लहराती झीलें देखकर मन एक स्वप्निल दुनिया के आनंद की अनुभूति में डूबने लगता है। झीलों के साथ रेगिस्तान का अनूठा संगम उदयपुर के अलावा देखने को नहीं मिलता। प्राकृतिक सौंदर्य एवं पर्यटन की दृष्टि से इसे ‘राजस्थान का कश्मीर’ भी कहा जाता है
दरअसल, बस और रेल मार्ग से जुड़े होने के कारण यहां पहुंचने में कोई दुविधा नहीं होती। यहां ठहरने के लिए हर स्तर के होटल और धर्मशालाएं उपलब्ध हैं। यहां सफेद संगमरमर के महल और कई प्राचीन मंदिर हैं। वर्ष 1951 में बना जगदीश मंदिर उदयपुर का सबसे बड़ा और भव्य मंदिर है। यहां जगन्नाथ या विष्णु की मूर्ति की पूजा की जाती है।
फतेह सागर झील यहां का मुख्य आकर्षण है। वहीं पिछोला झील एक नहर द्वारा जुड़ी हुई है। इस मनोरम झील की लंबाई 4 किमी और चौड़ाई 3 किमी है। झील के बीच में नेहरू पार्क स्थित है, जो 4 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां नाव से पहुंचने की व्यवस्था है। रंग-बिरंगे फव्वारों से सजा यह उद्यान पर्यटकों का पसंदीदा है। यहां शाम से लेकर रात 10 बजे तक पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। यह झील पहाड़ियों, महलों, स्नान घाटों और तटबंधों से घिरी हुई है। सिटी पैलेस झील के पूर्वी किनारे पर स्थित है और इसके पीछे के दृश्य की सुंदरता अविश्वसनीय है। लेक पैलेस होटल, जग मंदिर और मोहन मंदिर झील के अंदर स्थित हैं। सिटी पैलेस के पास बंशीघाट से पूरे दिन बोटिंग आसानी से उपलब्ध है।
इसके साथ ही पिछोला झील से अलग हुआ भाग दूध मलाई, माचला मंदिर, पहाड़ी की ढलान पर स्थित माणिक्य लाल वर्मा उद्यान तथा पहाड़ी की चोटी पर स्थित करणी माता मंदिर भी दर्शनीय हैं। यहां भारतीय लोक कला नृत्य का अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय स्थित है। इसके सभागार में पर्यटक आकर्षक कठपुतली कार्यक्रम का आनंद ले सकते हैं। यहां की अरावली वाटिका भी दर्शनीय है, जो झील के किनारे बहुत लंबी पहाड़ी पर फैली हुई है। इसके समीप ही महाराणा प्रताप स्मारक स्थापित है। यह स्मारक फतेह सागर झील के पूर्व में मोती मगरी पहाड़ी पर स्थित है। इस पहाड़ी की चोटी पर महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा उनके विश्वस्त घोड़े चेतक के साथ स्थापित की गई है। इस पहाड़ी से चारों ओर सुंदर दृश्य देखने योग्य है। इसके थोड़ा नीचे वीर भवन संग्रहालय है। इसमें महाराणा प्रताप की संपूर्ण जीवनी को आदमकद आकर्षक चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। निचली मंजिल पर हल्दीघाटी के युद्ध और चित्तौड़गढ़ किले का मॉडल प्रदर्शित किया गया है, तथा उस समय युद्ध में प्रयुक्त हथियारों को इसके मध्य भाग में रखा गया है।
सहेलियों की बाड़ी (जैसा नाम से ही स्पष्ट है) पहले राजकुमारियां और उनकी सहेलियों का मनोरंजन स्थल था। यहां सफेद संगमरमर के हाथी और भव्य ऊंचा फव्वारा का अपना ही आकर्षण है। इसके अतिरिक्त उदयपुर से 5 किमी दूर पश्चिम की ओर सबसे ऊंची ढलवां पहाड़ी (152 मीटर की ऊंचाई) पर खड़ा एक मजबूत किला सज्जनगढ़ को देखें बिना भ्रमण अधूरा है। इस किले के झरोखों से शहर का मनोहारी दृश्य देखा जा सकता है। कहते हैं साफ मौसम में दिन के वक्त यहां से चित्तौड़गढ़ के किले को देखा जा सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यहां की प्राकृतिक सुंदरता को निहारते हुए मन नहीं भरता।

चित्र लेखक

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