अनूठी मोहब्बत का गवाह एक ‘खुशियों का शहर’
मांडू वास्तव में रहस्यों से भरा हुआ है। अंग्रेज तो इसे ‘सिटी ऑफ जॉय’ के नाम से ही पुकारते रहे। मांडू में वास्तुकला की अद्भुत रचनाएं बिखरी हुई हैं, जो देश-दुनिया के लिए धरोहर हैं। यहां की इमारतें शासकों की कलात्मक सोच, समृद्ध विरासत और शानो-शौकत का आईना है।
सोनम लववंशी
मध्यप्रदेश का प्राचीन क़स्बा मांडू अपनी ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना-जाता है। मालवा और निमाड़ इलाके के मुहाने पर पहाड़ी पर बसे इस कस्बे के साथ इतिहास के कई किस्से जुड़े हैं। लेकिन, सबसे चर्चित है रानी रूपमती और बादशाह बाज बहादुर का अमर प्रेम। यहां का हर पत्थर इतिहास में दर्ज इन दो प्रेमियों के किस्से सुनाता है। सुल्तानों के समय में यह शादियाबाद के नाम से मशहूर रहा। जिसका मतलब था ‘खुशियों का शहर।’ वर्तमान समय में इसे मांडव या मांडवगढ़ कहा जाता है। यहां पत्थरों से बने कई विशाल महल और कुंड हैं। ये अपनी प्राचीनता के साथ अपने सौंदर्य और वास्तुकला के लिए भी जाने जाते हैं।
इस छोटे से कस्बे के अधिकांश स्मारक 15वीं और 16वीं शताब्दी ईस्वी के हैं। मांडू का सबसे पहला संदर्भ एक संस्कृत शिलालेख में मिलता है, तब इसे मंडप-दुर्गा कहा जाता था। वास्तव में यह नाम इस जगह को सार्थक करता है। मध्य प्रदेश के हरे-भरे जंगल, मां नर्मदा का मनोरम तट, मांडू को मालवा का स्वर्ग बनाते हैं। यहां के खंडहर व इमारतें हमें इतिहास के उस झरोखे के दर्शन कराते हैं, जिसमें हम मांडू के शासकों की विशाल समृद्ध विरासत व शानो-शौकत से रूबरू होते हैं। कहते है यहां खंडहरों के पत्थर भी बोलते और कहानी सुनाते हैं।
महान कवि अबुल फज़ल को मांडू का मायाजाल भ्रमित करता था। मांडू के लिए उन्होंने कहा है कि यह पर्स पत्थर की देन है। यहां चार वंशों के राजाओं ने राज किया। जो परमार काल, सुल्तान काल, मुग़ल काल और पवार काल के रूप में जाने गए। मांडू को मुख्य तौर पर परमार शासकों ने बसाया था, जिनमें से हर्ष, मुंज, सिंधु और राजा भोज इस वंश के महत्वपूर्ण शासक रहे।
मांडू वास्तव में रहस्यों से भरा हुआ है। अंग्रेज तो इसे ‘सिटी ऑफ जॉय’ के नाम से ही पुकारते रहे। मांडू में वास्तुकला की अद्भुत रचनाएं बिखरी हुई हैं, जो देश-दुनिया के लिए धरोहर हैं। यहां की इमारतें शासकों की कलात्मक सोच, समृद्ध विरासत और शानो-शौकत का आईना है। मांडू को ऐसा अभेद्य गढ़ भी माना गया, जिसे शत्रु कभी नहीं भेद सके। राजपूत परमार शासक भी बाहरी आक्रमण से रक्षा के लिए मांडू को सुरक्षित किला मानते रहे। पहाड़ों के बीच हरियाली से सजा मांडू में पर्यटकों को आकर्षित करता है। लेकिन, बारिश के मौसम में इसकी छटा अद्भुत होती है। यही कारण है कि बारिश में यहां पर्यटकों की भीड़ कई गुना बढ़ जाती है। यहां बादल जमीन पर उतर आते हैं।
रूपमती मंडप
इस महल के पीछे की कहानी प्यार की है। रूपमती का यह महल मांडव में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बना है। मांडव के अंतिम स्वतंत्र राजा बाज बहादुर को एक खूबसूरत चरवाही रूपमती से प्यार हो गया, जो एक अद्भुत गायिका भी थी। उन्होंने उसे अपने साथ महल में चलने के लिए मना लिया और उसकी इस शर्त पर सहमति जताई कि उसके महल का मुख पूज्य नदी नर्मदा के सामने होना चाहिए। इसी तरह रेवा कुंड की नींव रखी गई थी। रूपमती प्रतिदिन नर्मदा के दर्शन के बाद ही अन्ना-जल ग्रहण करती थी। बादलों या कोहरे की वजह से कभी नर्मदा के दर्शन नहीं की स्थिति से निपटने के लिए रूपमती महल में ही रेवा कुंड का निर्माण भी किया गया था, जिसमें नर्मदा का जल रहता था। यह संरचना पूरे शाही परिसर का सबसे सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है। आज भी जब बारिश में नर्मदा में पानी होता है तो कोसों दूर रूपमती महल से उसकी धारा दिखाई देती है।
