फर्जी कंपनियां बनाकर विदेशों में भेजे 700 करोड़, 7 गिरफ्तार
विवेक बंसल/हप्र
गुरुग्राम, 1 नवंबर
हरियाणा पुलिस की राज्य अपराध शाखा ने संगठित अपराध के एक ऐसे मामले को सुलझाने में सफलता हासिल की है जिसमें आरोपियों द्वारा फर्जी कंपनियां बनाते हुए विदेशो में अवैध तरीके से काला धन भेजा जा रहा था। जांच में पाया गया कि आरोपियों द्वारा लगभग 700 करोड़ रुपए अवैध तरीके से विदेशी कंपनियों के खातों में भेजे जा चुके थे। इस मामले में अब तक सात आरोपियों की गिरफ्तारी की जा चुकी है जबकि पांच अन्य के खिलाफ न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की गई है।
3 आरोपी दिल्ली के रहने वाले है जबकि अन्य देहरादून, झज्जर, सोनीपत तथा फरीदाबाद से है। मामले में 5 आरोपियों के खिलाफ न्यायालय में पूर्ण साक्ष्यांे के आधार पर चार्ज शीट दाखिल की गई है। जांच के दौरान आरोपियों से बडे स्तर पर कंपनियों के फर्जी दस्तावेज, करीब 26 मोबाइल फोन, लेपटॉप, कंपनियों की मुहरें इत्यादि बरामद किए गए हैं। गिरफ्तार आरोपियो में से एक आरोपी के खिलाफ इस प्रकरण के अलावा हत्या, गंभीर चोट इत्यादि के अन्य मुकदमें भी दर्ज हैं। विशेष जांच टीम द्वारा उच्चाधिकारियो की देख-रेख में गहनता से जांच की जा रही है।
हरियाणा पुलिस को 18 मार्च, 2024 को एक शिकायत प्राप्त हुई थी। शिकायत का संज्ञान लेते हुए पुलिस महानिदेशक शत्रुजीत कपूर के दिशा निर्देशानुसार अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, राज्य अपराध शाखा तथा पुलिस उपायुक्त गुरुग्राम नीतीश अग्रवाल की अध्यक्षता में विशेष अनुसंधान टीम (एसआईटी) गठित की गई। जांच के दौरान पाया गया कि आरोपी संगठित होकर डमी डायरेक्टर्स के नाम कंपनियां रजिस्टर्ड करवाते थे। इन कंपनियों के डायरेक्टर के बैंक अकाउंट बैंक कर्मियों से सांठ-गांठ करके व्यक्तिगत तथा ईकेवाईसी के माध्यम से खुलवाए जाते थे और उन अकाउंट्स के एटीएम कार्ड, नेट बैंकिंग पासवर्ड, रजिस्टर्ड मोबाइल सिम अपने पास रखकर उन अकाउंट्स को खुद ऑपरेट करते थे। डमी डायरेक्टर्स के नाम से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बनाई गई कंपनियों का विदेशी कंपनियों के साथ बिजनेस दिखाकर गुजरात तथा मुंबई के बंदरगाहों (पोर्ट) पर विदेश से माल मंगवा कर इसे आयात तथा निर्यात करते थे। इस दौरान इन्वॉयस बिल में सामान की कीमत को बाजार की कीमत से कई गुना ज्यादा दर्शाकर भारतीय मुद्रा को विदेशों में भेजते थे और अवैध तौर पर प्रति डॉलर मोटा कमीशन वसूल करते थे।
आरोपियों द्वारा कंपनियों के बिजनेस परिसर, बैंक रिकॉर्ड, आरओसी एंड सीजीएसटी रिकॉर्ड व आयात-निर्यात संबंधित दस्तावेजों में अलग-अलग दर्शाये जाते थे ताकि राजस्व आसूचना के निदेशक, कस्टम विभाग, प्रवर्तन निदेशालय तथा केंद्रीय जीएसटी आदि विभागों की पकड़ में ना आ सके।
ऐसे देते थे वारदातों को अंजाम
आरोपी कंपनियों के खातों में रुपये अन्य कंपनियों के खातों से फर्जी सेल/परचेज दिखाकर मंगवाए जाते थे और इन कंपनियों के मेजर खातों से रुपये आरोपियो द्वारा डॉलर में विदेशी कंपनी के खाते में ट्रांसफर करवा दिये जाते थे। आरोपी विदेशी कंपनियों से सामान किराए पर लेकर दस्तावेजों में उनसे खरीदा हुआ दिखाते थे और माल का आयात व कुछ समय बाद वापस उसी माल को निर्यात दिखाते थे। आयात दिखाए गए सामान की पेमेंट को विदेशी कम्पनी के खातों में भेज दिया जाता था परन्तु निर्यात किए गए माल की पेमेंट वापस स्वदेशी कम्पनी के खाते में नहीं आती।