आज की सावधानी से बेहतर कल
संगत यानी दोस्ती-यारी एवं स्कूल का माहौल अच्छा हो, बेहतरीन पैरेन्टिंग, महिलाओं के सम्मान की बचपन से ही शिक्षा, सरकार की इच्छाशक्ति। ये सारी चीजें सुदृढ़ हों तो कोई ताकत नहीं कि हमारी भावी पीढ़ी को नशे के गर्त में धकेल सके। यह कहना है न्यूरो साइकेट्रिस्ट डॉ. अरदास संधु का। नैतिक शिक्षा को जरूरी मानते हुए डॉ. अरदास कहते हैं कि नशा हो या कोई भी असामाजिक गतिविधि, बच्चों पर सीधा असर संगत का पड़ता है। बच्चे को जैसी संगत मिलेगी, उसका असर वैसा ही पड़ेगा। संगत दो-तीन तरह की हो सकती हैं। एक तो आपके सीनियर आपके अच्छे दोस्त हो सकते हैं। उनके साथ आपकी अच्छी बनती है। दूसरे, आपके जूनियर यानी आपसे कम उम्र के लोग आपके मित्र हो सकते हैं। या फिर आपके हमउम्र ही आपके दोस्त होते हैं। हमउम्र दोस्त तो आदर्श माने ही जाते हैं। अगर सीनियर यानी आपसे ज्यादा उम्र के आपके दोस्त हैं तो इस पर नजर रहनी चाहिए कि आपका वह दोस्त जो आपका ‘रोल मॉडल’ है, वह कैसा है? क्या आपका रोल मॉडल वह है जो बहुत ज्यादा खर्च करता है, उसकी लाइफस्टाइल एकदम अलग तरीके की है वह पिज़्ज़ा, बर्गर खाने वालों में से है। या आपका रोल मॉडल वह है जो बच्चा लाइब्रेरी जा रहा है, पढ़ाई के प्रति गंभीर है। अच्छी आदतों वाला है। बेवजह नहीं घूमता। इसी क्रम में यह बात भी आती है कि आपका साथी किस तरह के गाने सुन रहा है। किस तरह की जिंदगी जी रहा है। उसकी धार्मिक प्रवृत्ति कैसी है। धार्मिक होना बुरी बात नहीं, लेकिन कट्टरता खराब है।
स्कूल की भूमिका
डॉ. अरदास कहते हैं कि स्कूल की जिम्मेदारी बहुत सशक्त है। बेशक बच्चों की संगत पर नजर रखने की जिम्मेदारी बहुत ज्यादा माता-पिता की है, लेकिन स्कूल को इनीशिएटिव लेना चाहिए। बच्चे का ज्यादातर समय स्कूल में व्यतीत होता है। वह किस तरह का व्यवहार करता है इस बात को लेकर बच्चे के माता-पिता से स्कूल का संपर्क रहना चाहिए और माता-पिता भी बच्चे के व्यवहार में तब्दीली देखें तो स्कूल से संपर्क करें। घर और स्कूल से शुरुआत से ही सिखाया जाना चाहिए कि महिलाओं का सम्मान करें। इसके साथ ही परिवार के लोग आपस में बातें करें। कई बार हम परिवार में देखते हैं कि लोग साथ तो बैठे हैं, लेकिन हर कोई अपने-अपने फोन पर लगा रहता है। इसकी वजह से भी अनजाने में ही बच्चे के कोमल मन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वह वर्चुअल लाइफ को ही दुनिया समझने लगता है।
शिक्षा व्यवस्था के बदलाव
नशे की समस्या से निजात पाने के लिए डॉ. अरदास शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन को भी जरूरी मानते हैं। वह कहते हैं कि जिस तरह से समय बदला है, उस हिसाब से शिक्षा व्यवस्था में भी बदलाव जरूरी है। बच्चों को नैतिकता सिखाई जाये। साथ ही वह ‘हेल्दी डाइट’ को भी आवश्यक तत्व मानते हैं। डॉ. संधु का मानना है कि स्वस्थ भोजन शैली का तन-मन पर बहुत असर पड़ता है। नशा रोकने में सरकार की भूमिका के सवाल पर वह कहते हैं कि इच्छाशक्ति हो तो सब हो सकता है। कई बार ऐसी खबरें आई हैं कि सरकारी अफसर ही नशा तस्करी में पकड़े गये। अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो, लोग अपने कर्तव्यों को समझें तो कोई ताकत नहीं है जो सीमा क्षेत्र से अंदर नशे को हमारे देश में पहुंचा सके। हमारी नयी पीढ़ी को बर्बाद करने वाली साजिशों को बेनकाब किया जाना जरूरी है। इसके साथ ही डॉ. संधु कहते हैं कि बच्चों को ना कहना जरूर सिखाएं। क्योंकि ना कह सकने की आदत या हिम्मत ही हमें नशाखोरी से दूर रख पाएगी। पहले शौकिया, फिर दोस्तों की जिद में हां- हां करते-करते जीवन की खुशियां हमसे ना कहने लगती हैं। इसलिए गैर-जरूरी बातों पर ना कहना जरूरी है।
लेखक हीलिंग हॉस्पिटल, चंडीगढ़ में सेवारत हैं।