जहाज महल
‘तैरता महल’ या ‘जहाज महल’ अनूठी निर्माण शैली की वजह से जाना जाता था। यह मानव निर्मित झील के केंद्र में खड़ा है, जिससें इसे तैरते हुए होने का दिव्य दृश्य दिखता था। माना जाता है कि गयासुद्दीन खिलजी ने इसे अपनी रानियों के लिए बनवाया था। यह खंडहर हो चुके शहर की सबसे विस्तृत मौजूदा संरचनाओं में से एक है और इसके निर्माण में भी एक जहाज से प्रेरणा ली गई है।
हिंडोला महल
मांडू के शाही महल परिसर में हिंडोला महल या स्विंगिंग पैलेस भी शामिल है, जो एक टी-आकार की संरचना है। यह मांडू की वास्तुकला का एक आदर्श नमूना है। यह इमारत शाही दरबार या मीटिंग हॉल के रूप में काम आती थी और अपनी तिरछी दीवारों के लिए जानी जाती है जो इसके बाहरी हिस्से को सबसे अलग बनाती हैं।
बाज बहादुर का महल
रेवा कुंड के पूर्व में एक पहाड़ी ढलान पर स्थित राजा बाज बहादुर का महल है, जो कला और वास्तुकला के प्रचारक थे। माना जाता है कि उन्हें राग दीपक में महारत हासिल थी। राजा इस महल के मुरीद हो गए थे, क्योंकि यहां से रेवा कुंड का निर्बाध दृश्य दिखाई देता था जिसे देखने के लिए रूपमती आती थी। राजपूत और मुगल शैली की वास्तुकला के मिश्रण से निर्मित इस महल में, रूपमती के मंडप की तरह, एक जल सेतु था, जो नर्मदा नदी से पानी को महल के प्रांगण में स्थित कुंड तक पहुंचाता था।
चंपा बावड़ी (भूमिगत कोठरियों का महल)
मांडव की वास्तुकला का सबसे अनूठा पहलू शाही परिसर में जल सेतुओं और बावड़ियों के निर्माण के माध्यम से जल संचयन तकनीकों का समावेश है। सबसे उल्लेखनीय चंपा बावड़ी है, जिसे भूमिगत कोठरियों का महल भी कहा जाता है। इसने कई उद्देश्यों को पूरा किया। पानी इकट्ठा करने के अलावा, इसमें गुप्त मार्ग भी थे, जिनका उपयोग शाही महिलाएं किसी हमले की स्थिति में परिसर से बाहर निकलने के लिए कर सकती थीं।
पहुंचना-घूमना भी आसान
मुंबई-दिल्ली के रास्ते पर स्थित इंदौर से यहां तक करीब 100 किमी पहुंचने का सीधा रास्ता है। घुमावदार रास्तों से मांडव में प्रवेश करते ही विशाल दरवाजे स्वागत करते है। पांच किमी के दायरे में लगभग 12 प्रवेश द्वार निर्मित हैं। इनमें सुल्तान या दिल्ली दरवाजा प्रमुख माना जाता है। इसे मांडू का प्रवेश द्वार भी कहते हैं। इसका निर्माण 1405 से 1407 के मध्य में हुआ बताया जाता था। इसके बाद आलमगीर दरवाजा, गाड़ी दरवाजा, तारापुर दरवाजा आते हैं। काले पत्थरों से निर्मित इन दरवाजों के बीच से गुजरते हुए पर्यटक मांडू में प्रवेश करते हैं। इसके साथ हरियाली की चादर से ढकी सुरम्य वादियों के बीच इतिहास की गवाह इमारतें एक के बाद एक सामने आती चली जाती हैं।
मंदिर और महलों का संगम
भगवान राम की चतुर्भुज प्रतिमा भी मांडू में स्थापित है, जो दुर्लभ और महत्वपूर्ण मानी जाती है। मंदिर के समीप निर्मित इस महल का निर्माण शाह बदगा खान ने अकबर की हिंदू पत्नी के लिए करवाया था। इसकी दीवारों पर अकबर कालीन कला के नमूने देखे जा सकते हैं। यहां का जैन तीर्थ भी ऐतिहासिक है। भगवान सुपार्श्वनाथ की पद्मासन मुद्रा में विराजित श्वेत वर्णी सुंदर प्राचीन प्रतिमा है। बताया जाता है कि 14वीं शताब्दी में यह प्रतिमा की स्थापित की गई थी। यहां कई अन्य पुराने ऐतिहासिक महत्व के जैन मंदिर भी है, जिस कारण यह जैन धर्मावलंबियों के लिए एक तीर्थ स्थान है।
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